Saturday, 24 May 2014

क्यों बढ़ रहे हैं तलाक ?



सात फेरों में लिया गया जनम जनम का बंधन अब दरकने लगा है, परंपराए टूटने लगी है, संस्कार बिखरने लगे हैं। जी हां महानगर तलाक की राजधानी बनकर उभर रहे हैं। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता जैसे महानगरों में हर रोज हजारों तलाक होते हैं। मुंबई और दिल्ली जैसे महानगर में तो रोजाना 10 हजार से ज्यादा तलाक होते हैं। जबकि देश में हर 100 वीं शादी का अंत तलाक पर होता है। आज के आधुनिक समाज में दंपत्तियों के बीच मन मुटाव और फिर तलाक काफी आम हो गया है। जिसे कभी बुरा माना जाता था उसे आज एक अच्छा निर्णय कहा जाता है।यह कहना गलत नहीं होगा कि जीवन की जितनी बड़ी सच्चाई शादी है उतना ही बड़ा सच तलाक भी है। हालांकि, इसे लेने से पहले लोग पर्सनल फाइनेंस के बारे में बेहद कम सोचते हैं।  बदलती जीवनशैली और आजाद सोच के कारण शादियों का अंत तलाक के साथ हो रहा है। करीब 5 साल पहले 1000 शादियों में 1 तलाक का मामला आता था और अब प्रत्येक 1000 शादियों में यह मामले 13 हो चुके हैं।
देश में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कई बार तो अजीबोगरीब वजह बताते हुए तलाक मांगा जाता है। वैसे, शारीरिक हिंसा तलाक का सबसे बड़ा कारण है। जबकि शादी के बाद भी पर पुरुष या स्त्री से शारीरिक संबंध, नशे की लत, जीवन साथी  को लेकर बहुत अधिक पजेसिव (उस पर अधिकार जमाना) होने जैसे कारण भी रिश्तों में दरार के लिए जिम्मेदार हैं। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, जैसे महानगरों में तलाक की जो दर है, वह छोटे शहरों से कहीं ज्यादा है। मुंबई और दिल्ली जैसे महानगर तलाक की ‘राजधानी’ बनकर उभर रहे हैं। एक आकलन के मुताबिक इन दोनों शहरों में हर साल 10 हजार से अधिक तलाक होते हैं। जबकि देश में होने वाली हर 100वीं शादी का अंत तलाक पर जाकर होता है। केरलाज मेंटल ब्लॉक रिपोर्ट के अनुसार, ‘देश की कुल आबादी में तलाक का प्रतिशत 1.1 है तो केरल में यह दर 3.3 फीसदी है। केरल सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य है। यहां पिछले एक दशक में तलाक की दर 350 फीसदी बढ़ी है। जबकि कृषि आधारित राज्य, पंजाब और हरियाणा में एक दशक में 150 फीसदी की बढ़त देखने को मिली है।’ राष्ट्रीय स्तर पर बीते पांच-छह सालों में तलाक की दर सौ फीसदी बढ़ गई है।
एक-दूसरे पर विश्वास की कमी  तलाक की सबसे बड़ी वजहों में से एक हैं। ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो फेसबुक जैसी सोशल साइटों पर फर्जी आईडी के माध्यम से अपने हमसफर पर नजर रखते हैं। फर्जी प्रोफाइल से खुद की ही पत्नी या पति से चैट किया जाता है और नतीजा तू-तू, मैं-मैं से शुरू होकर तलाक तक पहुंच जाता है। शारीरिक हिंसा तलाक का सबसे बड़ा कारण है। एकल परिवार, शादी के बाद भी दूसरे पुरुष या स्त्री से शारीरिक संबंध, नशे की लत, जीवन साथी को लेकर बहुत अधिक पजेसिव होने जैसे कारण भी रिश्तों में दरार के लिए जिम्मेदार हैं। कई बार तलाक के पीछे अजीबोगरीब कारण होते हैं। अब तक तलाक की अर्जी के बाद कोर्ट पति पत्नी को थोड़ा वक्त देता था ताकि शादी को बचाया जा सके लेकिन नए सुधार के बाद अब तलाक की अर्जी देने के बाद महीनों का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
हाल ही में केन्द्रीय केबिनेट ने हिन्दुओं में तलाक को सरल बनाने के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दी। तलाक के मामलों में जल्द निपटारा करने के लिए सरकार पर हिन्दू मैरिज एक्ट में संशोधन करने का दबाव था जिसे अंततरू सरकार ने स्वीकार कर लिया। संशोधन के अनुसार अगर पत-िपत्नी परस्पर सहमति से एक-दूसरे से अलग रहना चाहते हैं तो ऎसे मामले को अधिक समय तक बिना किसी वजह के लंबित नहीं रखा जा सकेगा। उन्हें शीघ्र अलग कर दिया जाएगा। इस संशोधन के साथ ही प्रश्नों के असंख्य चेहरे उभरते हैं और गौर से देखें तो 99 प्रतिशत चेहरे भय, पीड़ा, तकलीफ, बिछोह, टूटन और अलगाव की ही त्रासदी बयान करते हैं। कहीं गलत बंधन की वजह से छुटकारा पाने की तीव्र इच्छा होगी तब भी जब छुटे तब कितने-कितने टूटे यह उनका ही मन जानता है।
तलाक के कारण पर्सनल फाइनेंस के सभी कारकों पर प्रभाव पड़ता है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यदि तलाक सर्वसम्मति के साथ हो रहा है तो सलाहकार दोनों जीवन साथियों के लिए मैत्रीपूर्ण समझौता बनाते हैं। इस समझौते पर पहुंचने के बाद कानूनी खर्चो के बोझ को हलका कर दिया जाता है।तलाक के कारण फाइनेंशियल प्लानिंग के संबंध में बच्चे के संरक्षण पर असर नहीं पड़ना चाहिए। यदि किसी ने श्चाइल्ड प्लानश् ले रखा है और इसे संयुक्त रूप से फंडिड किया जा रहा है तो उसे बंद नहीं करना चाहिए। बंद करने से आप पर जुर्माना लग सकता है।  परिवार की सभी परिसंपत्तियों जैसे प्रॉपर्टी, इंवेस्टमेंट, इंश्योरेंस आदि की एक सूची बनाएं। कानूनी सलाह लेने से पहले यह सूची मददगार साबित हो सकती है। यदि दंपत्ति किसी समझौते पर नहीं पहुंचे हैं तो भागीदारी के हिसाब से परिसंपत्तियों को प्रत्येक जीवनसाथी के बीच बांटना चाहिए। संयुक्त जिम्मेदारी को व्यक्तिगत कर्ज से अलग रखना चाहिए।

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