Sunday, 27 December 2015

सबकी उम्मीदों को पूरा करती कांग्रेस

            कांग्रेस दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतांत्रिक दलों में से एक है। भारतीय राश्ट्रीय कांग्रेस का उद्देष्य राजनीति की समानता है , जिसमें संसदीय लोकतंत्र पर आधारित एक समाजवादी राज्य की स्थापना षांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से की जा सकती है जो आर्थिक और सामाजिक अधिकारों और विष्व षांति और फेलोषिप के लिए महत्वपूर्ण है। भारतीय राश्ट्रीय कांग्रेस समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्ची श्रद्धा और भारत के संविधान के प्रति निश्ठा और संप्रभुता रखती है। भारतीय राश्ट्रीय कांग्रेस भारत की एकता और अखंण्डता को कायम रखेगी। अपने जन्म से लेकर अब तक, कांग्रेस में सभी वर्गों और धर्मों का समान प्रतिनिधित्व रहा है। कांग्रेस के पहले अध्यक्ष श्री डब्ल्यू सी. बनर्जी ईसाई थे, दूसरे अध्यक्ष श्री दादाभाई नौराजी पारसी थे और तीसरे अध्यक्ष जनाब बदरूदीन तैयबजी मुसलमान थे। अपनी धर्मनिरपेक्ष नीतियों की वजह से ही कांग्रेस की स्वीकार्यता आज भी समाज के हर तबके में समान रूप से है। गुलामी के बंधन में जकड़े भारत की तस्वीर बदलने के लिए करीब 130 साल पहले कांग्रेस पार्टी ने जन्म लिया था। भारतीय राश्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना सन 1885 में ए ओ ह्यूम ने दादाभाई नौरोजी, सुरेंद्रनाथ बनर्जी और मदनमोहन मालवीय के सहयोग से की। डब्ल्यू सी बनर्जी कांग्रेस के पहले अध्यक्ष बनाए गए। षुरूआत में कांग्रेस की स्थापना का उद्देष्य भारत की जनता की आवाज ब्रिटिष षासकों तक पहुंचाना था, लेकिन धीरे-धीरे ये संवाद आजादी की मांग में बदलता चला गया।  प्रथम विष्वयुद्ध के बाद महात्मा गांधी के साथ कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का नारा बुलंद कर दिया और 1947 में भारत आजाद हो गया।
1947 में जब देष आजाद हुआ, तो देष ने बेहिचक षासन की बागडोर कांग्रेस के हाथ में सौंप दी। पंडित जवाहर लाल नेहरु देष की पसंद बन कर उभरे और देष के पहले   प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने षपथ ली। पंडित नेहरु के नेतृत्व में देष ने विकास की नई ऊंचाइयों को छुआ और आर्थिक आजादी के सपने सच होने लगे। पंडित नेहरु के साथ कांग्रेस ने 1952, 1957 और 1962 के आम चुनावों में भारी बहुमत से विजय प्राप्त की। अपनी स्थापना और विषेशकर आजादी के बाद से, कांग्रेस की लोकप्रियता अपने षिखर पर रही है। भारत की जनता ने आजादी के बाद से अब तक सबसे ज्यादा कांग्रेस पर ही भरोसा दिखाया है। आजादी के बाद से अभी तक हुए कुल 15 आम चुनावों में 6 बार कांग्रेस पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई है और 4 बार गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर चुकी है। यानी कि पिछले 67 सालों में से करीब 50 साल, कांग्रेस देष की जनता की पसंद बनकर रही है। ये कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय राजनीति के पटल पर चाहे जितने दल उभरे हैं, देष की जनता के दिल में कांग्रेस ही राज करती है।
लोकतांत्रिक परंपराओं और धर्मनिरपेक्षता में यकीन करने वाली कांग्रेस देष के सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान के लिए निरंतर प्रयासरत रही है। 1931 में सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस के ऐतिहासिक कराची अधिवेषन में मूल अधिकारों के विशय में महात्मा गांधी ने एक प्रस्ताव पेष किया था, जिसमें कहा गया था कि देष की जनता का षोशण न हो इसके लिए जरूरी है कि राजनीतिक आजादी के साथ-साथ करोडों गरीबों को असली मायनों में आर्थिक आजादी मिले। 1947 में प्रधानमंत्री बनने के बाद पंडित नेहरु ने इस वायदे को पूरा किया। वो देष को आर्थिक और सामाजिक स्वावलंबन की दिषा में आगे ले गए। कांग्रेस ने संपत्ति और उत्पादन के साधनों को कुछ चुनिंदा लोगों के कब्जे से निकाल कर आम आदमी तक पहुंचाया और उन्हें सही मायनों में भूख, गरीबी और असमानता से छुटकारा दिलाकर आजादी के पथ पर अग्रसर करने में प्रभावकारी भूमिका निभाई। श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ कांग्रेस ने समाजवाद के नारे को और जोरदार तरीके से बुलंद किया और इसे राश्ट्रवाद से जोड़ते हुए देष को एक सूत्र में बांध दिया। देष में गरीबों की आवाज सुनने वाली, उनका दर्द समझने वाली कांग्रेस ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा बुलंद किया जो कांग्रेस के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ। 1984 में श्री राजीव गांधी के साथ कांग्रेस ने देष को संचार क्रांति के पथ पर अग्रसर किया। 21वीं सदी के भारत की मौजूदा तस्वीर को बनाने का श्रेय कांग्रेस और श्री राजीव गांधी को ही जाता है। नब्बे के दषक में जब अर्थव्यवस्था डूब रही थी, तब कांग्रेस के श्री पीवी नरसिंह राव ने देष को एक नया जीवन दिया। कांग्रेस के नेतृत्व में श्री नरसिंहराव और श्री मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण के जरिए आम आदमी की उम्मीदों को साकार किया।
हमारे देष के समकालीन इतिहास पर कांग्रेस की एक के बाद एक बनी सरकारों की उपलब्धियों की अमिट छाप है। आर.एस.एस.-भाजपा गठबंधन ने कांग्रेस द्वारा किए गए हर काम का मखौल उडाने उसे तोड़-मरोड़ कर पेष करने और अर्थ का अनर्थ करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।
यह कांग्रेस ही थी, जिसने भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी और जीती। हिंदू महासभा और राश्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में काम कर रहे भारतीय जनता पार्टी के पूर्वजों ने तो भारत छोड़ों आंदोलन के दिनों में महात्मा गांधी द्वारा किए गए ‘करेंगे या मरेंगे’ के आह्वान का बहिश्कार किया था। यह कांग्रेस ही है, जिसके गांधी जी, इंदिरा जी और राजीव जी जैसे नेताओं ने देष की सेवा में अपनी जान भी कुर्बान कर दी। यह कांग्रेस ही है, जिसने संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की और उसकी जड़ों को सींचने का काम किया। यह कांग्रेस ही थी, जिसने आमूल और षांतिपूर्ण सामाजिक-आर्थिक बदलाव के राश्ट्रीय घोशणा पत्र भारतीय संविधान की रचना संभव बनाई। यह कांग्रेस ही थी, जिसने सदियों से षोशण और भेदभाव का षिकार हो रहे लोगों को गरिमामयी जिंदगी मुहैया कराने के लिए सामाजिक सुधारों की मुहिम की अगुवाई की। यह कांग्रेस ही है, जिसने भारत की राजनीतिक एकता और सार्वभौमिकता की हमेषा रक्षा की।
यह कांग्रेस ही है, जिसने अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने, देष का औद्योगीकरण करने, तरक्की की राह के दरवाजे करोड़ों भारतवासियों के लिए खोलने और खासकर दलितों और आदिवासियों को रोजगार मुहैया कराने, अनदेखी का षिकार हो रहे पिछड़े इलाकों में विकास करने, देष को तकनीकी विकास के नए षिखर पर ले जाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र का निर्माण किया।
यह कांग्रेस ही थी, जिसने जमींदारी प्रथा को खत्म किया और भूमि सुधार के कार्यक्रम षुरू किए। कांग्रेस ही देष में हरित क्रांति और ष्वेत क्रांति लाई और इन कदमों ने हमारे किसानों तथा खेत मजदूरों की जिंदगी में नई सपंन्नता पैदा की और भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक मुल्क बनाया। यह कांग्रेस ही थी, जिसने मुल्क में वैज्ञानिक-भाव पैदा किया और विज्ञान संस्थाओं का एक ऐसा ढांचा तैयार किया कि भारत नाभिकीय, अंतरिक्ष और मिसाइल जगत की एक बड़ी ताकत बना और सूचना क्रांति की दुनिया में हमने मील के पत्थर कायम किए। मई 1998 में भारत परमाणु विस्फोट सिर्फ इसलिए कर पाया कि इसकी नींव कांग्रेस ने पहले ही तैयार कर दी थी। अग्नि जैसी मिसाइलें और इनसेट जैसे उपग्रह कांग्रेस के वसीयतनाते के पन्ने हैं।
कांग्रेस ने ही गरीबी मिटाने और ग्रामीण इलाकों का विकास करने के व्यापक कार्यक्रमों की षुरुआत की। इन कार्यक्रमों पर हुए अमल ने गांवों की गरीबी दूर करने में खासी भूमिका अदा की और समाज के सबसे वंचित तबके की दिक्कतें दूर करने में भारी मदद की। आजादी मिलने के वक्त जिस देष की दो तिहाई आबादी गरीबी की रेखा के नीचे जिंदगी बसर कर रही थी, आज आजादी के पचास बरस के भीतर ही उस देष की दो तिहाई आबादी गरीबी की रेखा के ऊपर है। भारत का मध्य-वर्ग कांग्रेस ने निर्मित किया और इस पर हम गर्व करते हैं।
कांग्रेस ने ही अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों की बेहतरी और कल्याण के लिए उन्हें आरक्षण दिया और उनके लिए समाज कल्याण तथा आर्थिक विकास की कई योजनाएं षुरू कीं।
