Sunday, 27 July 2014

खुदा का इनाम है ईद-उल-फितर




मजान माह की इबादतों और रोजे के बाद ईद-उल-फितर का त्योहार खुदा का इनाम है। इसमें खुशखबरी की महक और खुशियों का गुलदस्ता है। इसलिये जुमा अलविदा के बाद अब चांद के दीदार का इंतजार है। चकिया (चंदौली) : ईद इस्लामिक महीना शव्वाल का आगाज करता है। माहे रमजान में इस्लाम को मानने वाले 30 दिन तक रोजा रखकर अल्लाह पाक की इबादत करते हैं। रोजा पूरा होने पर बतौर ईनाम मुसलमानों को अल्लाह तआला ईद के रूप में खुशियां बरसाते हैं। 'ईद' का त्योहार इस्लामी माह शव्वाल की पहली तारीख को मनाया जाता है। इसके पहले रमजान का महीना होता है जिसे मुसलमान भाई बड़ा पवित्र महीना मानते हैं। इस पूरे माह रोजे (उपवास) रखते हैं। सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी नहीं खाते। सूर्यास्त पश्चात रोजा (उपवास) खोला जाता है जिसे 'रोजा-इफ्तारी' कहते हैं। दिनभर 'कुरान शरीफ' का पाठ करते हैं और नियमपूर्वक नमाज अदा करते हैं। पूरा माह पवित्र जीवन बिताते हैं, गरीबों और दुखियों की मदद करते हैं।
खुशियों का सबसे बड़ा त्योहार ईद इस्लाम में अजिमुशान मकाम रखता है। चांद का दीदार होते ही त्योहार का ऐसा नजारा बिखरता है कि लोग बाग अमीर, गरीब, छोटा व बड़ा का भेदभाव भुलाकर एक दूसरे के गले मिलते हैं। ईद का शाब्दिक अर्थ खुशी होता है। जो अपने अर्थ को इस दिन सार्थक करता नजर आता है। इस्लाम मजहब के जानकार इम्तियाज अहमद खां कहते हैं कि रमजान के सुकुन से पूरा होने व रोजेदारों द्वारा तिलावते कुरआन पाक व दीगर इबादत करने का बख्शीश ईद के रूप में परवर दीगार बख्शता है। ईद की नमाज के पहले फितरा अदा किया जाता है। यही कारण है कि इसे ईद-उल-फितर कहते हैं।
फितरा वह रकम होती है जिसे घर के प्रत्येक सदस्य के नाम से निकाला जाता है। यह ढाई किलो गेहूं या इतने तौल के बराबर नगदी दिया जाता है। ईद की नमाज के पहले पैदा हुए नवजात शिशु के लिए भी फितरा का निकाला जाना निहायत जरूरी होता है। रोजेदारों के पांचों वक्त की नमाज, पाक कुरान की तिलावत व तरावीह से खुश होकर अल्लाह पाक रोजेदारों को बख्शीश के तौर पर खुशियों के गुलदस्ते ईद से नवाजते हैं। ईद की रात के चांद अल्फा के दीदार के साथ ही इसकी खुशियां हर घर में बरसने लगती है। ईद की दो रेकात नमाज अता करने वाले को फरिश्ते सबाब देते हैं। कहते हैं कि फितरा ईद के दिन की इबादत में से एक अहम इबादत है इसलिए यह बेहद जरूरी है। मिस्किनों (गरीबों) को जो सख्स ईद की नमाज से पहले फितरा अदा करता है उसके लिए जकात मकबूल होती है और जो नमाज के बाद इसे अदा करता है वह आम सदकों में से एक होती है। ईद की चांद का दीदार कर घरों में इंतेखाब पर बैठी महिला अपना 10 दिन का मौन एकांतवास के साधना का समापन इसी दिन करती हैं। वहीं मस्जिदों में इंतेखाब पर बैठे पुरूष सदस्य भी दुआ कर घरों को वापस जाते। जिन्हें फूल मालाओं के साथ लोग बाग नाते व नारा लगाते हुए घरों तक पहुंचाते हैं।
जकात हर बालिग मुस्लिम का फर्ज है। ऐसे मुस्लिम जिनके पास साढ़े बावन तोले चांदी या साढ़े सात तोले सोना हो या इनकी कीमत के बराबर संपत्ति है, इस संपत्ति पर एक वर्ष गुजरा हुआ होना चाहिये, उन्हें इसका आंकलन करके ढाई फीसद के हिसाब से जकात निकालनी चाहिये। फितरा या जकात ऐसे मुस्लिमों को दें जो गरीब हों। ताकि वह भी ईद की खुशियों में शामिल हो सकें। द को समझने के लिये पैगंबर हजरत मुहम्मद (सल्ल.) से इसका महत्व समझना चाहिये। वह बड़ी सादगी से ईद मनाया करते थे। जिसे फितरा दिया जाये उसे यह महसूस नहीं होने दें कि गरीब मानकर उसे यह दिया जा रहा है। ईद के दिन नमाज से पहले फितरा हर बालिग की ओर से दिया जाता है। बच्चों का फितरा पिता को अदा करना चाहिये।

