Friday, 30 October 2015

स्वयं को सफल साबित किया इंदिरा गाँधी ने



भारत के जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, उन सभी की अनेक विशेषताएँ हो सकती हैं, लेकिन इंदिरा गाँधी के रूप में जो प्रधानमंत्री भारत भूमि को प्राप्त हुआ, वैसा प्रधानमंत्री अभी तक दूसरा नहीं हुआ है क्योंकि एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विभिन्न चुनौतियों का मुक़ाबला करने में सफलता प्राप्त की। युद्ध हो, विपक्ष की ग़लतियाँ हों, कूटनीति का अंतर्राष्ट्रीय मैदान हो अथवा देश की कोई समस्या हो- इंदिरा गाँधी ने अक्सर स्वयं को सफल साबित किया। इंदिरा गाँधी, नेहरू के द्वारा शुरू की गई औद्योगिक विकास की अर्द्ध समाजवादी नीतियों पर क़ायम रहीं। उन्होंने सोवियत संघ के साथ नज़दीकी सम्बन्ध क़ायम किए और पाकिस्तान-भारत विवाद के दौरान समर्थन के लिए उसी पर आश्रित रहीं। जिन्होंने इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल को देखा है, वे लोग यह मानते हैं कि इंदिरा गाँधी में अपार साहस, निर्णय शक्ति और धैर्य था।
इंदिरा प्रियदर्शिनी को परिवार के माहौल में राजनीतिक विचारधारा विरासत में प्राप्त हुई थी। यही कारण है कि पति फ़ीरोज़ गाँधी की मृत्यु से पूर्व ही इंदिरा गाँधी प्रमुख राजनीतिज्ञ बन गई थीं। कांग्रेस पार्टी की कार्यकारिणी में इनका चयन 1955 में ही हो गया था। वह कांग्रेस संसदीय मंडल की भी सदस्या रहीं। पंडित नेहरू इनके साथ राजनीतिक परामर्श करते और उन परामर्शों पर अमल भी करते थे।
इंदिरा गाँधी को राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाने के आरोप उस समय पंडित नेहरू पर लगे। 1959 में जब इंदिरा को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया तो कई आलोचकों ने दबी जुबान से पंडित नेहरू को पार्टी में परिवारवाद फैलाने का दोषी ठहराया था। लेकिन वे आलोचना इतने मुखर नहीं थे कि उनकी बातों पर तवज्जो दी जाती। वस्तुतः इंदिरा गाँधी ने समाज, पार्टी और देश के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए थे। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त थी। विदेशी राजनयिक भी उनकी प्रशंसा करते थे। इस कारण आलोचना दूध में उठे झाग की तरह बैठ गई। कांग्रेस अध्यक्षा के रूप में इंदिरा गाँधी ने अपने कौशल से कई समस्याओं का निदान किया। उन्होंने नारी शाक्ति को महत्त्व देते हुए उन्हें कांग्रेस पार्टी में महत्त्वपूर्ण पद प्रदान किए। युवा शक्ति को लेकर भी उन्होंने अभूतपूर्व निर्णय लिए। इंदिरा गाँधी 42 वर्ष की उम्र में कांग्रेस अध्यक्षा बनी थीं।
पाकिस्तान से युद्ध के बाद इंदिरा गाँधी ने अपना सारा ध्यान देश के विकास की ओर केंद्रित कर दिया। संसद में उन्हें बहुमत प्राप्त था और निर्णय लेने में स्वतंत्रता थी। उन्होंने ऐसे उद्योगों को रेखांकित किया जिनका कुशल उपयोग नहीं हो रहा था। उनमें से एक बीमा उद्योग था और दूसरा कोयला उद्योग। बीमा कंपनियाँ भारी मुनाफा अर्जित कर रही थीं। लेकिन उनकी पूँजी से देश का विकास नहीं हो रहा था। वह पूँजी निजी हाथों में जा रही थी। बीमा कंपनियों के नियमों में पारदर्शिता का अभाव होने के कारण जनता को वैसे लाभ नहीं प्राप्त हो रहे थे, जैसे होने चाहिए थे। लिहाज़ा अगस्त, 1972 में बीमा कारोबार का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
15 जून, 1975 को जे.पी. और समर्थिक विपक्ष ने आंदोलन को उग्र रूप दे दिया। साथ ही यह तय किया गया कि पूरे देश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया जाए और प्रधानमंत्री आवास को भी घेर लिया जाए। आवास में मौजूद लोगों को नज़रबंद करके किसी को भी अंदर प्रविष्ट न होने दिया जाए। इन्हीं परिस्थितियों के कारण प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 25 जून, 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद से आपातकाल लागू करने की हस्ताक्षरित स्वीकृति प्राप्त कर ली। इस प्रकार 26 जून, 1975 की प्रातः देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। आपातकाल लागू होने के बाद जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और अन्य सैकड़ों छोटे-बड़े नेताओं को गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। ऐसा माना जाता है कि आपातकाल के दौरान एक लाख व्यक्तियों को देश की विभिन्न जेलों में बंद किया गया था। इनमें मात्र राजनीतिक व्यक्ति ही नहीं, आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी थे जो ऐसे आंदोलनों के समय लूटपाट करते हैं। साथ ही भ्रष्ट कालाबाज़ारियों और हिस्ट्रीशीटर अपराधियों को बंद कर दिया गया।
अभी तीन वर्ष भी पूर्ण नहीं हुए थे कि जनता पार्टी में दरारें पड़ गईं और देश को मध्यावधि चुनाव का भार झेलना पड़ा। इंदिरा गाँधी ने देश में घूम-घूमकर चुनाव प्रचार के दौरान आपातकाल के लिए शर्मिंदगी का इजहार किया और काम करने वाली सुदृढ़ सरकार का नारा दिया। लोगों को यह नारा काफ़ी पसंद आया और चुनाव के बाद नतीजों ने यह प्रमाणित भी कर दिया। इंदिरा कांग्रेस को 592 में से 353 सीटें प्राप्त हुईं और स्पष्ट बहुमत के कारण केंद्र में इनकी सरकार बनी। इंदिरा गाँधी पुनः प्रधानमंत्री बन गईं। इस प्रकार 34 महीनों के बाद वह सत्ता पर दोबारा क़ाबिज हुईं। जनता पार्टी ने 1977 में सत्ता में आने के बाद कई राज्यों की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया था। उस समय उसने यह तर्क दिया कि जनता का रुझान जनता पार्टी के साथ है, अतः नए चुनाव होने चाहिए। इंदिरा गाँधी ने सत्ता में आने के बाद जनता पार्टी द्वारा आरंभ की गई परिपाटी पर चलकर उन प्रदेशों की सरकारों को बर्खास्त कर दिया जहाँ जनता पार्टी तथा विपक्ष का शासन था। बाद में हुए इन राज्यों के चुनावों में कांग्रेस ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। 22 राज्यों में से 15 राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार बन गई। यह चुनाव जून 1980 में संपन्न हुए थे।
उड़ीसा में जबरदस्त चुनाव प्रचार के बाद इंदिरा गांधी 30 अक्टूबर की शाम दिल्ली पहुंची थीं। आमतौर पर जब वो दिल्ली में रहती थीं तो उनके घर एक सफदरजंग रोड पर जनता दरबार लगाया जाता था। लेकिन ये भी एक अघोषित नियम था कि अगर इंदिरा दूसरे शहर के दौरे से देर शाम घर पहुंचेंगी तो अगले दिन जनता दरबार नहीं होगा। 30 तारीख की शाम को भी इंदिरा से कहा गया कि वो अगले दिन सुबह के कार्यक्रम रद्द कर दें। लेकिन इंदिरा ने मना कर दिया। वो आइरिश फिल्म डायरेक्टर पीटर उस्तीनोव को मुलाकात का वक्त दे चुकी थीं।

एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट बताते हैं कि जैसे एक नॉर्मल तरीका होता है। सुबह उठकर आप जनता से मिलते हैं तो उस दिन एक बिजी शिड्यूल था। उनके इंटरव्यू के लिए बाहर से एक टीम आई हुई थी। पीटर उस्तीनोव आए। उन लोगों ने अपना सर्वे किया। ये देखा कि खुली जगह पर इंटरव्यू करना चाहिए। वहां दीवाली के पटाखे पड़े हुए थे। उसको साफ-वाफ करवा कर वैसा इंतजाम करवाया गया तो उसमें कुछ वक्त लग रहा था।
दरअसल पीटर इंदिरा गांधी पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बना रहे थे। इस बीच सुबह के आठ बजे इंदिरा गांधी के निजी सचिव आर के धवन एक सफदरजंग रोड पहुंच चुके थे। धवन जब इंदिरा गांधी के कमरे में गए तो वो अपना मेकअप करा रही थीं। इंदिरा ने पलटकर उन्हें देखा। दीवाली के पटाखों को लेकर थोड़ी नाराजगी भी दिखाई और फिर अपना मेकअप पूरा कराने में लग गईं।
अब तक घड़ी ने 9 बजा दिए थे। लॉन भी साफ हो चुका था और इंटरव्यू के लिए सारी तैयारियां भी पूरी थीं। चंद मिनटों में ही इंदिरा एक अकबर रोड की तरफ चल पड़ीं। यहीं पर पेंट्री के पास मौजूद था हेड कॉन्सटेबल नारायण सिंह। नारायण सिंह की ड्यूटी आइसोलेशन कैडर में होती थी। साढ़े सात से लेकर 8.45 तक पोर्च में ड्यूटी करने के बाद वो कुछ देर पहले ही पेंट्री के पास आकर खड़ा हुआ था। इंदिरा को सामने से आते देख उसने अपनी घड़ी देखी। वक्त हुआ था 9 बजकर 05 मिनट। आर के धवन भी उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। दूरी करीब तीन से चार फीट रही होगी। तभी वहां से एक वेटर गुजरा। उसके हाथ में एक कप और प्लेट थी। वेटर को देखकर इंदिरा थोड़ा ठिठकीं। पूछा कि ये कहां लेकर जा रहे हो। उसने जवाब दिया इंटरव्यू के दौरान आइरिश डायरेक्टर एक-टी सेट टेबल पर रखना चाहते हैं। इंदिरा ने उस वेटर को तुरंत कोई दूसरा और अच्छा टी-सेट लेकर आने को कहा। ये कहते हुए ही इंदिरा आगे की ओर बढ़ चलीं। ड्यूटी पर तैनात हेड कॉन्सटेबल नारायण सिंह के साथ छाता लेकर उनके साथ हो लिया।
तेज कदमों से चलते हुए इंदिरा उस गेट से करीब 11 फीट दूर पहुंच गई थीं जो एक सफदरजंग रोड को एक अकबर रोड से जोड़ता है। नारायण सिंह ने देखा कि गेट के पास सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह तैनात था। ठीक बगल में बने संतरी बूथ में कॉन्सटेबल सतवंत सिंह अपनी स्टेनगन के साथ मुस्तैद खड़ा था।
आगे बढ़ते हुए इंदिरा गांधी संतरी बूथ के पास पहुंची। बेअंत और सतवंत को हाथ जोड़ते हुए इंदिरा ने खुद कहा-नमस्ते। उन्होंने क्या जवाब दिया ये शायद किसी को नहीं पता लेकिन बेअंत सिंह ने अचानक अपने दाईं तरफ से .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर एक गोली दाग दी। आसपास के लोग भौचक्के रह गए। सेकेंड के अंतर में बेअंत सिंह ने दो और गोलियां इंदिरा के पेट में उतार दीं। तीन गोलियों ने इंदिरा गांधी को जमीन पर झुका दिया। उनके मुंह से एक ही बात निकली-ये क्या कर रहे हो। इस बात का भी बेअंत ने क्या जवाब दिया ये शायद किसी को नहीं पता। लेकिन तभी संतरी बूथ पर खड़े सतवंत की स्टेनगन भी इंदिरा गांधी की तरफ घूम गई। जमीन पर नीचे गिरती हुई इंदिरा गांधी पर कॉन्सटेबल सतवंत सिंह ने एक के बाद एक गोलियां दागनी शुरु कीं। लगभग हर सेकेंड के साथ एक गोली। एक मिनट से कम वक्त में सतवंत ने अपनी स्टेन गन की पूरी मैगजीन इंदिरा गांधी पर खाली कर दी। स्टेनगन की तीस गोलियों ने इंदिरा के शरीर को भूनकर रख दिया।