यह कांग्रेस ही थी, जिसने महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के जरिए पूर्ण स्वराज देने के आह्वान का अनुगमन किया और देष भर के गांवों और मुहल्लों में जमीनी लोकतंत्र के जरिए जमीनी विकास को प्रोत्साहन दिया। कांग्रेस ने ही पंचायती राज और नगर निकायों से संबंधित संविधान संषोधन की रूपरेखा तैयार की और पंचायती राज की स्थाना के लिए संविधान में जरूरी संषोधन किए।
कांग्रेस ने ही संगठित क्षेत्र के कामगारों और अनुबंधित मजदूरों को रोजगार की सुरक्षा तथा उचित पारिश्रमिक दिलाने के लिए व्यापक श्रम कानून बनाए और उन पर अमल कराया। कांग्रेस ने ही देष के कुल कामगारों के उस 93 फीसदी हिस्से को सामाजिक सुरक्षा देने की प्रक्रिया षुरू कराई, जो असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है। यह कांग्रेस ही है, जिसने उच्च और तकनीकी षिक्षा के क्षेत्र में ऐसे क्रांतिकारी कदम उठाए कि भारतीय मस्तिश्क आज दुनिया में सबसे कीमती मस्तिश्क माना जाता है। कांग्रेस ने ही देष भर में भारतीय तकनीकी संस्थान आई.आई.टी.  और भारतीय प्रबंधन संस्थान  आई.आई.एम. खोले और पूरे मुल्क में षोध प्रयोगषालाओं की स्थापना की।
कांग्रेस देष का अकेला अखिल भारतीय राजनीतिक दल है- अकेली ऐसी राजनीतिक ताकत, जो इस विषाल देष के हर इलाके में मौजूद है। सत्ता में रह या सत्ता के बाहर, कांग्रेस देष भर के गांवों, कस्बों और षहरों में वास्तविक और प्रत्यक्ष तौर पर मौजूद है। कांग्रेस अकेला ऐसा राजनीतिक दल है, जिसे हमारे रंगबिरंगे समाज के हर वर्ग से षक्ति मिलती है, जिसे रह वर्ग का समर्थन हासिल है और जा हर वर्ग को पसंद आती है। कांग्रेस अकेला राजनीतिक दल है, जिसने अपने संगठन में अनुसूचति जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर रखी है।  कांग्रेस अकेला ऐसा राजनीतिक दल है, जिसके राजकाज का दर्षन लोकतांत्रिक मूल्यों, सामाजिक न्याया के साथ होने वाली आर्थिक तरक्की और सामाजिक उदारतावाद एवं आर्थिक उदारीकरण के सामंजस्य गुंथा हुआ है। कांग्रेस संवाद में विष्वास करती है, अनबन में नहीं। कांग्रेस समायोजन में विष्वास करती है, कटुता में नहीं। कांग्रेस अकेला ऐसा राजनीतिक दल है, जिसके राजकाज का दर्षन एक मजबूत केंद्र द्वारा मजबूत राज्यों और षक्तिसंपन्न स्वायत्त निकायों के साथ लक्ष्यों को पाने के लिए काम करने पर आधारित है। कांग्रेस का मकसद है - राजनीतिक से लोकनीति, ग्रामसभा से लोकसभा।
कांग्रेस हमेषा नौजवानों का राजनीतिक दल रहा है। कांग्रेस बुजुर्गियत और वरिश्ठता का सदा सम्मान करती है, लेकिन युवा ऊर्जा और गतिषीलता हमेषा ही कांग्रेस की पहचान रहे हैं। 1989 में श्री राजीव गांधी ने ही मतदान कर सकने की उम्र घटा कर 18 साल की थी। राजीव जी ने ही स्वामी विवेकांनद के जन्म दिन 12 जनवरी को राश्ट्रीय युवा दिवस घोशित किया था। राजीव जी ने ही नेहरू युवा केंद्र की गतिविधियों का देष के हर जिले में विस्तार किया था। कांग्रेस की नीतियों का जन्म हमेषा राजनीतिक तौर पर एकजुट, आर्थिक तौर पर संपन्न, सामाजिक तौर पर न्यायसम्मत और सांस्कृति तौर पर समरस भारत के निर्माण का नजरिया सामने रख कर होता रहा है। इन नीतियों को कभी भी बिना सोचे-समझे सिद्धांतों या खोखली हठधर्मिता या मंत्रों में तब्दील नहीं होने दिया गया। कांग्रेस ने हमेषा समय की जरूरतों के मुताबिक इन नीतियों में सकारात्मक बदलाव के लिए जगह रखी। कांग्रेस सदा व्यावहारिक रही। कांग्रेस हमेषा नई चुनौतियों का मुकाबला करने को तैयार रही। नतीजतन, बुनियादी सिद्धांतों के प्रति वफादारी की भावना ने नर्द जरूरतों के मुताबिक खुद को तैयार करने के काम में कभी अड़चन महसूस नहीं होने दी।
1950 के दषक में भूमि सुधारों, सामुदायिक विकास, सार्वजनिक क्षेत्र की स्थापना और कृशि, उद्योग, सिचांई, षिक्षा, विज्ञान, वगैरह के आधारभूत ढांचे को विकसित करने की जरूरत थी। कांग्रेस ने सुनिष्चित किया कि ये सभी काम पूरे हों। 19६0 और 1970 में गरीबी हटाने के लिए सीधा हमला बोलने, कृशि और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में एकदम नया रुख अपनाने, तेल के घरेलू भंडार का पता लगाने और उसका उत्खनन करने और किसानों, बुनकरों कुटीर उद्योगों तथा छोटे दूकानदारों को प्राथमिकता देने के साथ बड़े उद्योगों का ध्यान रखने और अन्य सामाजिक जरूरतों एवं आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बैंकों के राश्ट्रीयकरण की जरूरत थी। कांग्रेस ने सुनिष्चित किया कि ये सभी काम पूरे हों। 1980 के दषक में लोगों की दिक्कतों को दूर करने और इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों से निबटने के लिए उद्योगों का आधुनिकीकरण करने के मकसद से विज्ञान और टकनालाजी पर नए सिरे से जोर देने की जरूरत थी। इस दौर में भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर और दूरसंचार के क्षेत्र में भी तेजी से विकसित करने की जरूरत थी। कांग्रेस ने सुनिष्चित किया कि ये सभी काम पूरे हों।
1990 के दषक में दुनिया के बदलने आर्थिक परिदृष्य में भारत को जगह दिलाने के लिए आर्थिक तरक्की की रफ्तार को तेज करने आर्थिक सुधारों तथा उदारीकरण के साहसिक कदम उठाने और निजी क्षेत्र की भूमिका को व्यापक बनाने की जरूरत थी। आर्थिक विकास में सरकार की भूमिका की नई परिभाशा रचने और संविधान सम्मत पंचायती राज की संस्थाओं एवं नगर निकायों को स्वायत्तषासी इकाइयों के तौर पर स्थापित करना भी इस दौर की जरूरत थी। कांग्रेस ने सुनिष्ति किया कि ये सभी काम पूरे हों। कांग्रेस देषवासियों को एक सच्चा वचन देना चाहती है कि वह सभी लोगों के बीच षांति फिर कायम करेगी, सामाजिक सद्भाव पर जोर दे कर धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को मजबूत बनाएगी, सांस्कृतिक बहुलता और कानून का राज सुनिष्चित करेगी और देष के हर परिवार के लिए एक सुरक्षित आर्थिक भविश्य का निर्माण करेगी। देष भर में सामाजिक सद्भाव और एकता को बनाए रखने के लिए बिना किसी भय और पक्षपता के कानूनों को लागू किया जाएगा। इस मामले में किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा।
कांग्रेस कभी भी पारंपरिक अर्थों वाला राजनीतिक दल नहीं रहा। वह हमेषा एक व्यापक राश्ट्रीय आंदोलन की तरह रही है। पिछले 118 साल में कांग्रेस ने विभिन्न सामाजिक पृश्ठभूमि रखने वाले लोगों को देष सेवा की लिए साथ लाने के मकसद से असाधारणतौर पर व्यापक मंच की तरह काम किया है। कांग्रेस भारत-विचार की ऐसी अभिव्यक्ति है, जैसा कोई और राजनीतिक दल नहीं। कांग्रेस के लिए भारतीय राश्ट्रवाद सबको सम्मिलित करने वाला और सर्वदेषीय तत्व है। राश्ट्रवाद, जो इस देष की संपन्न विरासत के हर रंग से सष्जनात्मकता ग्रहण करता है। राश्ट्रवाद, जो संकीर्ण और धर्मान्ध नहीं है, बल्कि हमारी मिलीजुली संस्कृति में भारत-भूूमि पर मौजूद हर धर्म के योगदान का उत्सव मनाता है। राश्ट्रवाद, जिसमें प्रत्येक भारतीय का और हर उस चीज का जो भारतीय है, समान और गरिमापूर्ण स्थान है। राश्ट्रवाद, जो भारत को भावनात्मक तौर पर जोड़े रखता है। भारतीय जनता पार्टी का सांस्कृतिक राश्ट्रवाद भारतीयों को भावनात्मक तौर पर तोड़ने का हथियार है। कांग्रेस भारत को सर्वसम्मति के जरिए जोड़ रखने का काम करती है। भाजपा भारत को विवादों के जरिए तोड़ने का काम करती है।
कांग्रेस को इस बात की गहरी चिंता है कि पिछले कुछ वर्शों में धर्मनिरपेक्षता पर सबसे गंभीर हमले लगातार हो रहे हैं। कांग्रेस के लिए धर्म निरपेक्षता का मतलब है पूर्ण स्वतंत्रता और सभी धर्मों का पूरा आदर। धर्म निरपेक्षता का मतलब है सभी धर्मों के मानने वालों को समान अधिकार और धर्म के आधार पर किसी के भी साथ कोई भेदभाव नहीं। सबसे बढ़कर इसका मतलब है हर तरह की सांप्रदायिकता को ठोस विरोध।
हमारे समाज में नफरत और अलगाव फैलाने के लिए किसी भी धर्म का दुरूपयोग करना सांप्रदायिकता है। लोकप्रिय भावनाओं को आपसी दुर्भावना भड़काने के लिए किसी भी धर्म का दुरूपयोग करना सांप्रदायिकता है। ज्यादातर भारतीय दूसरे धर्मो के प्रति आदर का भाव रखते हैं। ज्यादातर भारतीय दूसरे भारतीयों के साथ मिलजुल कर षांति से रहना चाहते हैं, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। लेकिन कुछ भारतीय अपने धर्म के स्वंयभू संरक्षक बन गए हैं। ये ही वे लोग हैं, जो सामाजिक सद्भाव को नश्ट करना चाहते हैं। ये ही वे लोग हैं, जो हमें दो समुदायों में नफरत फैलाने के लिए खुद ही आविश्कृत कर लिए गए और तोड़-मरोड़ कर बताए गए हमारे अतीत का हमें गुलाम बना कर रखना चाहते हैं। धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई का असली मैदान यही है। यह बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक मुद्दे से कहीं बडा़मसला है। दरअसल यह संघर्श इस मुल्क के सभी धर्मों के सार को बचाए रखने की कोषिष कर रही ताकतों और जानबूझ कर, चुनावी मकसदों की वजह से और मंजूर नहीं किए जा सकने लायक वैचारिक कारणों का हवाला दे कर इस मिलीजुली संस्कृति को नश्ट करने पर आमादा ताकतों के बीच है।