उत्तराखंड ने दिखाया कांग्रेस का दम



जो लोग कांग्रेस को चुका हुआ मान रहे थे, उन लोगों के लिए उत्तराखंड में हुए उपचुनाव एक जवाब है। उपचुनाव में सौ फीसदी परिणाम कांग्रेस के हिस्से में आई। इसके लिए मुख्यमंत्री हरीष रावत की कार्यप्रणाली और प्रदेष कांग्रेस अध्यक्ष किषोर उपाध्याय की संगठनात्मक क्षमता पर जनता ने भरोसा जताया। दो महीना पहले ही जिस उत्तराखंड ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर में एकतरफा मतदान करते हुए पांचों लोकसभा सीट भाजपा को सौंप दी थीं, विधानसभा उपचुनाव में उसे जमीन चटा दी। बामुश्किल 60 दिन में जनता के मिजाज में आए इस बदलाव ने साबित कर दिया कि राज्य से मोदी की लहर छूमंतर हो गई है। दिलचस्प बात यह रही कि हाल में हुए लोकसभा चुनावों में मोदी लहर के चलते प्रदेश की पांचों लोकसभा सीटें गंवाने वाली कांग्रेस ने धारचूला के अलावा अन्य दोनों विधानसभा सीटें भाजपा के कब्जे से छीनी हैं।
असल में, उत्तराखंड की तीन विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों के नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी को करारा झटका दिया है और कांग्रेस को राहत दी है। धारचूला से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जहां जीत दर्ज की, वहीं डोईवाला से हीरा सिंह बिष्ट और सोमश्वर से रेखा आर्या ने जीत हासिल कर केंद्र की सत्ता में आई भाजपा का यहां कहीं खाता तक नहीं खुलने दिया। लोकसभा चुनाव के ट्रेंड को आम तौर पर विधानसभा उप चुनाव के नतीजों से नहीं जोड़ा जाता लेकिन धारचूला, सोमेश्वर और डोईवाला विधानसभा उपचुनाव के नतीजे यह साफ साफ बता रहे हैं कि राज्य में अब मोदी की लहर और भाजपा का तिलिस्म उतार पर है। लोकसभा चुनाव में चुनावी सभाओं से लेकर भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र तक में उत्तराखंड को खासी तरजीह दी गई थी। उत्तराखंड को लेकर नरेन्द्र मोदी के विशेष लगाव को प्रचारित किया गया। लेकिन केन्द्र में सरकार बनाने के बाद भाजपा ने उत्तराखंड को लेकर कोई संवेदनशीलता नहीं दिखायी।
बीजेपी के रमेश पोखरियाल निशंक और अजय टम्टा के सांसद बनने से डोईवाला और सोमेश्वर विधानसभा सीट खाली हुई थी। जबकि धारचूला से कांग्रेसी विधायक हरीश धामी ने सीएम रावत के लिए सीट छोड़ी थी। उपचुनाव के नतीजों से बीजेपी खेमे में मातम छाया है। बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव त्रिवेन्द्र रावत भी डोईवाला से अपनी सीट नहीं बचा पाए। जबकि धारचूला से मुख्यमंत्री रावत ने बीजेपी के बी. डी. जोशी का हराया। रिजर्व सीट सोमेश्वर पर कांग्रेस की रेखा आर्या ने बीजेपी के मोहन राम आर्या को मात दी है। धारचूला कांग्रेस की सीट थी लेकिन डोइवाला और सोमेश्वर बीजेपी के पास थी जिसे कांग्रेस ने उपचुनाव में जीत लिया है।तीनों सीटें जीतने से हरीश रावत की सरकार को भी स्थिरता मिली है। अब 70 विधायकों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 35 विधायक हो गए हैं। एक एंग्लो इंडियन विधायक के सहारे कांग्रेस अकेले 36 के बहुमत का आंकड़ा पा रही है। वहीं अब बीजेपी के विधायकों की संख्या घटकर 28 रह गई है। लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी राज्य में सरकार गिराने और खुद सरकार बनाने के दावे कर रही थी लेकिन अब उपचुनाव के नतीजों ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। 2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के 32 और बीजेपी के 31 विधायक थे।
गौर करने योग्य यह भी  है कि मई में हुए लोकसभा चुनावों में डोईवाला विधानसभा में बीजेपी को कांग्रेस के मुकाबले करीब 28 हजार वोट ज्यादा मिले थे जबकि सोमेश्वर में बीजेपी 10 हजार वोटों से आगे रही थी। सिर्फ धारचूला विधानसभा में भी कांग्रेस को 2500 वोट ज्यादा मिले थे। लेकिन उपचुनावों में तस्वीर पूरी तरह से पलट गई। लोकसभा चुनावों की तुलना में उपचुनावों में डोईवाला में बीजेपी को करीब 34 हजार, सोमेश्वर में 20 हजार और धारचूला में 18 हजार वोटों का नुकसान हुआ है। महज दो महीनों में वोटों में आई गिरावट को मोदी की लोकप्रियता में कमी और प्रदेश बीजेपी में बढ़ रही गुटबाजी से जोड़ा जा रहा है।