Tuesday, 27 October 2015

भगवान वाल्मीकि का संदेश, हर वर्ग बने सक्षम




भगवान वाल्मीकि ने पूरी मानवता को शिक्षा ग्रहण करने और ज्ञान का प्रकाश फैलाने का संदेश दिया। दयावान वाल्मीकि भगवान जी ने सर्वप्रथम दुनिया को दया और अहिंसा का पाठ पढ़ाया और शांति का संदेश दिया। वह किसी को भी दुखी नहीं देख सकते थे। एक दिन जब वह तमसा नदी के घाट पर नित्य की तरह स्नान के लिए गए तो पास ही क्रौंच पक्षियों का जोड़ा जो कभी भी एक-दूसरे से अलग नहीं रहता था, विचरण कर रहा था। उसी समय एक निषाद ने उस जोड़े में से नर पक्षी को बाण से मार डाला। यह देखकर महर्षि का हृदय बहुत दुखी हुआ। उन्होंने निषाद से कहा कि यह अधर्म हुआ है। निषाद तुझे नित्य निरंतर कभी भी शांति न मिले क्योंकि तूने बिना किसी अपराध के इसकी हत्या कर डाली। ऐसा कह कर जब महर्षि ने अपने कथन पर विचार किया तब उनके मन में बड़ी चिंता हुई कि पक्षी के शोक से पीड़ित होकर मैंने क्या कह डाला। अंतत: उनके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि मैं ऐसे ही श्लोकों में रामायण काव्य की रचना करूं।
सामर्थ्यशाली, सर्वशक्तिमान, महाज्ञानी, परमबुद्धिमान वाल्मीकि भगवान को संपूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति के नाविक, महाकाव्य रामायण के निर्माता, आदिकवि महर्षि, दयावान व संस्कृत कविता के पितामाह के रूप में जाना व माना जाता है। इस महाकाव्य रामायण में इन्होंने चौबीस हजार श्लोक, एक सौ आख्यान, पांच सौ सर्ग और उत्तरकांड सहित सात कांडों का प्रतिपादन किया है। इस महाकाव्य में महापराक्रम, लोकप्रियता, क्षमा, सौम्यभाव तथा सत्यशीलता का वर्णन है जो भारतीय संस्कृति, सभ्यता, साहित्य और समाज की अमूल्य निधि है। श्रीमद् वाल्मीकि महाकाव्य रामायण विश्व का अकेला ऐसा ग्रंथ है जिसमें मानवीय जीवन के प्रभावशाली आदर्श हैं। इस महाकाव्य में धार्मिक, सामाजिक और पारिवारिक क्षेत्र के समूह संबंधों के आदर्श रूप वॢणत मिलते हैं। भगवान वाल्मीकि जी ने राम कथा के माध्यम से मानव संस्कृति के शाश्वत और स्वर्णिम तत्वों का ऐसा चित्र प्रस्तुत किया है जो अनुपम और दिव्य है। समाज और राष्ट्र को उन्नत तथा स्वस्थ बनाने के लिए व्यक्ति का चरित्र विशेष महत्व रखता है। चरित्र के निर्माण के लिए परिवार के महान योगदान को श्रीमद् वाल्मीकि रामायण ने ही स्वीकार किया है। परिवार एक ऐसा शिक्षा केंद्र है जहां व्यक्ति स्नेह, सौहार्द, गुरुजनों के प्रति श्रद्धा, आस्था एवं समाज के सामूहिक कल्याण के लिए व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के त्याग की शिक्षा पाता है। परिवार समस्त मानवीय संगठनों की इकाई है जिसमें जीवन के प्राचीन आदर्शों को सुरक्षित रखा गया है।
भगवान वाल्मीकि जी की शिक्षाओं का महाकाव्य रामायण में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है जिसमें कर्तव्य परायणता, आज्ञा पालन, वचन निभाना, भाई का भाई के प्रति अथाह प्रेम व स्नेह, दुखियों, शोषित व पीड़ितों के प्रति दया और करुणा प्रेम, मानवता व शांति का संदेश देने के साथ-साथ अपने अंदर के अहंकार, ईर्षा, क्रोध व लोभ रूपी राक्षस को मारकर सहनशीलता का परिचय देना शामिल है। परम बुद्धिमान व महाज्ञानी भगवान वाल्मीकि जी के अनुसार संसार का मूल आधार ज्ञान ही है अर्थात शिक्षा के बिना मानव जीवन व्यर्थ एवं अर्थहीन है क्योंकि जिंदगी की भूल भुलैयां के चक्रव्यूह से शिक्षित व्यक्ति का ही बाहर निकलना संभव तथा आसान होता है। इनकी शिक्षाओं  में अस्त्र-शस्त्र, ज्ञान-विज्ञान, राजनीति तथा संगीत के अलावा आदर्श पिता, आदर्श माता, आदर्श पत्नी, आदर्श पति, आदर्श भ्राता, आदर्श स्वामी, आदर्श सेवक, आदर्श राजा, आदर्श प्रजा का ही नहीं आदर्श शत्रु का भी वर्णन मिलता है। आज भी इनकी शिक्षाएं पूरी दुनिया को मानवता, प्रेम व शांति तथा सहनशीलता का संदेश देती हैं तथा हिंसा, शत्रुता व युद्ध से होने वाले भयंकर विनाश के दुष्परिणामों से बचने का संकेत कर रही हैं।
रामायण मुख्यतः एक पारिवारिक महाकाव्य है। इस काव्य का मूल स्वर परिवार है जो कि सामाजिक समरसता, मानव-गौरव और भ्रातृत्व की विराट भावना की बुनियाद है। इसमें तीन प्रकार के भ्रातृ-युगल दिखाई देते हैं-राम और भरत, बाली और सुग्रीव तथा रावण और विभीषण।
इसी प्रकार तीन प्रकार के जीवन-साथी हैं-राम और सीता, बाली और तारा तथा रावण और मंदोदरी। सीता-राम हृदय-संगम के आदर्श प्रतिरूप हैं। बाली और तारा में समानता कम होने पर भी समरसता बराबर है। रावण और मंदोदरी के आदर्शों में काफी अंतर होने पर भी एक-दूसरे के प्रति अनुराग, सद्भाव और सदाशय में कोई कमी नहीं है। सीता, तारा और मंदोदरी-तीनों में से सीता सर्वाधिक पूजनीय हैं, हालांकि लौकिक दृष्टि से उनको सबसे अधिक पीड़ा सहनी पड़ी। तारा सबसे अधिक सुखी रही और मंदोदरी का स्वाभिमान सर्वोपरि है। उनका स्वभाव, व्यवहार और आदर्श संसार के समस्त स्त्री-पुरुषों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकते हैं। विडंबना है कि सारा संसार सीता और राम को आदर्श दंपति मानकर उनकी पूजा करता है किंतु उनके जैसा दांपत्य जीवन किसी को भी स्वीकार्य नहीं होगा। इससे स्पष्ट होता है कि उनके दांपत्य जीवन में मानव की सहनशीलता का कितना उदात्त उन्नयन हो पाया है। पीड़ा सहने से यदि लोक कल्याण संभव है तो सहनशीलता तपस्या बन जाती है। वाल्मीकि ने अपनी कृति रामायण के माध्यम से मानव-जाति को यही संदेश दिया है।