धर्मनिरपेक्षता प्रत्येक कांग्रेस कार्यकर्ता के लिए आस्था का विशय है। कांग्रेस के दो महानतम नायकों ने धर्मनिरपेक्षता के आदर्षों की बलिवेदी पर अपने प्राण न्योछावर कर दिये, भारत की धर्मनिरपेक्ष विरासत संरक्षित और सुरक्षित रहे, इसके लिए उन्होंने अपना जीवन दे दिया । पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनके समान अन्य नेता भारत के         धर्मनिरपेक्ष बने रहने के लिए आजीवन अथक परिश्रम करते रहे, क्योंकि वे जानते थे कि बिना धर्मनिरपेक्षता के भारत संगठित और षक्तिषाली नहीं बना रह सकेगा।
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म-विरोधी होना या धर्म के प्रति नकारात्मक या निश्क्रिय     दृश्टिकोण रखना नहीं है। हमारे देष में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ केवल सभी धर्मों के प्रति समान आदर रखना और धर्म से राजनीति का स्पश्ट विभाजन ही हो सकता है। धर्म व्यक्तियों का अपना निजी विशय है। राजनीति का सारा मतलब सार्वजनिक जन-जीवन में है। धर्म का लोगों को झकट्ठा करने, उनकी भावनाएं और संवेदनाएं उभाड़    ने के लिए बतौर हथियार इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। राजनीतिक लक्ष्यों के लिए    धर्म के उपयोग को कांग्रेस अस्वीकार करती है। वह धार्मिक भावनाएं उभाड़कर लोगों को एकजुट करने के तरीके को भी अस्वीकार करती है।
कांग्रेस सभी नागरिकों को समान दर्ज देती है। तथापि वह कई प्रकार के अल्पसंख्यकों को मान्यता देती है क्योंकि उन्हें कुछ हानि और बाधाओं का षिकार होना पड़ा है और उन्हें विषेश सहायता की जरूरत हो सकती है। यही इतिहास और परंपरा का आदेष है और यही संविधान के प्रावधानों का अनुसरण करने की परंपरा है।
धर्मनिरपेक्षता पर बहस, अपने मूलरूप में, भारतीय दर्षन के स्वरूप पर ही, भारतीय संस्कृति के मूल अर्थ पर ही बहस उन लोगों के बीच है जो भारतीय संस्कृति को वह जो है, उस रूप में देखते हैं, अर्थात् विष्व की सर्वाधिक सहनषील और उदार जीवनषैली और वे जो अपनी कट्टरता, संकीर्ण मनोवष्त्ति और असहनषीलता के द्वारा उसे विकृत करना चाहते हैं। अतः धर्मनिरपेक्षता भारत की आत्मा के लिए ही एक लड़ाई है। यह लड़ाई है उसे नफरत के सौदागरों से बचाने के लिए, उन लोगों से बचाने के लिए जो भारतीय संस्कृति को समझने और उसकी ओर से बोलने का दावा तो करते है लेकिन जो वास्तव में, सदियों से भारतीय संस्कृति जिस बात पर अरूढ रही, उसी का अपमान कर रहे हैं। हमारे समाज के अर्द्ध-सुविधा प्राप्त तथा सुविधा-वंचित वर्गों एवं समुदायों में एक नया जोष और एक नयी चाह है। उनकी आवाज, षासन की संस्थाओं में पूर्ण प्रतिनिधित्व, सामाजिक मान्यता और राजनीतिक सत्ता के प्रत्यक्ष इस्तेमाल की उनकी बढ़ती आकांक्षाओं के प्रति कांग्रेस हमेषा से संवेदनषील रही है।
यह कांग्रेस ही है, जिसने उदारीकरण और आर्थिक सुधारों की षुरूआत की। ये कांग्रेस की ही आर्थिक नीतियां हैं, जिनपर चल कर एक कमजोर और औपनिवेषिक अर्थव्यवस्था ने अपने को एक पूूर्णतः आत्मनिर्भर और मजबूत अर्थव्यवस्था में तब्दील कर लिया। आर्थिक सुधारों को अगर ठीक से सोच-समझ कर लागू किया जाता रहा और इन सुधारों का प्रबंधन ठीक से होता रहा तो ये एक पीढ़ी के कार्यकाल में ही गरीबी को मिटा देने, रोजगार के बेतहाषा अवसर मुहैया कराने और भारत को दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं के षिखर पर पहुंचा देने का माद्दा रखते हैं। और, इन सबसे भी बड़ी  बात यह है कि, यह कांग्रेस ही है, जिसने भारत की तमाम अनेकताओं का उत्सव मनाते हुए मुल्क की एकता को कायम रखने का काम कर दिखाया।
श्रीमती इंदिरा गांधी के अनुसार, ‘‘एक राश्ट्र की ताकत अंततः वह अपने दम पर क्या कर सकता है, इस बात में होती है और इस चीज में नहीं होती कि वह दूसरों से क्या ले सकता है।’’ भारत आजादी के बाद पहले कुछ दषकों के दौरान तेजी से राज्य समर्थित औद्योगीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से आर्थिक आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में कामयाब हुआ। हरित क्रांति ने खाद्यान्न की कमी से जूझ रहे देष से खाद्यान्न आत्मनिर्भर देष में बदल दिया और ष्वेत क्रांति ने भारत को दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बना दिया। विषाल जल विद्युत परियोजना के निर्माण के जरिये भारत ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की राह पर अग्रसर हो चला और यूपीए सरकार के दौरान हमारा देष दुनिया के सबसे बड़े बिजली उत्पादकों में से एक बन गया। जब कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन सरकार 2004 में सत्ता में आयी तो सबसे बड़ी चुनौती स्वतंत्रता को अगले स्तर तक लेने जाने की थी। श्रीमती सोनिया गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए का प्राथमिक प्रयास प्रत्येक भारतीय की आजादी को भूख, अभाव और अषक्त बनने से सुरक्षित करने का था। यूपीए सरकार ने पाया कि विषुद्ध दान और भिक्षा की वस्तुओं के रूप में आम गरीब के लिये बनने वाली योजनाओं पर आधारित विकास मॉडल अषक्तीकरण के बुनियादी मुद्दे के समाधान में मदद नहीं कर पा रहा है। इसके अलावा, योजनाओं को धन की कमी का हवाला देकर या त्रुटिपूर्ण क्रियान्वयन की वजहों से खत्म किया जा सकता है। इसलिए कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने उन्हें षासन में हिस्सेदारी मुहैया कराने और सबसे जरुरी राज्यों को अधिक जवाबदेह बनाने की ताकत देने की मांग की। यूपीए सरकार ने षासन में अधिकार आधारित दृश्टिकोण को अपनाया और सूचना का अधिकार अधिनियम 2005, राश्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (बाद में इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राश्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम कर दिया गया), वन अधिकार अधिनियम 2006, निःषुल्क एवं अनिवार्य षिक्षा का अधिकार अधिनियम 2010 और राश्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के रूप में क्रांतिकारी कानूनों की षुरुआत की। भारतीय नागरिक सषक्त बने ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।
सूचना का अधिकार
कांग्रेस नेतष्त्व वाली यूपीए सरकार ने सरकार बनाने के लिये चुने जाने के एक साल के अंदर 2005 में अधिक पारदर्षिता लाने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम लागू किया। सूचना का अधिकार अधिनियम लोगों को ना केवल सवाल पूछने के लिए सषक्त बनाता है, बल्कि यह प्रषासन में अधिक पारदर्षिता चाहने वाले लोगों के हाथों में प्रभावी उपकरण भी बन गया। आरटीआई के तहत सवाल लगातार आ रहे हैं और सरकार कानूनी तौर पर जवाब देने के लिए बाध्य है।
इसे भारत में पारदर्षिता क्रांति से कम नहीं कहा जा सकता। सरकारों की पारदर्षिता और जवाबदेही सुनिष्चित करने में आरटीआई एक बड़ा बदलाव है। भारत के सूचना का अधिकार कानून को रोल मॉडल के रूप में देखा गया और दुनिया के कई देष इसका अनुकरण करने की मांग कर रहे हैं। आगे पारदर्षिता और जवाबदेही बढाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के तौर पर कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने वस्तु एवं सेवाओं के समयबद्ध वितरण और उनकी षिकायतों का निवारण के नागरिकों के अधिकार       विधेयक, 2011 को पेष किया।
महात्मा गांधी नरेगा
महात्मा गांधी राश्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार योजनाओं में से एक है और इसने लाखों भारतीयों में यह भरोसा जगाया है कि बेहतर भविश्य उनका इंतजार कर रहा है। संसद के अधिनियम के जरिये इसने ग्रामीण भारत को कानूनी अधिकार के तौर पर रोजगार तक पहुंच दी है, गरीबी और रोजगार के मुद्दे का समधान चुनने वाले राश्ट्र को बदलाव का रास्ता दिया है। आज मनरेगा का अध्ययन आईएलओ, संयुक्त राश्ट्र और कई सारे देषों द्वारा रोल मॉडल के रूप में अपनाने के लिये केस स्टडी के तौर पर किया जा रहा है।
पिछले सात वर्शों में सरकार ने मनरेगा के तहत 2 लाख करोड़ रुपये के करीब खर्च किए हैं, ताकि यह सुनिष्चित किया जा सके कि लाखों भारतीयों को गरीबी से बचने के लिए संसाधन मुहैया हों। वर्श 2012-13 में 4.08 परिवारों को 136.18 करोड़     मानव दिवस रोजगार प्रदान किया गया और इसमें 22 प्रतिषत अनुसूचित जाति के थे, 16 प्रतिषत अनुसूचित जनजाति के थे और 53 प्रतिषत महिलाएं थीं।
सबसे गरीब और खासकर सबसे वंचित लोगों को गारंटी के साथ न्यूनतम मजदूरी सहित 100 दिन के रोजगार से बुनियादी वित्तीय सुरक्षा और वित्तीय सषक्तिकरण, पलायन की आपा-धापी को रोकने और ग्रामीण भारत में स्थायी समुदायिक संपत्ति का निर्माण किया जाता है।


