Saturday, 24 May 2014

राजनीति में वकीलों का दम

देश में करियर बनाने के विकल्पों पर बात हो, तो शायद ही कोई युवा होगा जो ये कहेगा कि हमें तो वकील बनना है। ऐसी हालत तब है जब देश में कम से कम 900 विधि (यानी लॉ) कॉलेज हैं और 14 उच्चस्तरीय केंद्रीय विधि संस्थान हैं। अगर कुछ साल पहले (दस साल) तक की बात करें तो लॉ कॉलेजों का ये आंकड़ा देश में मौजूद कुल इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेजों की संख्या पर भी बीस पड़ता था...(इन दो विभागों से तुलना इसीलिए क्योंकि देश में कैरियर के तौर पर इन्हीं दो विकल्पों को रामबाण माना जाता रहा है)। लेकिन समय के साथ मान्यताएं बदली हैं। लोग अब अपने बच्चों को वकील भी बना रहे हैं। इसके पीछे एक कारण राजनीति भी है। कई वकील जितना नाम वकालत में नहीं कमा पाए, उससे अधिक उनके नामों की चर्चा लोगों की जुबान पर है।
गौर करने योग्य यह भी है कि देश को आजाद कराने में वकीलों ने अहम भूमिका निभाई थी। आज भी समाज को आगे बढ़ाने तथा समाज को जागृत करने में वकील अपनी भूमिका निभा रहे हैं। देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने और आजादी के आंदोलन में वकीलों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, उनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण रही। आंदोलन के सूत्रधार महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ने विदेश से कानून की पढ़ाई वकील बनने के लिए ही किया था। दोनों ने लंदन, इलाहाबाद और मुंबई में प्रैक्टिस भी शुरू कर दी थी, लेकिन देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने कांग्रेस से जुड़कर काम  करना शुरू किया।
आज भी राजनीति में दर्जनों वकील संगठन और सरकार में अच्छा खासा दखल रखते हैं, लेकिन उन्होंने कभी उस व्यवसाय के लिए कोई ठोस काम करने की पहल तक नहींकी, जिसके कारण उनकी राजनीति में पकड़ बनी। राजनैतिक दलों ने जिस मकसद से वकीलों को संगठन से जोड़ा था वह काफी हद तक पूरी हुई, लेकिन उसकेबाद वकीलों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा इतनी बढ़ गई कि उन्होंने सत्ता के गलियारे में इतनी पैठ बना ली है कि आने वाले समय में राजनीति में उनके वर्चस्व को तोड़ पाना मुश्किल है। बीते कार्यकाल के दौरान राजग ने राम जेठमलानी और उसके बाद अरुण जेटली को यह सोच कर कानून मंत्री बनाया था, कि दोनों सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील हैं और कननू को जानने वाले हैं। इसलिए कुछ ऐसा करेंगे, जिससे देश की न्याय व्यवस्था में सुधार आएगा, लेकिन दोनों ने कोई ऐतिहासिक फैसला करने की जगह न्यायिक प्रक्रिया में उलटफेर करने में ही समय बिता दिया। यूपीए ने हंसराज भारद्वाज को इसलिए कानून मंत्री बनाया कि वे कानून के जानकार हैं, लेकिन उन्होंने भी वैसा ही काम किया, जैसे दूसरे कांग्रेसी मंत्री कर रहे हैं। भाजपा में रविशंकर प्रसाद और सुषमा स्वराज दो बड़े नेता भी वकालत से जुड़े रहे हैं। कांग्रेस में कपिल सिब्बल को पार्टी ने मंत्रिमंडल में जगह देकर पार्टी के प्रति उनकी वफादारी का इनाम दे दिया है। अभिषेक मनु सिंघवी और मनीष तिवारी को पार्टी ने प्रवक्ता बना कर उनको महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है। मनीष को टिकट देकर उनके काम का भी इनाम दे दिया गया है। एक जमाने में कांग्रेस ने आरके आनंद को चुनाव लड़वाया था और पार्टी में उन्हें बहुत ताकतवर माना जाता था, लेकिन नरसिम्हा राव के करीबी होने के कारण इस समय वे संगठन में हाशिए पर हैं, लेकिन माना जा रहा