Friday, 16 October 2015

कोई तो किसान की सुनो

पंजाब में नरमा कपास की खराब फसल के मुआवजे की मांग पर किसान आंदोलरत थे। सात दिनों तक जबरदस्त आंदोलन किया। रेलवे ट्रैक पर बैठे रहे। सातवें दिन धरना समाप्त किया गया। सरकार के दबाव में किसान संगठनों को बिना मांग पूरी करवाए ही आंदोलन खत्म करना पड़ा। अब किसानों ने 22 अक्टूबर से अकाली दल के सांसदों तथा विधायकों के आवास के घेराव का निर्णय किया है। लेकिन कुछेक संस्थानों के अलावा कहीं इन्हें पर्याप्त स्पेस नहीं मिला। क्यों ? क्योंकि इससे टीआरपी नहीं आती? क्योंकि इससे विज्ञापन नहीं आती? लेकिन, हां इतना गुणा-भाग करके यह जरूत आकलन किया गया कि किसानों के इस धरने से रेलवे 200 करोड़ से अधिक रुपये की हानि हुई। रेलवे अपने नुकसान का अनुमान ट्रेनों के रद्द होने यात्रियों के टिकटों की वापसी, माल गाड़ी में बुकिंग कैंसिल के अलावा गाड़ियों के ट्रैक बदलने को लेकर जोड़ा जाता है। अम्बाला और फिरोजपुर रेलवे मंडलों से गुजरने वाली 574 रेल गाड़ियां किसान आंदोलन में प्रभावित रहीं। इनमें अम्बाला मंडल की 311 रेल गाड़ियां थीं। 
किसान संगठन पंजाब सरकार से किसानों के लिए 40 हजार और मजदूरों के लिए 20 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा तथा बासमती चावल का दाम बढ़ाने की मांग कर रहे थे। सरकार ने केवल मजदूरों को मुआवजा राशि देने के लिए 66 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है। भारतीय किसान यूनियन एकता उग्रांहा के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरी के अनुसार, आम लोगों को परेशानी से बचाने के लिए धरना उठाने का निर्णय किया गया। पंजाब सरकार द्वारा मात्र आठ हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा दिया जा रहा है, जबकि किसानों को इससे कहीं ज्यादा नुकसान हुआ है।
बता दें कि पंजाब के आठ किसान तथा चार मजदूर संगठन की ओर से बठिंडा, फिरोजपुर, मानसा तथा अमृतसर जिले में रेल रोको आंदोलन किया जा रहा था। पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान रूट की करीब 550 रेलगाड़ियां प्रभावित रहीं। चंडीगढ़ में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से किसान और मजदूर संगठनों के साथ बैठक की थी, लेकिन वह बैठक बेनतीजा रही थी। पंजाब में सफेद मक्खी की वजह से कपास की फसल बर्बाद हो गई है। इसको लेकर परेशान चल रहे किसानों के जख्म पर प्रदेश सरकार ने भी नमक छिड़कने का काम किया। मुआवजे के नाम पर किसी किसान को 15 रुपये का चेक दिया गया, तो किसी को 80 रुपये का। कपास की बर्बाद फसल के उचित मुआवजे की मांग को लेकर चल रहे राज्य स्तरीय धरने पर किसान द्वारा जहर खाकर आत्महत्या करने के मामले ने भी तूल पकड़ लिया था। 
और तो और, किसानों की दिक्कत यह भी रही कि इतने कम राशि के चेक को वे अगर अपने खाते में नकद करवाते हैं, तो उसका शुल्क अधिक लग जाएगा। एक किसान के अनुसार, उसका बठिडा के कोआपरेटिव बैंक में खाता है। मुआवजा चेक पंजाब नेशनल बैंक तलवंडी साबो का है। चेक बाहरी शहर का होने पर क्लीयरिग चार्ज (आउट स्टेशन) के रूप में 25 रुपये वसूले जाएंगे, जिसके बाद उसे सिर्फ 55 रुपये मिलेंगे। एक बैंक अधिकारी से जब पूछा गया कि 15 रुपया मुआवजा पाने वाले किसान को अगर क्लीयरेंस चार्ज देना पड़ा, तो उसके पल्ले क्या पड़ेगा? इस पर उनका जवाब था कि ऐसा चेक लगाने की क्या जरूरत है। चेक शीशे में जड़वा कर यादगार के तौर पर रख लेना चाहिए।
जब हम पंजाब में किसानों की स्थिति की पड़ताल करते हैं, तो पाते हैं कि पंजाब में कर्ज के कारण आत्महत्या के मामले 1997 से जारी हैं। 1997-2003 में कपास बेल्ट में फसल खराब हुई थी। इस इलाके में तब किसानों की खुदकुशी के मामले ज्यादा देखने को मिले। भारतीय किसान यूनियन ने 2004 में पंजाब के 300 गांवों का सर्वे किया था। इसमें 3000 किसानों की खुदकुशी का आंकड़ा सामने आया था। यूनियन के दावे के मुताबिक 1990 से 2013 के बीच सवा लाख किसानों और मजदूरों ने आत्महत्या कर ली थी, जबकि सरकार के आदेश पर हुए पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, पंजाबी यूनिवर्सिटी और गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी के संयुक्त सर्वे के मुताबिक 2000 से 2010 तक ग्रामीण इलाकों में 6926 किसानों और मजदूरों ने खुदकुशी की। इनमें से करीब 4800 मामलों में आत्महत्या की वजह कर्ज थी। साल 2010 के बाद के खुदकुशी के मामलों का सर्वे होना अभी बाकी है।
जानकारों का कहना है कि आढ़तियों का नेटवर्क काफी बड़ा है। उपज की मार्केटिंग और किसान को अदायगी आढ़तिए के जरिए होती है। आढ़तिया तब उसका पेमेंट करता है, जब वो उसका कर्ज़ चुका देता है। पंजाब सरकार आढ़तियों के साथ है और वे संगठित हैं। उनका असर बहुत ज्यादा है। उपज की मार्केटिंग सहकारी व्यवस्था के जरिए हो तभी किसान को इस मुश्किल से बाहर निकाला जा सकता है। अभी कम कीमत वाली फसल का उत्पादन होता है। किसान को लो वैल्यू फसल से निकालकर हाई वैल्यू फसल में शिफट करने की जरूरत है. तभी वो समृद्ध हो सकते हैं। इसके लिए भी सहकारी व्यवस्था मजबूत करने की जरूरत है।