Friday, 25 July 2014

कहां गए अच्छे दिन ?

 खाद्य पदार्थो के मूल्यों में बढ़ोतरी के लिये वायदा कारोबार जिम्मेदार है, उस पर कब रोक लगाई जायेगी ? क्या मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी महंगाई को कम करने के लिये मोदी समिति ने पूर्व में जो वायदा कारोबार पर रोक लगाने की मांग की थी, उसे लागू नहीं किया जा सकता है ?


एक हमें आँख की लड़ाई मार गई
दूसरी तो यार की जुदाई मार गई
तीसरी हमेशा की तन्हाई मार गई
चैथी ये खुदा की खुदाई मार गई
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई...

जी हां, सच्चाई यही है कि अच्छे दिन आते आते बुरे दिन आ गए। महंगाई ने जीना मुहाल कर दिया। जिस नरेंद्र मोदी की बातों पर भरोसा करके लोगों ने उन्हें सत्ता तक पहुंचाया, वह भी जनता को राहत नहीं दिला पा रहे हैं। हाय री महंगाई। अर्थशास्त्री एमके वेणु कहते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद से महंगाई से जूझ रही है। खाद्य पदार्थों की महंगाई की वजह से ही पिछली सरकार लोकसभा चुनाव हारी थी। कुछ ऐसा ही नरेंद्र मोदी सरकार के साथ भी हो रहा है। इसका परिणाम महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों में होने वाले चुनाव में देखने को मिल सकते हैं। उनकी राय है कि महंगाई से निपटने के लिए एक खास तरह की गवर्नेंस चाहिए। जो इस सरकार के पास नहीं है। इसलिए महंगाई काबू में आ नहीं पा रही है।
महंगाई को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। आलू और प्याज की कीमतों को लेकर शहर शहर में विरोध प्रदर्शन हो रहा है। सरकार की समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे कीमतों को काबू में किया जाए। विरोधी दलों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता से वादा किया था कि अच्छे दिन आने वाले हैं लेकिन एक माह में ही पेट्रोल, डीजल, चीनी और केरोसीन के साथ ही रेल किराया बढ़ाकर जनता की कमर तोड़ दी। महंगाई को कम करना तो दूर केंद्र सरकार महंगाई पर नियंत्रण करने में भी असफल साबित हुई है। भाजपा ने महंगाई का बोझ जनता पर डालकर यह साबित किया है कि अब कभी भी अच्छे दिन आने वाले नहीं हैं।
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सरकार पर निशाना साधा है। दिग्विजय ने पूछा है कि कहां है वो प्राइस स्टेबलाइजेशन फंड जिसका वादा भाजपा ने किया था। दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर लिखा है कि महंगाई से लड़ने का मोदी सरकार का नुस्खा है जमाखोरों और काला बाजारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और स्टॉक रखने की सीमा तय करना। इसमें नया क्या है?...ये तो वही बातें हैं जो यूपीए सरकार कह रही थी। वो प्राइस स्टेबिलाइजेशन फंड कहां है, जिसका भाजपा मेनिफेस्टो में वादा किया गया था? भाजपा शासित राज्यों में जमाखोरों के खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई की गई है?