वन अधिकार अधिनियम
अनुसूचित जनजाति और परंपरागत वनवासी अधिनियम, 2006 (वन अधिकारों की मान्यता) पारित करके यूपीए सरकार ने पंडित जवाहर लाल नेहरु की ‘आदिवासी पंचषील’ की नीति को आगे बढाने का काम किया है, जिसमें उन्होंने आदिवासी विकास के लिए एक मॉडल का सुझाव दिया है, जो उन्हें अपने तरीके से जिंदगी जीने देता है और राश्ट्रीय मुख्यधारा में एकीकृत करने का अवसर भी प्रदान करता है।
‘आदिवासी पंचषील’ में वर्णित मुख्य बिंदुओं में से एक ‘भूमि और जंगलों में आदिवासी अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए’ था। वन अधिकार अधिनियम न केवल अपनी जमीन पर अपने अधिकार को मान्यता देता है बल्कि उन्हें अपने जीवन पर अधिक नियंत्रण भी प्रदान करता है। 31 जनवरी, 2012 तक की स्थिति के अनुसार पूरे देषभर से कुल 31,68,478 दावे प्राप्त हुए हैं। इनमें से 86 प्रतिषत दावों पर काम किया गया। लगभग 12.51 लाख आदिवासी परिवारों को कुल 17.60 लाख हेक्टेयर जमीन संबंधित राज्य सरकारों द्वारा उनके दावे का सत्यापन करने के बाद दी जा चुकी है।
षिक्षा का अधिकार
जब षिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) 1 अप्रैल, 2010 को अधिनियमित किया गया, तो कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने बच्चों की षिक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता को ठोस ढंग से जाहिर कर दिखाया। इसने भारत में हर बच्चे के लिए षिक्षा को कानूनी अधिकार बनाया है।
यह अधिनियम समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों के बच्चों के लिए सभी निजी स्कूलों में 25 प्रतिषत सीटों को आरक्षित करने आवष्यकता बताता है। यह कानून सभी गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों पर प्रैक्टिस का प्रतिबंध लगाता है, कोई दान या कैपिटेषन फीस और प्रवेष के लिए बच्चे या माता पिता के किसी भी तरह के साक्षात्कार पर रोक का प्रावधान करता है।
अधिनियम में यह भी प्रावधान किया गया है कि किसी भी बच्चे को एक ही कक्षा में रोका नहीं जा सकता, स्कूल से निकाला नहीं जा सकता या प्राथमिक षिक्षा के पूरा होने तक बोर्ड परीक्षा पास करना जरूरी होगा। इसमें बीच में ही पढ़ाई  छोड़ने वालों को उनकी उम्र के छात्रों के साथ बराबर लाने के लिए विषेश प्रषिक्षण का भी प्रावधान है।
षिक्षा का अधिकार अधिनियम पड़ोस के सभी इलाकों और षिक्षा की जरूरत वाले सभी बच्चों की पहचान की निगरानी की आवष्यकता और इन्हें प्रदान करने के लिए सुविधाओं की स्थापना की जरुरत बताता है। यह षायद दुनिया का पहला कानून होगा जो सरकार पर नामांकन, उपस्थिति और पढाई पूरी कराने की जिम्मेदारी डालता है।
खाद्य सुरक्षा विधेयक
राश्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक कानूनी रूप से भारत की 1.2 अरब जनता का 67 प्रतिषत को रियायती दर पर खाद्यान्न देने का समर्थन करता है और आम लोगों के लिए भोजन और पोशण सुरक्षा को सुनिष्चित करता है। यह भारतीयों की दो तिहाई आबादी को चावल, गेहूं और मोटे अनाज की लगभग 62 लाख टन आपूर्ति पर सालाना 1,25,000 करोड़ के अनुमानित सरकारी खर्च के साथ दुनिया की सबसे बड़ी ऐसी परियोजना होगी।
इस विधेयक के तहत महिलाओं और बच्चों के लिए पोशण के समर्थन पर विषेश ध्यान दिया गया है। निर्धारित पोशण संबंधी मानदंडों के अनुसार स्तनपान कराने वाली माताओं, गर्भवती महिलाओं को पौश्टिक भोजन के अलावा छह महीने तक कम से कम 6,000 रुपये का मातष्त्व लाभ प्राप्त करने का हक होगा। छह महीने से 14 साल के आयु वर्ग के बच्चों को निर्धारित पोशण संबंधी मानदंडों के अनुसार राषन घर ले जाने या गर्म पका हुआ भोजन पाने का हक होगा।
यह विधेयक अध्यादेष के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के तहत वस्तुओं के वितरण, कंप्यूटरीकरण सहित संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के माध्यम से घर के दरवाजे पर अनाज की आपूर्ति, एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक कम्प्यूटरीकरण, ‘आधार’ लाभार्थियों की विषिश्ट पहचान कर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में सुधारों के लिए प्रावधान करता है। इस      विधेयक में राज्य और जिला स्तर पर नामित अधिकारियों के साथ एक षिकायत निवारण तंत्र की भी व्यवस्था है। प्रत्येक और हर भारतीय को सषक्त बनाना एक      बड़ा काम है। इसमें राज्य और प्रत्येक नागरिक की निरंतर प्रतिबद्धता की आवष्यकता है। लेकिन यूपीए सरकार द्वारा लोगों को षासन में महत्वपूर्ण भागीदारी प्रदान की गई है और यह प्रक्रिया अच्छी तरह से और सही मायने में चल रही है।
श्रीमती सोनिया गांधी के अनुसार, ‘‘हम एक साथ मिलकर सागर जितनी गहरी और आकाष जितनी ऊंची किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।’’