Wednesday, 14 October 2015

राष्ट्र ऋषि डाॅ. कलाम

कुछ व्यक्तित्व इतने विराट होते हैं कि उनके बारे में कुछ कहने में भाषा पंगु हो जाती है। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भारतीय ऋषि परम्परा के ऐसे ही महापुरुष थे। डॉ. अब्दुल कलाम क्या थे, यह कहने से ज्यादा यह कहना उपयुक्त होगा कि वह क्या नहीं थे! भारतीय जीवन मूल्यों के मूर्तिमंत स्वरूप डॉ. कलाम एक ज्योतिर्मय प्रज्ञा-पुरुष थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. कलाम उत्कृष्ट वैज्ञानिक, मौलिक विचारक, गंभीर आध्यात्मिक साधक, कवि, संगीत रसिक, कुशल वक्ता, प्रशासक और सबसे बड़ी बात, संवेदनाओं से परिपूर्ण एक महामानव थे।
‘मुझे आश्चर्य हुआ कि कुछ लोग विज्ञान को इस तरह से क्यों देखते हैं जो व्यक्तियों को ईश्वर से दूर ले जाए। जैसा कि मैंने इसमें देखा कि हृदय के माध्यम से ही हमेशा विज्ञान तक पहुंचा जा सकता है। मेरे लिए विज्ञान हमेशा आध्यात्मिक रूप से समृध्द होने और आत्मज्ञान का रास्ता रहा।’ ये विचार किसी धर्माचार्य के नहीं हैं वरन् भारतीय गणराज्य के 11वें राष्ट्रपति स्व. डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने व्यक्त किए थे। डॉ. कलाम देश की रचनात्मकता के विचार को विस्तार देने के कर्म में अंतिम सांस तक रत रहे। किसी भी रूप में डॉ. कलाम सहाब को मुसलमान के रूप में स्थापित करना हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानियत की तौहीन की कहा जाएगा। वे भारत की प्रगतिशील ऋषि परंपरा के वाहक ही थे। वे आधुनिक भारत में युवाओं के लिए रचनात्मका, कर्म साधना और देश सेवा के प्रेरक और रोल मॉडल बने। उन्होंने शून्य से शिखर तक संघर्ष यात्रा से सत्य को स्थापित किया कि नेक नीयत से किए गए कर्म के द्वारा असंभव को संभव किया जा सकता। मेधा के धनी और सफलता से शीर्ष को प्राप्त करने के बाद उनकी बच्चे जैसी मासूमियत, सहजता और सरलता ने खुद ब खुद  लोगों के दिल पर छा गई, जिसके लिए आज हर हिन्दुस्तानी उनके निधन पर गहरा अफसोस जता रहा है।
डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम मछुआरे अल्पशिक्षित निर्धन परिवार में जन्मे, गांव में बिजली न होने से लालटेन की रोशनी में अध्ययन की साधना करते हुये राष्ट्र के शिखर पुरुष बने। उन्होंने जो पुस्तकें लिखीं, उनमें 1. विग आफ द फायर, 2. इग्नाइटेड माइण्ड, 3. गाडडिंग सोल्स, 4. मिशन इण्डिया, 5. इण्डिया विजन- 2020, 6. इन विजनिंग एन इम्पावर्ड नेशन, अति चर्चित कृतियां हैं। देश के अनेक प्रकाशनों ने डा. कलाम विषयक पुस्तकें प्रकाशित की। जिनमें दिल्ली के प्रभात प्रकाशन ने ही तत्संबंधी 10 पुस्तकों का प्रकाशन करके 2,50,000 प्रतियों से अधिक की बिक्री से उनकी जनप्रियता का कीर्तिमान स्थापित किया। पांच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के पंचायत प्राथमिक विद्यालय में उनका दीक्षा-संस्कार हुआ था। उनके शिक्षक इयादुराई सोलोमन ने उनसे कहा था कि ‘जीवन मे सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था, अपेक्षा इन तीन शक्तियों को भलीभांति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए।’ अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अखबार वितरित करने का कार्य भी किया था। कलाम ने 1958 में मद्रास इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। स्नातक होने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आये जहां उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी 3 के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1980 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था।  वैसे उनके  विचार शांति और हथियारों को लेकर विवादास्पद रहे। 