उधर कमजोर मानसून पर अटकलें भी महंगाई बढने का एक कारण माना जा रहा है। मौसम विभाग द्वारा कमजोर मानसून की भविष्यवाणी से  खरीफ की फसल पर भी खतरा मंडरा रहा है। खरीफ फसलों में धान, गन्ना, गेहूं और आलू-प्याज भी शामिल हैं। देश की दो तिहाई कृषि भूमि क्योंकि मानसून की बारिश पर निर्भर है, इसलिए अगर मौसमी बरसात नहीं हुई तो मामला और भी गंभीर हो सकता है। अगर जुलाई के पहले हफ्ते में उम्मीद के अनुसार बारिश नहीं हो पायी तो विपक्ष का सबसे पहला निशाना होंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो ‘अच्छे दिनों्य का वादा कर सत्ता में आये हैं। बजट सत्र शुरू होने वाला है और इस दौरान विपक्ष महंगाई पर मोदी सरकार को घेरेगा। इराक संकट को देखते हुए पेट्रोल के दामों में इजाफे की आशंका पहले ही जताई जा रही थी। आज तेल कंपनियों ने इसका ऐलान भी कर दिया। इससे पहले भी नरेंद्र मोदी के पीएम पद संभालने के कुछ दिनों में ही डीजल के दाम में 50 पैसे का इजाफा हुआ था।
सच तो यही है कि महंगाई एक बड़ा मसला है और लोगों का कांग्रेस से मोहभंग का एक बड़ा कारण भी। महंगाई ने सबको प्रभावित किया है। किसी ने कहा है कि महंगाई कराधान का एक सबसे खतरनाक रूप है। यह एकमात्र ऐसा कराधान है, जो संसद की अनुमति के बगैर लगता है। एक व्यक्ति जिसकी निश्चित आय है, वह चाहे बड़ी मात्रा में टैक्स दे या फिर महंगी वस्तुएं खरीदे, दोनों में क्या फर्क है? वास्तव में महंगाई वह शांत कराधान है, जो आम आदमी को मार देती है।
दूसरी ओर, सरकारी प्रयासों की बात करें, तो सरकार ने महंगाई के खिलाफ जंग का एलान कर दिया है। सरकार ने प्याज का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस (एमईपी) बढाने के बाद आलू और प्याज को आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत ला दिया है। इसके साथ ही अब इस पर स्टॉक होल्डिंग लिमिट लगेगी। यानि तय मात्रा से ज्यादा आलू, प्याज रखने की इजाजत नहीं होगी।दरअसल सरकार को आलू और प्याज की जमाखोरी को लेकर बहुत शिकायतें मिली। लिहाजा सरकार ने राज्यों को जमाखोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। आलू और प्याज पर 6 राज्यों ने स्टॉक होल्डिंग लगाने की गुजारिश की थी। सरकार ने आलू और प्याज पर 1 साल के लिए स्टॉक होल्डिंग लगाई है।  आलू और प्याज पर स्टॉक होल्डिंग की लिमिट राज्य सरकार तय करेगी। स्टॉक लिमिट लगाने से ये होगा कि कोई भी तय सीमा से ज्यादा मात्रा रोककर नहीं रख पाएगा जिससे बाजार में आलू-प्याज की सप्लाई बढाने की संभावना बढ जाएगी। वहीं सरकार ने 50 लाख टन अतिरिक्त चावल एपीएल और बीपीएल परिवार को देने का फैसला किया है। साथ ही पहले 300 डॉलर प्रति टन के एमईपी पर एक्सपोर्ट हो रहा प्याज अब 500 डॉलर से कम पर एक्सपोर्ट नहीं हो पाएगा।
