Friday, 25 July 2014

कहां गए अच्छे दिन ?

 खाद्य पदार्थो के मूल्यों में बढ़ोतरी के लिये वायदा कारोबार जिम्मेदार है, उस पर कब रोक लगाई जायेगी ? क्या मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी महंगाई को कम करने के लिये मोदी समिति ने पूर्व में जो वायदा कारोबार पर रोक लगाने की मांग की थी, उसे लागू नहीं किया जा सकता है ?


एक हमें आँख की लड़ाई मार गई
दूसरी तो यार की जुदाई मार गई
तीसरी हमेशा की तन्हाई मार गई
चैथी ये खुदा की खुदाई मार गई
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई...

जी हां, सच्चाई यही है कि अच्छे दिन आते आते बुरे दिन आ गए। महंगाई ने जीना मुहाल कर दिया। जिस नरेंद्र मोदी की बातों पर भरोसा करके लोगों ने उन्हें सत्ता तक पहुंचाया, वह भी जनता को राहत नहीं दिला पा रहे हैं। हाय री महंगाई। अर्थशास्त्री एमके वेणु कहते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद से महंगाई से जूझ रही है। खाद्य पदार्थों की महंगाई की वजह से ही पिछली सरकार लोकसभा चुनाव हारी थी। कुछ ऐसा ही नरेंद्र मोदी सरकार के साथ भी हो रहा है। इसका परिणाम महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों में होने वाले चुनाव में देखने को मिल सकते हैं। उनकी राय है कि महंगाई से निपटने के लिए एक खास तरह की गवर्नेंस चाहिए। जो इस सरकार के पास नहीं है। इसलिए महंगाई काबू में आ नहीं पा रही है।
महंगाई को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। आलू और प्याज की कीमतों को लेकर शहर शहर में विरोध प्रदर्शन हो रहा है। सरकार की समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे कीमतों को काबू में किया जाए। विरोधी दलों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता से वादा किया था कि अच्छे दिन आने वाले हैं लेकिन एक माह में ही पेट्रोल, डीजल, चीनी और केरोसीन के साथ ही रेल किराया बढ़ाकर जनता की कमर तोड़ दी। महंगाई को कम करना तो दूर केंद्र सरकार महंगाई पर नियंत्रण करने में भी असफल साबित हुई है। भाजपा ने महंगाई का बोझ जनता पर डालकर यह साबित किया है कि अब कभी भी अच्छे दिन आने वाले नहीं हैं।
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सरकार पर निशाना साधा है। दिग्विजय ने पूछा है कि कहां है वो प्राइस स्टेबलाइजेशन फंड जिसका वादा भाजपा ने किया था। दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर लिखा है कि महंगाई से लड़ने का मोदी सरकार का नुस्खा है जमाखोरों और काला बाजारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और स्टॉक रखने की सीमा तय करना। इसमें नया क्या है?...ये तो वही बातें हैं जो यूपीए सरकार कह रही थी। वो प्राइस स्टेबिलाइजेशन फंड कहां है, जिसका भाजपा मेनिफेस्टो में वादा किया गया था? भाजपा शासित राज्यों में जमाखोरों के खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई की गई है?
उधर कमजोर मानसून पर अटकलें भी महंगाई बढने का एक कारण माना जा रहा है। मौसम विभाग द्वारा कमजोर मानसून की भविष्यवाणी से  खरीफ की फसल पर भी खतरा मंडरा रहा है। खरीफ फसलों में धान, गन्ना, गेहूं और आलू-प्याज भी शामिल हैं। देश की दो तिहाई कृषि भूमि क्योंकि मानसून की बारिश पर निर्भर है, इसलिए अगर मौसमी बरसात नहीं हुई तो मामला और भी गंभीर हो सकता है। अगर जुलाई के पहले हफ्ते में उम्मीद के अनुसार बारिश नहीं हो पायी तो विपक्ष का सबसे पहला निशाना होंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो ‘अच्छे दिनों्य का वादा कर सत्ता में आये हैं। बजट सत्र शुरू होने वाला है और इस दौरान विपक्ष महंगाई पर मोदी सरकार को घेरेगा। इराक संकट को देखते हुए पेट्रोल के दामों में इजाफे की आशंका पहले ही जताई जा रही थी। आज तेल कंपनियों ने इसका ऐलान भी कर दिया। इससे पहले भी नरेंद्र मोदी के पीएम पद संभालने के कुछ दिनों में ही डीजल के दाम में 50 पैसे का इजाफा हुआ था।
सच तो यही है कि महंगाई एक बड़ा मसला है और लोगों का कांग्रेस से मोहभंग का एक बड़ा कारण भी। महंगाई ने सबको प्रभावित किया है। किसी ने कहा है कि महंगाई कराधान का एक सबसे खतरनाक रूप है। यह एकमात्र ऐसा कराधान है, जो संसद की अनुमति के बगैर लगता है। एक व्यक्ति जिसकी निश्चित आय है, वह चाहे बड़ी मात्रा में टैक्स दे या फिर महंगी वस्तुएं खरीदे, दोनों में क्या फर्क है? वास्तव में महंगाई वह शांत कराधान है, जो आम आदमी को मार देती है।