है कि इस समय आरके आनंद मायावती के करीब आ चुके हैं और आने वाले समय में बसपा में शामिल हो सकते हैं। बसपा में सतीश चंद्र मिश्र बसपा सुप्रीमो के बाद सबसे ताकतवर स्थिति में माने जाते हैं। वकीलों को बड़े पैमाने पर जोडने के लिए कांगे्रस और भाजपा ने जिला स्तर तक अपने-अपने प्रकोष्ठ का गठन किया है। इसके पीछे पार्टी की मंशा यह रहती है कि केंद्र में सुप्रीम कोर्ट, राज्यों में हाईकोर्ट और जिलों में जिला अदालतों में काम करने वाले वकीलों को संगठन से जुड़ जाने पर एक तो संगठन को आराम से अदालती काम करने वाला वकील मिल जाएगा और दूसरा इसके माध्यम से पढ़े-लिखे लोगों में पार्टी का आधार खड़ा हो जाएगा, लेकिन दिल्ली में संगठन का काम करने वाले वकील पार्टी से सबसे ज्यादा फायदा ले जाते हैं। कई बार राज्यों में काम करने वाले वकीलों का भी नंबर लग जाता है, लेकिन जिलों में काम करने वाले अधिकांश वकीलों को कुछ नहीं मिल पाता है। छोटे और मझोले नेताओं की तरह वे न तो वकालत कर पाते हैं और न ही नेता बन पाते हैं।
ऐसा नहीं है कि यह नया सिलसिला है। भारतीय राजनीति में वकील नेताओं का शुरुआत से ही बोलबाला रहा है। इस समय भी राजनीति में वकील ही छाए हुए हैं। लोकसभा के मौजूदा 544 सदस्यों में से 76 वकालत के पेशे से जुड़े हुए हैं। राज्यसभा के 243 सदस्यों में 39 वकील हैं। 15वीं लोकसभा के अध्यक्ष मीरा कुमार के साथ ही यूपी सरकार में रक्षा मंत्री ए के एंटनी, वित्त मंत्री पी चिदंबरम, गृह मंत्री सुशील कुमार शिन्दे, पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली, कानून मंत्री कपिल सिब्बल, वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा, रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खडगे और विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद वकालत करते रहे हैं। मनमोहन सिंह के कार्यकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय से संबद्ध राज्यमंत्री वी नारायण स्वामई और सूचना व प्रसारण राज्यमंत्री मनीश तिवारी भी वकील रहे। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायवती और और उनके नंबर दो सतीश मिश्र भी एडवोकेट हैं। राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद ने भी वकालत की पढाई  की। इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिस्ठ अधिवक्ता केशरीनाथ त्रिपाठी ने भाजपा की सरकार में मंत्री पद के अलावा विधानसभा अध्यक्ष जैसा अहम पद संभाला। बतौर विधानसभा अध्यक्ष वह सूबे ही नहीं देश की राजनीति में भी चर्चित रहे और राजनीति के चाणक्य माने गए।
कुछ समय पहले तक कामयाब लोग राजनीति में नहीं आना चाहते थे, लेकिन अब बदलाव की बयार चल रही है। इन दिनों गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) के लोग, पत्रकार, बड़ी कंपनियों से जुड़े लोग, पूर्व नौकरशाह, आईआईएम-आईआईटी से पढ़े-लिखे पेशेवर, खिलाड़ी, वकील, बॉलीवुड हस्तियां, कला क्षेत्र के बड़े नाम, सेना में रहे लोग राजनीतिक दलों से जुड़ते नजर आ रहे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जाएगा, इसमें और तेजी आएगी। हाल ही में पूर्व थलसेनाध्यक्ष वी.के. सिंह, टीवी पत्रकार आशुतोष, मुंबई के पूर्व कमिश्नर सत्यपाल सिंह, डेक्कन एयर के गोपीनाथ, नृत्यांगना मल्लिका साराभाई, समाजसेवी मेधा पाटकर, आरबीएस की पूर्व चेयरपर्सन मीरा सान्याल, एनडीटीवी के पूर्व सीईओ समीर नायर, इंफोसिस के वी. बालाकृष्णन, संगीतकार बप्पी लाहिड़ी आदि प्रमुख हैं।

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