उल्लेखनीय यह भी है कि देश की जनता ने भी मोदी लहर को महंगाई के लहर से परास्त होते महसूस किया है। बेषक मोदी कैबिनेट ने महंगाई से निपटने के लिये कई फैसले लिये हैं। उसके बावजूद यह तय माना जा रहा है कि महंगाई पर फौरी तौर पर राहत जरूर मिल सकती है परन्तु इससे महंगाई से स्थाई रूप से छुटकारा मिलना असंभव सा है। इसका कारण यह है कि महंगाई को बढ़ावा देने वाले वायदा बाजार पर लगाम लगाने के लिये तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बनी समिति ने जो अनुशंसा की थी उस पर अब भी गौर नहीं किया गया है। 2003 में कृषि जिंसो पर वायदा कारोबार शुरू करने के बाद महंगाई में इजाफा हुआ था. उसको देखते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के अध्यक्षता में वर्ष 2010 में एक समिति का गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री ने किया था। मोदी समिति ने प्रधानमंत्री को 2011 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में वायदा कारोबार और महंगाई के बीच सकारात्मक संबंध पाया था। समिति ने महंगाई रोकने के लिए जो 20 सिफारिशें की थी उनमें सबसे प्रमुख था सभी आवश्यक खाद्य वस्तुओं के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाना। इसके लिये मोदी समिति ने सिफारिश की कि खाद्य पदार्थो के वायदा बाजार को कुछ समय के लिये बंद कर दिया जाना चाहिये। इस रिपोर्ट की अन्य सिफारिशों में कहा गया था कि मूल्यों पर नियंत्रण रखने के लिये एक मूल्य नियंत्रण कोष की स्थापना की जाये जिससे राज्यों की मदद की जा सके तथा एपीएमसी कानून में सुधार लाया जाये इत्यादि।
महंगाई के मुद्दे पर सबसे दिलचस्प बात यह है कि व्यवहार से उदारवादी होने के बावजूद नरेन्द्र मोदी ने उदारवाद के मानस पुत्र, वायदा बाजार को महंगाई का कारण माना था। इसके लिये उनका शुक्रिया अदा किया जाना चाहिये कि उन्होंने देश में महंगाई को बढ़ावा देने वाले वायदा बाजार को ठीक-ठीक पहचाना थां जैसा कि कई वामपंथी झुकाव वाले अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यदि कड़ाई के साथ खाद्य पदार्थों के वायदा काराबार पर लगाम लगा दी जाये तो उनके महंगाई को बढ़ने से न केवल रोका जा सकता है बल्कि उसे कम भी किया जा सकता है। असल में वायदा कारोबार का भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रवेश एक बिलकुल नए तरह का आर्थिक उपक्रम है जिसने कृषि जिंसों के मूल्यों पर गहरा असर डाला और किसानों को बेहाल करने में अपनी भूमिका निभाई है। भारतीय किसान वायदा कारोबार से होने वाले लाभ से वंचित रहा और सारा फायदा सटोरिए ले गएं ये सौदे ज्यादातर ऑनलाइन होते हैं और 95 फीसदी सौदे मुंबई स्थित दो बड़े कमोडिटी एक्सचेंजों में लिखे जाते हैं।
किसी आगामी तारीख के लिए किया जाने वाला कारोबारी सौदा, जिसमें शेष भुगतान और डिलीवरी उसी आगामी तारीख को ही होती है वायदा कारोबार के नाम से जाना जाता है. उत्पादक भविष्य में कीमतों की गिरावट की संभावना को देखते हुए वायदा कारोबार को सुरक्षा कवच के रूप में अपनाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खाद्य एवं कृषि संगठन ने भी स्वीकार किया था कि वायदा बाजार में सट्टेबाज कमोडिटी के दाम बढ़ाते जा रहे हैं. भारत में भी यही स्थिति है। यहां बड़े-बड़े सटोरिए बिना मेहनत के रोज लाखों-करोड़ों का वारा-न्यारा कर रहे हैं।  जिसका भुगतान आम जनता को करना पड़ रहा है।