Friday, 25 December 2015

'अ‍लविदा साधना जी'...

'झुमका गिरा रे, बरेली के बाजार में…' जैसे मशहूर गाने और बॉलीवुड में कई बड़ी और सुपरहिट देने वाली हिंदी सिनेजगत की जानी-मानी अदाकारा साधना का आज निधन हो गया। उन्होनें हिंदुजा अस्पताल में सुबह ली आखिरी सांस ली। उनके एक पारिवारिक मित्र ने बताया कि वह अर्से से कैंसर से जूझ रही थीं। साधना (74) के परिवार में एक गोद ली हुई बेटी है।साधना का जन्म 2 सितंबर 1941 को पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में हुआ था। साधना की शादी जाने-माने फिल्म निर्देशक रामकृष्ण नैयर से हुई थी।


उन्होंने 'आरज़ू', 'मेरे मेहबूब', 'लव इन शिमला', 'मेरा साया', 'वक़्त', 'आप आए बहार आई', 'वो कौन थी', 'राजकुमार', 'असली नकली', 'हम दोनों' जैसी कई मशहूर हिंदी फ़िल्मों में काम किया था. साधना का पूरा नाम साधना शिवदासानी था. उनके नाम पर 'साधना कट' हेयरस्टाइल बेहद मशहूर हुआ था. फिल्म ‘लव इन शिमला’ से ही साधना के हेयर स्टाइल ने खूब चर्चा बटोरी थी। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान साधना और रामकृष्ण नैयर को एक दूसरे से मोहब्बत हुई और दोनों ने 7 मार्च 1966 को शादी कर ली।
साधना फिल्म से जुड़े कार्यक्रमों में शरीक होना पसंद नहीं था। करीना कपूर की मां बबिता साधना की चचेरी बहन थीं। साधना ने फिल्म में मेरा साया, राजकुमार, वो कौन थी समेत करीब 35 फिल्मों में अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरा था। साधना के साथ फ़िल्म 'एक फूल दो माली' और 'इंतकाम' में काम कर चुके अभिनेता संजय ख़ान कहते हैं, ''मैंने उनके साथ अपनी दो सबसे कामयाब फ़िल्में की थीं. वो बेहद ख़ूबसूरत थीं. बहुत सुंदर तरीके से चलती थीं. उन्हें हेयर स्टाइलिंग की इतनी समझ थी की एक बार उन्होनें मुझे एक नया हेयर स्टाइल दिया था.'' उन्होंने कहा, ''साधना के पति आरके नैय्यर मेरे करीबी मित्र थे. मुझे याद है कि साधना जितनी ख़ूबसूरत थी उतनी ही साफ़ दिल की थीं.'' संजय ख़ान ने कहा, ''मैं उनसे मिलने नहीं गया क्योंकि मुझे मालूम था कि वो ठीक नहीं हैं. उन्हें दावत देने की मेरी ख़्वाहिश अधूरी रह गई. मैं उन्हें बीमार नहीं देखना चाहता था. बहुत दुख है.'' अभिनेत्री आशा पारेख के मुताबिक़, ''पिछले हफ़्ते ही हम मिले थे और हमारी पार्टियां होती थीं, जिनमें हम बीते ज़माने की एक्ट्रेसेज़– हेलेन, वहीदा रहमान, शम्मी आंटी और कई लोग मिलते थे. उनकी तबियत पहले से ख़राब थी और पांच-छह कोर्ट केस भी चल रहे थे, जिनके चलते वह परेशान थीं. उन्होंने कभी अपना दुख हमसे साझा नहीं किया.'' आशा पारेख कहती हैं, ''वह बहुत पॉपुलर थीं और उसका 'साधना कट' मुझे आज भी याद है. हम उनके घर ही जा रहे हैं.