इस संबंध में कलाम साहब का कहना था- ‘2000 वर्षों के इतिहास में भारत पर 600 वर्षों तक अन्य लोगों ने शासन किया है। यदि आप विकास चाहते हैं तो देश में शांति की स्थिति होना आवश्यक है और शांति की स्थापना शक्ति से होती है। इसी कारण मिसाइलों को विकसित किया गया ताकि देश शक्ति संपन्न हो।’ कलाम साहब ने अपने इस विचार को कार्य रूप में स्थापित कर दुनिया से भारतीय मेधा का लोहा मनवा लिया, जिसके लिए सुपर पॉवर अमेरिका सहित समूचा पाश्चात्य जगत अपनी उपलब्धियों पर गौरन्वावित हुआ करता था। डॉक्टर कलाम ने साहित्यिक रूप से भी अपने शोध को चार उत्कृष्ट पुस्तकों में समाहित किया है, जो इस प्रकार हैं- 'विंग्स आॅफ फायर', 'इण्डिया 2020- ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम', 'माई जर्नी' तथा 'इग्नाटिड माइंड्स- अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया'। इन पुस्तकों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
उनके जीवन में संवेदना सदा सृजन के लिए ही थी, उनके भावों की इन पंक्तियों में आप अनुभव करेंगे-
सुंदर हैं वे हाथ, सृजन करते जो सुख से, धीरज से, साहस से, हर क्षण, हर पल, हर दिन, हर युग।
उनके जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना ‘अग्नि मिसाइल’ के सफल परीक्षण के दिन उनकी डायरी में लिखी ये भावपूर्ण पंक्तियां हैं- राष्ट्र के गौरव तथा शत्रु को भयभीत करने वाली धधकती आग- अग्नि में मत ढूंढ़ों, शत्रु को भय ग्रस्त करता, शक्ति का स्तम्भ कोई, यह तो एक आग है, दिल में जो सुलगती है, हर भारतीय के, सभ्यता के स्त्रोत की, एक छोटी-सी प्रतिमा है यह भारत के गौरव की आभा से प्रदीप लौ।
डा. कलाम के कार्यकाल में देश की सुरक्षा हेतु सफल परीक्षण 1. पृथ्वी, 2. त्रिशूल, 3. आकाश, 4. आग, 5. अग्नि किए गए। राष्ट्र इतना अभिभूत हुआ कि उन्हें ‘मिसाइलमैन’ नाम से संबोधित करने लगा। देश ने विज्ञान की दीर्घकालीन सक्रिय सतत् सेवाओं हेतु पद्मभूषण, पद्म विभूषण और शिखर सम्मान पदक भारत रत्न से सम्मानित किया। देश के 28 विश्वविद्यालयों एवं संस्थाओं ने मानद् डी.एस.सी. एवं डी. लिट् की उपाधियां भी प्रदान कीं। कृतज्ञ राष्ट्र ने इन्हें देश के प्रथम नागरिक रूप में राष्ट्रपति बनाया। वहां भी वह एक विदेह संत की भांति रहे। वह जितनी भारत की सुरक्षा हेतु रचनात्मक वैज्ञानिक कार्यों को गति दे रहे थे उतना ही जनता के दु:ख दर्द को आन्तरिक रूप से अनुभव करते थे। कलाम ने अपने कार्यकाल में पोलियोग्रस्त बच्चों हेतु कुछ तत्वों के मिश्रम से लकड़ी के भारी पैरों के बदले हल्के पैर निर्मित कराए और हजारों पोलियोग्रस्त बच्चों में वितरण कराया। इनके कार्यकाल में कई प्राकृतिक आपदाओं में डी.आर.डी.ओ ने सहायता प्रदान की। गुजरात का चक्रवात, जलेश्वर (उड़ीसा) का तुफान, मानसरोवर के मार्ग में भूस्खलन, चमोली (उत्तराखण्ड) का भूकम्प, गुजरात का भूकम्प, लातूर (महाराष्ट्र) का भूकम्प की सहायता में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाहन किया।
83 वर्षीय कलाम का सोमवार को आईआईएम शिलांग में व्याख्यान देते समय दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उन्हें एक ऐसे दिलेर राष्ट्रपति के रूप में जाना जाता है जिन्होंने सुखोई लड़ाकू विमान में उड़ान भरी, पनडुब्बी में सफर किया, दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध के मैदान सियाचिन ग्लेशियर गए और नियंत्रण रेखा पर जाकर सैनिकों से बातचीत की।
इसमें वह साहसिक घटना भी शामिल है जब उनके विमान ने एजल हवाई अड्डे से रात के समय उड़ान भरी तो रनवे को लालटेन और टॉर्च की रोशनी से प्रकाशित किया गया। यह घटना 2005 की है जब कलाम ने अपनी मिजोरम यात्रा के दौरान सभी आधिकारिक कार्यक्रम पूरे कर लिये। उनका अगली सुबह रवाना होने का कार्यक्रम था। लेकिन कलाम ने रात में ही दिल्ली के लिए उड़ान भरने का निर्णय किया। उनके एक वरिष्ठ सहयोगी ने इस घटना को याद करते हुए यह विवरण सुनाया।
भारतीय वायु सेना के स्टेशन प्रमुख को बुलाया गया और उन्हें राष्ट्रपति के राष्ट्रीय राजधानी के लिए उड़ान भरने की इच्छा से अवगत कराया क्योंकि मिजोरम में उनका काम पूरा हो गया है। वायु सेना के अधिकारी ने कहा, ‘‘लेकिन हवाई अड्डे पर रात में उड़ान भरने की सुविधा नहीं है।’’ लेकिन कलाम उनके स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अगर आपात स्थिति हो तो क्या होगा ? क्या वायु सेना सुबह का इंतजार करेगी। उन्हें बता दें कि मुझे उड़ान भरना है और सभी जरूरी व्यवस्था की जाए।’’
डॉ. कलाम के सहयोगी तब वायु सेना के अधिकारी के पास गए और उन्हें उनका संदेश सुनाया जो राष्ट्रपति के तौर पर सशस्त्र सेनाओं के सुप्रीम कमांडर भी थे। आईएएफ के कमांडर ने तत्काल दिल्ली में अपने वरिष्ठ अधिकारियों से सम्पर्क किया। लेकिन उच्च अधिकारियों ने उन्हें मिसाइल मैन के आदेशों का पालन करने का निर्देश दिया। सहयोगी ने बताया कि अंतत: कलाम की इच्छा पूरी हुई और वायुसेना कर्मियों ने लालटेन, टॉर्च एवं मशाल जलाकर रनवे को रौशन किया ताकि उड़ान भरी जा सके। कलाम के सहयोगी उनके रात में उड़ान भरने के फैसले से चिंतित थे क्योंकि हवाई अड्डे पर केवल बुनियादी सुविधा ही उपलब्ध थी। वायुसेना अधिकारियों से अलग से पूछा गया कि क्या ऐसे में उड़ान भरना सुरक्षित होगा।