दूसरी ओर, सरकारी प्रयासों की बात करें, तो सरकार ने महंगाई के खिलाफ जंग का एलान कर दिया है। सरकार ने प्याज का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस (एमईपी) बढाने के बाद आलू और प्याज को आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत ला दिया है। इसके साथ ही अब इस पर स्टॉक होल्डिंग लिमिट लगेगी। यानि तय मात्रा से ज्यादा आलू, प्याज रखने की इजाजत नहीं होगी।दरअसल सरकार को आलू और प्याज की जमाखोरी को लेकर बहुत शिकायतें मिली। लिहाजा सरकार ने राज्यों को जमाखोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। आलू और प्याज पर 6 राज्यों ने स्टॉक होल्डिंग लगाने की गुजारिश की थी। सरकार ने आलू और प्याज पर 1 साल के लिए स्टॉक होल्डिंग लगाई है।  आलू और प्याज पर स्टॉक होल्डिंग की लिमिट राज्य सरकार तय करेगी। स्टॉक लिमिट लगाने से ये होगा कि कोई भी तय सीमा से ज्यादा मात्रा रोककर नहीं रख पाएगा जिससे बाजार में आलू-प्याज की सप्लाई बढाने की संभावना बढ जाएगी। वहीं सरकार ने 50 लाख टन अतिरिक्त चावल एपीएल और बीपीएल परिवार को देने का फैसला किया है। साथ ही पहले 300 डॉलर प्रति टन के एमईपी पर एक्सपोर्ट हो रहा प्याज अब 500 डॉलर से कम पर एक्सपोर्ट नहीं हो पाएगा।
उल्लेखनीय यह भी है कि देश की जनता ने भी मोदी लहर को महंगाई के लहर से परास्त होते महसूस किया है। बेषक मोदी कैबिनेट ने महंगाई से निपटने के लिये कई फैसले लिये हैं। उसके बावजूद यह तय माना जा रहा है कि महंगाई पर फौरी तौर पर राहत जरूर मिल सकती है परन्तु इससे महंगाई से स्थाई रूप से छुटकारा मिलना असंभव सा है। इसका कारण यह है कि महंगाई को बढ़ावा देने वाले वायदा बाजार पर लगाम लगाने के लिये तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बनी समिति ने जो अनुशंसा की थी उस पर अब भी गौर नहीं किया गया है। 2003 में कृषि जिंसो पर वायदा कारोबार शुरू करने के बाद महंगाई में इजाफा हुआ था. उसको देखते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के अध्यक्षता में वर्ष 2010 में एक समिति का गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री ने किया था। मोदी समिति ने प्रधानमंत्री को 2011 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में वायदा कारोबार और महंगाई के बीच सकारात्मक संबंध पाया था। समिति ने महंगाई रोकने के लिए जो 20 सिफारिशें की थी उनमें सबसे प्रमुख था सभी आवश्यक खाद्य वस्तुओं के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाना। इसके लिये मोदी समिति ने सिफारिश की कि खाद्य पदार्थो के वायदा बाजार को कुछ समय के लिये बंद कर दिया जाना चाहिये। इस रिपोर्ट की अन्य सिफारिशों में कहा गया था कि मूल्यों पर नियंत्रण रखने के लिये एक मूल्य नियंत्रण कोष की स्थापना की जाये जिससे राज्यों की मदद की जा सके तथा एपीएमसी कानून में सुधार लाया जाये इत्यादि।
महंगाई के मुद्दे पर सबसे दिलचस्प बात यह है कि व्यवहार से उदारवादी होने के बावजूद नरेन्द्र मोदी ने उदारवाद के मानस पुत्र, वायदा बाजार को महंगाई का कारण माना था। इसके लिये उनका शुक्रिया अदा किया जाना चाहिये कि उन्होंने देश में महंगाई को बढ़ावा देने वाले वायदा बाजार को ठीक-ठीक पहचाना थां जैसा कि कई वामपंथी झुकाव वाले अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यदि कड़ाई के साथ खाद्य पदार्थों के वायदा काराबार पर लगाम लगा दी जाये तो उनके महंगाई को बढ़ने से न केवल रोका जा सकता है बल्कि उसे कम भी किया जा सकता है। असल में वायदा कारोबार का भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रवेश एक बिलकुल नए तरह का आर्थिक उपक्रम है जिसने कृषि जिंसों के मूल्यों पर गहरा असर डाला और किसानों को बेहाल करने में अपनी भूमिका निभाई है। भारतीय किसान वायदा कारोबार से होने वाले लाभ से वंचित रहा और सारा फायदा सटोरिए ले गएं ये सौदे ज्यादातर ऑनलाइन होते हैं और 95 फीसदी सौदे मुंबई स्थित दो बड़े कमोडिटी एक्सचेंजों में लिखे जाते हैं।
किसी आगामी तारीख के लिए किया जाने वाला कारोबारी सौदा, जिसमें शेष भुगतान और डिलीवरी उसी आगामी तारीख को ही होती है वायदा कारोबार के नाम से जाना जाता है. उत्पादक भविष्य में कीमतों की गिरावट की संभावना को देखते हुए वायदा कारोबार को सुरक्षा कवच के रूप में अपनाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खाद्य एवं कृषि संगठन ने भी स्वीकार किया था कि वायदा बाजार में सट्टेबाज कमोडिटी के दाम बढ़ाते जा रहे हैं. भारत में भी यही स्थिति है। यहां बड़े-बड़े सटोरिए बिना मेहनत के रोज लाखों-करोड़ों का वारा-न्यारा कर रहे हैं।  जिसका भुगतान आम जनता को करना पड़ रहा है।

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