Thursday, 24 December 2015

खुषी व उल्लास का पर्व क्रिसमस

क्रिसमस ईसाइयों का पवित्र पर्व है जिसे वह बड़ा दिन भी कहते हैं। प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को प्रभु ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में संपूर्ण विश्व में ईसाई समुदाय के लोग विभिन्न स्थानों पर अपनी-अपनी परंपराओं एवं रीति-रिवाजों के साथ श्रद्धा, भक्ति एवं निष्ठा के साथ मनाते हैं। क्रिसमस पर घर-घर और प्रत्येक चर्च में सजने वाला क्रिसमस ट्री आज पूरे विश्व में मशहूर हो चला है। रंगबिरंगी सजावटों से, रोशनियों, गिफ्ट्स से सजा-धजा यह क्रिसमस ट्री अपना अद्भुत आकर्षण पेश करता है। हर एक व्यक्ति इसके सौंदर्य में आप ही खो जाता है। रोशनी से नहाया हुआ क्रिसमस ट्री अपनी ख़ूबसूरती की अनोखी छटा बिखेरता है जिसे देखकर मन में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो जाता है।

 क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था। 25 दिसम्बर यीशु मसीह के जन्म की कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नहीं है और लगता है कि इस तिथि को एक रोमन पर्व या मकर संक्रांति (शीत अयनांत) से संबंध स्थापित करने के आधार पर चुना गया है। आधुनिक क्रिसमस की छुट्टियों मे एक दूसरे को उपहार देना, चर्च मे समारोह और विभिन्न सजावट करना शामिल है। इस सजावट के प्रदर्शन मे क्रिसमस का पेड़, रंग बिरंगी रोशनियाँ, बंडा, जन्म के झाँकी और हॉली आदि शामिल हैं। सांता क्लॉज़ (जिसे क्रिसमस का पिता भी कहा जाता है हालाँकि, दोनों का मूल भिन्न है) क्रिसमस से जुड़ी एक लोकप्रिय पौराणिक परंतु कल्पित शख्सियत है जिसे अक्सर क्रिसमस पर बच्चों के लिए तोहफे लाने के साथ जोड़ा जाता है। सांता के आधुनिक स्वरूप के लिए मीडिया मुख्य रूप से उत्तरदायी है।
क्रिसमस को सभी ईसाई लोग मनाते हैं और आजकल कई गैर ईसाई लोग भी इसे एक धर्मनिरपेक्ष, सांस्कृतिक उत्सव के रूप मे मनाते हैं। क्रिसमस के दौरान उपहारों का आदान प्रदान, सजावट का सामन और छुट्टी के दौरान मौजमस्ती के कारण यह एक बड़ी आर्थिक गतिविधि बन गया है और अधिकांश खुदरा विक्रेताओं के लिए इसका आना एक बड़ी घटना है।
ऐसा माना जाता है कि संत बोनिफेस इंग्लैंड को छोड़कर जर्मनी चले गए। जहां उनका उद्देश्य जर्मन लोगों को ईसा मसीह का संदेश सुनाना था। इस दौरान उन्होंने पाया कि कुछ लोग ईश्वर को संतुष्ट करने हेतु ओक वृक्ष के नीचे एक छोटे बालक की बलि दे रहे थे। गुस्से में आकर संत बोनिफेस ने वह ओक वृक्ष कट‍वा डाला और उसकी जगह फर का नया पौधा लगवाया जिसे संत बोनिफेस ने प्रभु यीशु मसीह के जन्म का प्रतीक माना और उनके अनुयायिओं ने उस पौधे को मोमबत्तियों से सजाया। तभी से क्रिसमस पर क्रिसमस ट्री सजाने की परंपरा चली आ रही है।
आधुनिक क्रिसमस ट्री की शुरुआत पश्चिम जर्मनी में हुई। मध्यकाल में एक लोकप्रिय नाटक के मंचन के दौरान ईडन गार्डन को दिखाने के लिए फर के पौधों का प्रयोग किया गया जिस पर सेब लटकाए गए। इस पेड़ को स्वर्ग वृक्ष का प्रतीक दिखाया गया था। उसके बाद जर्मनी के लोगों ने 24 दिसंबर को फर के पेड़ से अपने घर की सजावट करनी शुरू कर दी। इस पर रंगीन पत्रियों, कागजों और लकड़ी के तिकोने तख्ते सजाए जाते थे। 1605 में जर्मनी में पहली बार क्रिसमस ट्री को काग़ज़ के गुलाबों, सेब और केन्डीस से सजाया गया। पहले के समय में क्रिसमस ट्री के टॉप पर बालक यीशु का स्टेच्यू रखा जाता था। जिसका स्थान बाद में उस एंजल के स्टेच्यू ने ले लिया जिसने गरड़‍ियों को यीशु मसीह के जन्म के बारे में बताया था। कुछ समय बाद क्रिसमस ट्री के टॉप पर सितारे को रखा जाने लगा जिसने ज्योति‍‍षियों को यीशु का पता बताया था। आज भी क्रिसमस ट्री के टॉप पर सि‍तारा रखा जाता है। क्रिसमस ट्री के साथ-साथ ही सारे मसीह परिवार और चर्च में इस तारे को विशेष तौर पर लगाया जाता है। क्रिसमस से इस पेड़ का जुड़ाव सदियों पुराना बताया जाता है। यूरोप में कहते हैं कि जिस रात जीसस का जन्म हुआ, जंगल के सारे पेड़ जगमगाने लगे थे और फलों से लद गए थे। यही वजह है कि क्रिसमस के दिन इस पेड़ को घर लाकर सजाते हैं।
इसके अलावा इससे जुड़ी एक और कहानी मशहूर है वह यह कि एक बार क्रिसमस पूर्व की संध्या में कड़ाके की ठंड में एक छोटा बालक घूमते हुए खो जाता है। ठंड से बचने के लिए वह आसरे की तलाश करता है तभी उसको एक झोपड़ी दिखाई देती है। उस झोपड़ी में एक लकड़हारा अपने परिवार के साथ आग ताप रहा होता है। लड़का इस उम्मीद के साथ दरवाज़ा खटखटाता है कि उसे यहां आसरा मिल जाएगा। लकड़हारा दरवाज़ा खोलता है और उस बालक को वहां खड़ा पाता है। उस बालक को ठंड में ठिठुरता देख लकड़हारा उसे अंदर बुला लेता है। उसकी बीवी उस बच्चे की सेवा करती है। उसे नहला कर, खाना खिलाकर अपने सबसे छोटे बेटे के साथ उसे सुला देती है। क्रिसमस की सुबह लकड़हारे और उसके परिवार की नींद स्वर्गदूतों की गायन मंडली के स्वर से खुलती है और वे देखते हैं कि वह छोटा बालक यीशु मसीह के रूप में बदल गया है। यीशु बाहर जाते हैं और फर वृक्ष की एक डाल तोड़कर उस परिवार को धन्यवाद कहते हुए देते हैं। तभी से इस रात की याद में प्रत्येक मसीह परिवार अपने घर में क्रिसमस ट्री सजाता है।
दुनिया भर के अधिकतर देशों में यह २५ दिसम्बर को मनाया जाता है। क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसम्बर को ही जर्मनी तथा कुछ अन्य देशों में इससे जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं। ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में क्रिसमस से अगला दिन यानि 26 दिसम्बर बॉक्सिंग डे के रूप मे मनाया जाता है। कुछ कैथोलिक देशों में इसे सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहते हैं। आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को क्रिसमस मनाता है पूर्वी परंपरागत गिरिजा जो जुलियन कैलेंडर को मानता है वो जुलियन वेर्सिओं के अनुसार २५ दिसम्बर को क्रिसमस मनाता है, जो ज्यादा काम में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर में 7 जनवरी का दिन होता है क्योंकि इन दोनों कैलेंडरों में 13 दिनों का अन्तर होता है।क्रिसमस आमतौर पर बहुत सी देशों के लिए सबसे बड़ा वार्षिक आर्थिक उत्तेजना लाता है। सभी खुदरा दूकानों में बिक्री अचानक से बढ़ जाती है। दूकानों में नए ये सामान मिलने लगते हैं क्यूंकि लोग सजावट. के सामान. उपहार और अन्य सामान की करिदारी शुरू कर देते हैं। अमेरिका में, "क्रिसमस की खरीदारी का मौसम" आम तौर पर काला शुक्रवार (Black Friday), को शुरू होता है ये दिन थान्क्स्गिविंग (Thanksgiving) दिन के बाद आता है हलाकि बहुत से दुनाकन में क्रिसमस के सामान अक्टूबर के शुरुआत से ही मिलने लगते हैं।
अधिकांश क्षेत्रों में, क्रिसमस दिवस व्यापार और वाणिज्य के लिए इस वर्ष के कम से कम सक्रिय दिन है, लगभग सभी, वाणिज्यिक खुदरा और संस्थागत व्यवसाय बंद हो जाती हैं लगभग सभी उद्योगों गतिविधि समाप्त (वर्ष के किसी भी दूसरे दिन की तुलना में) इंग्लैंड और वेल्स (England and Wales) में (व्यापार) अधिनियम, 2004 (Christmas Day (Trading) Act 2004) क्रिसमस दिवस पर व्यापार से सभी बड़े दुकानों से बचाता है। स्कॉटलैंड वर्तमान में इसी तरह के कानून की योजना बना रही है।फ़िल्म स्टूडियो (Film studio) इन छुट्टी के दिनों में बहुत से मेहेंगी फिल्में रेलेसे करती है जिनमें जाया कर के क्रिसमस फिल्में काल्पनिक (fantasy) या उच्चा कोटि का ड्रामा होता था और उनका उत्पादन (production) मूल्य काफी ज्यादा होता था
एक अर्थशास्त्री (economists) के विश्लेषण के अनुसार रूढ़िवादी microeconomic सिद्धांत (microeconomic theory), उपहार में वृद्धि-देने के कारण.क्रिसमस एक deadweight हानि (deadweight loss) इस नुकसान की गणना उपहार देने और उपहार लेने के बीच के खर्च को जोड़ कर होता है ऐसा लगता है कि 2001 में क्रिसमस अमेरिका में अकेले एक 4 अरब डॉलर डेडवेट की हानी की वजह था।[41][42] पेचीदा कारकों की वजह से, इस विश्लेषण का प्रयोग कभी कभी वर्तमान मिक्रोइकनॉमिक सिद्धांत में संभव दोषों की चर्चा करने के लिए किया जाता है। अन्य डेडवेट हानियों me शामिल हैं क्रिसमस के प्रभावों पर्यावरण और इस तथ्य पर कि उपहार अक्सर सफेद हाथी (white elephant) की रखरखाव और भंडारण और अव्यवस्था में योगदान करने के लिए अधिरोपित करने की लागत, माना जाता है।