वायुसेना अधिकारी ने कहा कि आप उडान तो भर सकते हैं लेकिन अगर लौटना पड़ा तो परेशानी होगी। रात के करीब नौ बजे राष्ट्रपति के बोइंग विमान ने उड़ान भरी जिस पर कलाम और उनके साथ 22 लोग थे। विश्वविद्यालय और स्कूली छात्रों से चर्चा के दौरान डॉ. कलाम कहा करते थे, ‘‘अगर आप विफल होते हैं तब साहस नहीं छोड़े क्योंकि एफ ए आई एल का अर्थ होता है पहले प्रयास में सीखना, समाप्त का अर्थ समाप्त नहीं होता, बल्कि ई एन डी का अर्थ अगला अवसर होता है, इसलिए सकारात्मक रहें।
डॉ. कलाम जब देश के 11वें राष्ट्रपति बने तब इसके कुछ ही समय बाद तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत को दिल का दौरा पड़ा और उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया। कलाम उनका कुशलक्षेम पूछने के लिए पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे। उस दिन वह नीले रंग की शर्ट और खाकी पैंट पहनकर गए थे। राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कलाम ने सियाचिन जाकर सैनिकों से मुलाकात करने का निर्णय किया। मौसम साफ होने के लिए उन्हें करीब 40 मिनट तक इंतजार करना पड़ा और बाद में वह हेलीकाप्टर से सियाचिन आधार शिविर पहुंचे। सैनिकों को अपने संबोधन में कलाम ने कहा था, ‘‘यह ग्लेशियर अत्यंत भू सामरिक महत्व का है। पिछले 20 वर्षो में कई युद्ध लड़े गए और हमारी सर्वोच्चता स्थापित हुई। यह हमारे जाबांज कारनामों की लड़ाई थी।’’ एयरोनॉटिकल इंजीनियर कलाम ने जून 2006 में सुखोई 30 लड़ाकू विमान उड़ाया और कहा था, ‘‘यह 1958 से ही मेरा सपना था कि मैं लड़ाकू विमान उड़ाऊं। मैं बचपन से ही पायलट बनना चाहता था।’’ इसी वर्ष कलाम ने फरवरी माह में तब इतिहास रचा जब वह आईएनएस सिंधुरक्षक पनडुब्बी से सफर करने वाले वह देश के पहले राष्ट्रपति बने।
आखिरकार शिक्षा वास्तव में सत्य की खोज है। ज्ञान और जागरूकता के माध्यम से यह एक कभी न समाप्त होने वाली यात्रा है। जहांर् ईष्या, घृणा, दुश्मनी, संकीर्णता और असमंजस के लिये कोई स्थान नहीं होता। यह मनुष्य को एक हितकारी, उदार इंसान और विश्व का एक उपयोगी व्यक्ति बना देती है। वास्तविक ज्ञान मनुष्य की गरिमा और स्वाभिमान को बढ़ाता है। देश और समाज के विकास मार्ग में वह अतीत तथा वर्तमान के सभी सत्कार्यों को मान्यता देते थे।
डा. अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व विज्ञानवेत्ता के साथ ही एक श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में भी उजागर होता है। हरिद्वार उत्तरांचल के देव संस्कृति विश्वविद्यालय के दीक्षान्त भाषण के कुछ अंश कलाम के शब्दों में- मुझे ज्ञात है कि इस विश्वविद्यालय ने स्वतंत्रता सेनानी और लगभग 3000 पुस्तकों के लेखक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के स्वप्न को साकार रूप दिया है। उन्हें भारत में ज्ञान क्रांति का प्रवर्तक कहना उपर्युक्त होगा। दोस्तों! रामेश्वरम् में अपने बाल्यकाल में मैंने वकीलों, वैज्ञानिकों, आध्यात्मिकों, व्यवसायियों और शिक्षाविदों की देशभक्ति देखी, जिन्होंने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। अपनी इस स्वतंत्रता के लिए हम उन महान आत्माओं के ऋणी हैं। ऐसे देश भक्तों को मैं सलाम करता हूं।’ देश को स्वतंत्र करवाने के पश्चात् अब वर्ष 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्र में परिवर्तित करना हमारी जिम्मेदारी है। मुझे विश्वास है कि हमारे देश के 54 करोड़ तेजस्वी युवा मिलकर निश्चित ही इस परिवर्तन की दिशा में कार्य करेंगे…।
एक राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने जो नई परंपराएं स्थापित की, जिनको लेकर किसी को भी परहेज नहीं हुआ और न किसी तरह की सियासत करने का मौका दिया, उनकी यही विलक्षणता सच्चे अर्थों में ‘भारत रत्न’ के रूप में स्थापित करती है। अपनी मानवीय खूबियों के साथ वह एक राष्ट्रनायक के रूप में लोगों के दिल में जगह बनाने में कामयाब हुए। 15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी गांव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में इनका जन्म हुआ। इनके पिता जैनुलाब्दीन न तो ज्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही पैसे वाले थे। इनके पिता मछुआरों को नाव किराए पर दिया करते थे। अब्दुल कलाम सयुंक्त परिवार में रहते थे। परिवार की सदस्य संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह स्वयं पांच भाई एवं पांच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे। अब्दुल कलाम के जीवन पर इनके पिता का बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार अब्दुल कलाम के बहुत काम आए।