Thursday, 17 July 2014

दिल्ली के आये महंगे दिन




महंगाई के बीच देश की राजधानी दिल्ली में बिजली भी महंगी हो गई है। बिजली कटौती से परेशान दिल्ली वालों के लिए एक और दुखदायी खबर है। बिजली महंगी हो गई है। डीईआरसी बिजली की दरों में 8.32 फीसदी तक बढ़ोतरी का ऐलान किया। लेकिन, हो सकता है कि आपका बिजली का बिल कम आए क्योंकि पावर परचेज अजस्टमेंट चार्ज हटा दिया गया है। इसका मतलब है कि अब कंपनियों को अगर बिजली खरीदने में कम या ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं तो उसका आपके बिल पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन यह चार्ज सिर्फ तीन महीने तक था, तो बिल तीन महीने तक ही कम आएगा। सुधाकर ने बताया कि 0 से 200 यूनिट तक खर्च करने वालों को अब 4 रुपये प्रति यूनिट देने होंगे। पहले यह दर 3.90 रुपये थे। 201 से 400 यूनिट तक की दर अब 5.95 रुपये प्रति यूनिट होगी। पहले इस स्लैब में एक यूनिट के 5.80 पैसे लिए जाते थे। इससे ज्यादा बिजली खर्च करने वालों पर सबसे ज्यादा मार पड़ेगी। 401 से 800 यूनिट तक के लिए बिजली के दाम में सीधे 50 पैसे प्रति यूनिट बढ़ा दिए गए हैं। पहले इस स्लैब में प्रति यूनिट 6.80 पैसे देने होते थे जो अब बढ़कर 7.30 पैसे हो गए हैं। इसी तरह 801 से 1200 यूनिट तक की बिजली एक रुपये 10 पैसे प्रति यूनिट महंगी हुई है। पहले जिस यूनिट के 7 रुपये दिए जाते थे, उसके अब 8.10 रुपये देने होंगे।
देश के सामने चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और उसके अगुवा नरेंद्र मोदी जी ने कहा था कि देश को हम गरीबी से निजात दिलायेंगे और महंगाई से मुक्त करेंगे. आज डेढ़ महीना भी इस सरकार को नहीं हुआ और महंगाई देश को खाते जा रही है. सरकार लापरहवाह है. जब से सत्ता में आयी है, महंगाई रोकने में और दाम घटाने में किसी तरह की कोई ठोस पहल करती हुई नहीं दिख रही है.

Thursday, 10 July 2014

बजट बेहद निराशानजक

बजट बेहद निराशानजक है। बजट में जो घोषणाएं की गईं है उसमें में 99 फीसदी कांग्रेस का काम किया हुआ है, नई सरकार ने कुछ भी नया नहीं किया है। सारे आइडिया हमारे हैं। टैक्स में सिर्फ 50 हजार की राहत ना के बराबर है। आम आदमी को कोई राहत नहीं है। बजट में ना कोई विजन है और ना ही कोई रोडमेप है। आखिर सरकार देश को कहा ले जाना चाहती है। विडंबना है कि एफडीआई का विरोध करने के बाद वे आज इसके नियम आसान कर रहे हैं। इस बजट के बाद आम आदमी के ऊपर भार बढ़ने वाला है।बजट में कोई बड़ा विचार दूर-दूर तक नहीं था। अगर आप अपनी आंखें बंद कर लें तो यह चिदंबरम का भाषण जैसा लग सकता है।
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने नरेंद्र मोदी सरकार का पहला बजट पेश करते हुए आर्थिक विकास की धीमी रफ्तार पर चिंता जताई और इसे तेज करने के लिए सुधार के कदम उठाने का वादा किया। वित्तमंत्री ने कहा, भारत की जनता ने बदलाव के लिए हमें निर्णायक वोट दिया है। मेरे द्वारा बजट में उठाए गए कदमों का लक्ष्य अगले तीन-चार साल में विकास दर को सात से आठ फीसदी तक पहुंचाना, महंगाई को कम करना, वित्तीय घाटे को कम करना और चालू खाते के घाटे को कम करना होगा। सेक्शन 80सी के तहत निवेश पर टैक्स छूट सीमा 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये कर दी है।  अब 1.5 लाख रुपये के बजाए 2 लाख रुपये तक के होमलोन के ब्याज पर टैक्स छूट मिलेगी। पीपीएफ में निवेश की सीमा बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये हुई है। वहीं बजट में जूते-चप्पल, छोटे फ्लैट टीवी, स्पोर्ट्स का सामान, साबुन, कंप्यूटर, ब्रांडेड कपड़े, पैकेज्ड फूड और सोलर प्रोडक्ट्स सस्ते हुए हैं। हालांकि, सरकार ने तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ाया है। सिगरेट, तंबाकू, पान मसाला महंगे होंगे। साथ ही कोल्ड ड्रिंक, इंपोर्टेड मोबाइल, रेडियो टैक्सी सेवा महंगे हो गए हैं।
सोशल सेक्टर में कोई बढ़िया निवेश नहीं है। विकास दर का लक्ष्य बेहद कम है। हम आठ साल तक उससे ज़्यादा देते रहे हैं। बीजेपी विपक्ष में बहुत चिल्लाती थी अब हकीकत पता चल रही है। बजट में वित्त मंत्री ने ऐसा कुछ नहीं है जिससे आम आदमी को फायदा हो। हां, कुछ बातें ऐसी जरूर हैं जिससे उद्योगपतियों को फायदा हो। हवाई बातों का पिटारा है उनका ये बजट। इस बजट से उम्मीदें कम नजर आती हैं।