Tuesday, 8 December 2015

कांग्रेस में जान फूंकी सोनिया गांधी ने


कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी का आज 69वां जन्म दिन है। इटली के एक छोटे से गांव की एक साधारण सी लड़की के भारत के सबसे बड़े राजनीतिक घराने की बहू बनने की कहानी किसी परी कथा से कम नहीं है। सोनिया गांधी और राजीव गांधी की जिंदगी के शुरुआती 13 साल कई सियासी उतार-चढ़ावों से होकर गुजरे क्योंकि पूरा परिवार एक के बाद एक दुखद घटनाओं से जूझ रहा था। पहले विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मौत, उसके बाद इंदिरा गांधी की हत्या और सात साल बाद खुद राजीव गांधी की हत्या। हर बार सोनिया गांधी को शिद्दत से ये एहसास हो रहा था कि ये राजनीति ही थी जो राजीव गांधी और उनकी जिंदगी की दुश्मन साबित हुई थी, पर विकल्प कोई नहीं था। बाद के सालों ने दिखाया कि विदेश में पैदा हुई ये गांधी अपनी जिंदगी और इस देश की सियासत की किताब नए सिरे से लिखने को तैयार हो रही थी। उनकी भावना की तुलना बाद में उन्हें मिली फतह से की जा सकती है।

साल 2004 में बीजेपी ने सोनिया गांधी की ताकत को अनदेखा किया था और अब बीजेपी के सामने ही सोनिया गांधी एक खास अंदाज में अपने लिए लिखे भाषण पढ़कर उस भारत तक पहुंच रही थीं जो उतना चमकदार नहीं था जितना दावा किया जा रहा था। सोनिया गांधी की लगातार एक ही कोशिश थी कि कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए सहयोगी मिल जाएं। पुराने दुश्मन अब दोस्त का दर्जा पा गए थे। कुछ जातियों और समुदायों में सोनिया ने भी अपनी पैठ बना ली थी अचानक सोनिया एम करुणानिधि, वायको, लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान जैसे नेताओं की भी पसंद बन गई थीं।
हरकिशन सिंह सुरजीत से उनकी काफी बनती थी। एक बार वो सुरजीत के घर भी गई थीं। गर्मियों के दिन थे। सुरजीत ने कहा कि उनके घर में अंदर के कमरे में एक एयरकंडिश्नर है तो क्या तुम अंदर जा सकती हो और सोनिया गांधी तुरंत चली गईं। जिस कुर्सी पर वो बैठीं वो टूटी हुई थी। सोनिया गांधी ने उस पर तकिया रखा और बैठकर बातचीत करती रहीं। तब से सुरजीत से सोनिया गांधी की अच्छी दोस्ती हो गई और याद रखें कि ये कोई राजनीतिक दोस्ती नहीं थी, जिसके लिए वो पांच साल से मोलतोल कर रही थीं।
2004 चुनावों ने दिखाया कि दांव पर क्या लगा था। कांग्रेस का अस्तित्व ही नहीं बल्कि भारत की राजनीति में शायद एक गांधी की औकात भी दांव पर लगी थी। देश ने कांग्रेस को चुना और कांग्रेस ने सोनिया गांधी को और सोनिया गांधी ने उस शख्स को चुना जो सियासतदान कम था वफादार ज्यादा। उनके घर के बाहर कांग्रेसियों का हुजूम लग गया। पर सोनिया गांधी की तरफ से न हो चुकी थी। सोनिया गांधी के त्याग की कहानी देशभर में टेलीकास्ट हुई। सत्ता त्यागकर सोनिया और भी ताकतवर बन गई थीं। यहां तक कि बीजेपी ने भी माना कि ये सोनिया गांधी का मास्टरस्ट्रोक था।
ये उस नेता की कामयाबी थी, जिसे 1999 में सियासत का नौसिखिया कहा जाता था। राष्ट्रपति भवन के सामने कभी न भूलने वाली वो प्रेस कांफ्रेंस जब सोनिया गांधी ने जादुई आंकड़ों का ऐलान किया और कहा कि हमें यकीन है कि हमें 272 सीटें मिलेंगी। चुनाव अभियान का कर्ताधर्ता गलती कर सकता था, पर संसद में पार्टी प्रमुख के लिए कोई गुंजाइश नहीं थी। पता चला कि आंकड़ा 272 तक नहीं पहुंच पाया और 40 कम है तो चुनाव मजबूरी बन गए और सोनिया ने पाया कि उनके लिए अब अपनी छवि बनाए रखना बहुत जरूरी था। सोनिया गांधी से दोबारा गलती नहीं हुई। अब उन्होंने अपनी हर रुकावट को अपने फायदे में बदलना शुरू कर दिया। इस हद तक कि उनके विरोधी भी चौंक जाते थे।
राष्ट्रपति चुनाव, लाभ के पद के संकट और न्यूक्लियर करार पर तकरार जैसे जोखिम से गुजरकर सोनिया गांधी सत्ता में भागीदारी की कला अच्छी तरह जान गई थीं। एक सर्वशक्तिमान नेता और एक आज्ञाकारी प्रधानमंत्री के गठबंधन ने सत्ता में भागीदारी की नई परंपरा को जन्म दिया। सोनिया गांधी पार्टी के लिए जिम्मेदार थीं तो मनमोहन सरकार के लिए। ऐसी हिस्सेदारी पहले नहीं देखी गई थी फिर भी बहुत से लोग कहते हैं कि सत्ता सिर्फ सोनिया गांधी के पास ही रहती थी।
सोनिया गांधी ने १९९७ में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके ६२ दिनों के अंदर १९९८ में वो कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। उन्होंने सरकार बनाने की असफल कोशिश भी की। राजनीति में कदम रखने के बाद उनका विदेश में जन्म हुए होने का मुद्दा उठाया गया। उनकी कमज़ोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया गया। उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा लेकिन कांग्रेसियों ने उनका साथ नहीं छोड़ा और इन मुद्दों को नकारते रहे।
सोनिया गांधी अक्टूबर १९९९ में बेल्लारी, कर्नाटक से और साथ ही अपने दिवंगत पति के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी, उत्तर प्रदेश से लोकसभा के लिए चुनाव लड़ीं और करीब तीन लाख वोटों की विशाल बढ़त से विजयी हुईं। १९९९ में १३वीं लोक सभा में वे विपक्ष की नेता चुनी गयी। २००४ के चुनाव से पूर्व आम राय ये बनाई गई थी कि अटल बिहारी वाजपेयी ही प्रधान मंत्री बनेंगे पर सोनिया ने देश भर में घूमकर खूब प्रचार किया और सब को चौंका देने वाले नतीजों में यूपीए को अनपेक्षित २०० से ज़्यादा सीटें मिली। सोनिया गांधी स्वयं रायबरेली, उत्तर प्रदेश से सांसद चुनी गईं। वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिये कांग्रेस और सहयोगी दलों की सरकार का समर्थन करने का फ़ैसला किया जिससे कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों का स्पष्ट बहुमत पूरा हुआ। १६ मई २००४ को सोनिया गांधी १६-दलीय गंठबंधन की नेता चुनी गई जो वामपंथी दलों के सहयोग से सरकार बनाता जिसकी प्रधानमंत्री सोनिया गांधी बनती। सबको अपेक्षा थी की सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी और सबने उनका समर्थन किया। परंतु एन डी ए के नेताओं ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर आक्षेप लगाए। सुषमा स्वराज और उमा भारती ने घोषणा की कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो वे अपना सिर मुँडवा लेंगीं और भूमि पर ही सोयेंगीं। १८ मई को उन्होने मनमोहन सिंह को अपना उम्मीदवार बताया और पार्टी को उनका समर्थन करने का अनुरोध किया और प्रचारित किया कि सोनिया गांधी ने स्वेच्छा से प्रधानमंत्री नहीं बनने की घोषणा की है। कांग्रेसियों ने इसका खूब विरोध किया और उनसे इस फ़ैसले को बदलने का अनुरोध किया पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बनना उनका लक्ष्य कभी नहीं था। सब नेताओं ने मनमोहन सिंह का समर्थन किया और वे प्रधानमंत्री बने पर सोनिया को दल का तथा गठबंधन का अध्यक्ष चुना गया।

राष्ट्रीय सुझाव समिति का अध्यक्ष होने के कारण सोनिया गांधी पर लाभ के पद पर होने के साथ लोकसभा का सदस्य होने का आक्षेप लगा जिसके फलस्वरूप २३ मार्च २००६ को उन्होंने राष्ट्रीय सुझाव समिति के अध्यक्ष के पद और लोकसभा का सदस्यता दोनों से त्यागपत्र दे दिया। मई २००६ में वे रायबरेली, उत्तरप्रदेश से पुन: सांसद चुनी गई और उन्होंने अपने समीपस्थ प्रतिद्वंदी को चार लाख से अधिक वोटों से हराया। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर यूपीए के लिए देश की जनता से वोट मांगा। एक बार फिर यूपीए ने जीत हासिल की और सोनिया यूपीए की अध्यक्ष चुनी गई। महात्मा गांधी की वर्षगांठ के दिन २ अक्टूबर २००७ को सोनिया गांधी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित किया।
सोनिया गांधी ने बार-बार सरकार का फोकस आम आदमी की तरफ मोड़ने की कोशिश की। राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना, सूचना का अधिकार अधिनियम ये सभी तब आए जब 2006 तक वो नेशनल एडवाइजरी काउंसिल की अध्यक्ष थीं। इधर, दो साल से कम वक्त में दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष फिर बाहर निकलीं और अपने पारिवारिक गढ़ रायबरेली में चुनावी समर के लिए वापस लौटीं।
2009 में सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने देश के दूसरे हिस्सों पर भी ध्यान देना शुरू किया। बेशक दोनों देश के दूसरे इलाकों का दौरा करके पार्टी की नींव मजबूत करने में लगे हों, लेकिन रायबरेली और अमेठी में तो मानो जीत गांधी परिवार के खाते में पहले से ही लिख दी गई है।  साल 2013 के बाद एक के बाद एक हुए चुनावों में पार्टी की हार से नेहरू-गांधी की जमीन धीरे-धीरे उनके पैरों से खिसकने लगी। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की पकड़ कमजोर पड़ गई और देश की जनता ने उसे नकार दिया एनडीए को जहां एक ओर भारी बहुमत मिला वहीं कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई, ये कांग्रेस के लिए बेहद शर्मनाक हार थी, लगने लगा कि अब कांग्रेस के लिए दोबारा उभरना आसान नहीं होगा, लेकिन एक बार फिर सोनिया गांधी ने पार्टी को हार से उभारने के लिए पूरी तरह एक्टिव हो गई हैं। गिरती सेहत के बावजूद सोनिया गांधी आज भा कांग्रेस की ढाल बनकर खड़ी हैं।

संसद में दहाड़ी सोनिया गांधी



पटियाला हाउस कोर्ट में नेशनल हेराल्ड केस में सुनवाई टल गई है। अब सुनवाई 19 दिसंबर को होगी। आज कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को अदालत में पेश होना था। कल दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए सोनिया और राहुल को निचली अदालत में पेश होने को कहा था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि जो करना है कोर्ट को करना है। साथ ही उन्होंने कहा कि मै मैं इंदिरा गांधी की बहू हूं, मैं किसी से नहीं डरती। मैं क्यों अपसेट होऊं।
कोर्ट में सोनिया-राहुल गांधी की तरफ से कहा गया कि हम कोर्ट में पेश होने के लिए तैयार हैं। लेकिन चूंकि राहुल चेन्नई में हैं और सोनिया गांधी संसद सत्र में व्यस्त हैं, सैम पित्रोदा अमेरिका में हैं, इसलिए कुछ दिन की मोहलत चाहिए। इस पर कोर्ट ने 19 दिसंबर को पेशी की तारीख तय कर दी।
राज्यसभा में कांग्रेसी सांसदों ने 'तानाशाही नहीं चलेगी', 'बदले की राजनीति नहीं चलेगी' के नारे लगाए। वहीं लोकसभा में मोदी सरकार होश में आओ के नारे लगे।
 नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी कोर्ट में पेशी को लेकर कांग्रेस सरकार पर हमलावर रही। सोनिया गांधी के बाद राहुल ने भी इसे लेकर सरकार पर वार किया। राहुल ने पार्टी की तर्ज पर इसे सरकार का राजनीतिक बदला करार दिया। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी  तमिलनाडु में बाढ़ के हालात का जायजा लेने पुड्डचेरी पहुंचे। नेशनल हेराल्ड केस के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हां ये राजनीतिक बदला है। केंद्र सरकार मुझे ऐसे ही सवाल पूछने से रोकती है, लेकिन मैं चुप नहीं बैठूंगा। मैं सवाल पूछता रहूंगा और केंद्र सरकार पर दबाव बनाता रहूंगा।
 कांग्रेस ने इस मामले में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से दाखिल याचिका को राजनीतिक बदला बताया। प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, गुलाम नबी आजाद और रणदीप सुरजेवाला ने सरकार पर जमकर हमला बोला। इसे लेकर संसद के दोनों सदनों में भी जमकर बवाल मचा।

Wednesday, 2 December 2015

Honoring and Dutiful Advocates' Day



Advocate's day is celebrated in India by the lawyer community on the 3rd of December to mark the birth anniversary of Rajendra Prasad, First President and a very eminent lawyer.  Dr. Rajendra Prasad, the First President of India and a very eminent lawyer himself. Advocates' Day brings together labor officials, labor representatives, public and private sector managers, management representatives and labor relations neutrals from across the States and Territories to hear national and regional speakers addressing the key issues of the day. Dr. Rajendra Prasad (December 3, 1884 – February 28, 1963) was the first President of Independent India. He was an independence activist and as a leader of the Congress Party, played a prominent role in the Indian Independence Movement. He served as President of the Constituent Assembly that drafted the constitution of the Republic from 1948 to 1950. He had also served as a Cabinet Minister briefly in the first Government of Independent India.
He was born in Zeradei, in the Siwan district of Bihar near Chapra. His father, Mahadev Sahai, was a Persian and Sanskrit language scholar; his mother, Kamleshwari Devi, was a devout lady. He was married at the age of 12 to Rajvanshi Devi. His dauntless determination towards the service of nation impressed many prominent leaders of his genre who came under his tutelage. He passed in 1915 with a Gold medal in Masters in Law examination with honors and went on to complete his Doctorate in Law. Dr. Rajendra Prasad used to practice his Law and studies in Bhagalpur (Bihar), and was a very popular and eminent figure over there during that ceremonious era. Rajendra Prasad was greatly moved by the dedication, courage and conviction of Mahatma Gandhi and he quit as a Senator of the University in 1921 and was drawn into the Indian freedom struggle.
He was elected as the President of Indian National Congress during the Bombay session in October 1934 and took active role in meeting its objectives. After India became independent he was elected as the President of India. As the first President, he was independent and unwilling to allow the Prime Minister or the party to usurp his constitutional prerogatives. However, following the tussle over the enactment of the Hindu Code Bill, he moderated his stance. He set several important precedents for later Presidents to follow. In 1962, after 12 years as President, he announced his decision to retire and was Succeeded by Dr. Sarvepalli Radhakrishnan. He was subsequently awarded the 'Bharat Ratna', the nation's highest civilian award in 1962, the order which was established by himself, on January 2nd, 1954. Advocates' day is observed in India to commemorate his birthday.