Monday, 12 October 2015

शक्तियों को जगाने का आह्वान है नवरात्र



नवरात्र आह्वान है शक्ति की शक्तियों को जगाने का ताकि हममें देवी शक्ति की कृपा होकर हम सभी संकटों, रोगों, दुश्मनों, प्राकृतिक आपदाओं से बच सकें। शारीरिक तेज में वृद्धि हो। मन निर्मल हो व आत्मिक, दैविक, भौतिक शक्तियों का लाभ मिल सके। नवरात्र" शब्द में "नव" संख्यावाचक होने से नवरात्र के दिनों की संख्या नौ तक ही सीमित होनी चाहिए लेकिन ऎसा नहीं हैं। प्रत्येक नर-नारी जो हिन्दू धर्म की आस्था से जुड़े हैं वे किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं देवी की उपासना करते ही हैं। फिर चाहे व्रत रखें, मंत्र जाप करें, अनुष्ठान करें या अपनी-अपनी श्रद्धा-‍भक्ति अनुसार कर्म करते रहें। वैसे माँ के दरबार में दोनों ही चैत्र व अश्विन मास में पड़ने वाले शारदीय नवरात्र की धूमधाम रहती है। सबसे अधिक अश्विन मास में जगह-जगह गरबों की, जगह-जगह देवी प्रतिमा स्थापित करने की प्रथा है।  कुछ देवताओं के 7 दिनों के तो कुछ देवताओं के 9 या 13 दिनों के नवरात्र हो सकते हैं। सामान्यत: कुलदेवता और इष्टदेवता का नवरात्र संपन्न करने का कुलाचार है। किसी देवता का अवतार तब होता है जब उसके लिए कोई निमित होता है। यदि कोई दैत्य अन्य आपति आती है तो संकट में फंस जाते हैं। अथवा इसी प्रकार की कोई अन्य आपति आती हैं,तो संकट की कालवधि 7 दिनों से लेकर 13 दिनों तक रहती है। ऎसी कालावधि में उस देवता की मूर्ति या प्रतिमा का टांक चांदी के पत्र या नागवेली के पते पर रखकर नवरात्र बैठाए जाते हैं।
उस समय स्थापित देवता की षोडशोपचार पूजा की जाती है। अखंड दीप प्रज्वलन,माला बंधन,देवता के माहात्म्य का पठन,उपवास तथा जागरण आदि विविध कार्यक्रम करके अपनी शक्ति एवं कुलदैवत के अनुसार नवरात्र कहोत्सव संपन्न किया जाता है। यदि पडता है। इस कालावधि में उत्कृष्ट आचार के एक अंग के स्वरूप श्मश्रु (हजामत) न करना और कडें ब्रहा्रचर्य का पालन करना भी समाविष्ट है। इसके अलावा पलंगा या गद्ये पर न सोना, सीमा का उल्लंघन न करना और पादत्राण न पहनना आदि बातों का भी पालन किया जाता है। आज के युग में सभी बातों का पालन करना व्यावहारिक दृष्टि से असुविधाजनक एवं कष्टकारक होता है। इसलिए हमें अधिक असुविधाएं न देने वाली बातों का पालन करना चाहिए। इसके लिए ब्रहा्रचर्य का पालन,पलंग-गद्दे पर न सोना, पहले दिन और आखिरी दिन उपवास करना तथा कलह न करना आदि बातों का पालन अत्यावश्यक है। इससे नवरात्र के फल तो प्राप्त होते ही हैं, साथ ही साथ शारीरिक एवं मानसिक आरोग्य के लिए भी ये बहुत उपकारक सिद्ध होते हैं। कई बार अशौच के दौरान दवरात्र आता है।
 इसके कारण नवरात्र महोत्सव 9 के बजाय 8 दिनों से लेकर 1 दिन तक का भी हो सकता है। कई बार अशौच समाçप्त एवं नवरात्र समाçप्त एक ही दिन होती है। ऎसे समय नवरात्र स्थापन न करके दूसरे दिन पूजा,अभिषेक एवं समाराधना करें। कुछ लोग घर के ब्रहा्रचारी पुत्र से या उपाध्याय के हाथों नवरात्र स्थापना करवाते हैं। ऎसे समय दूध-शक्कर का भोग जगाएं लेकिन घर में पकाए हुए अनाज का भोग न लगाएं। दूसरे घर का नैवेद्य अग्राहा रहता है। कई बार नवरात्र शुरू रहते अशौच आता है। ऎसे समय ब्रहा्रचारी लडके या गुरूजी द्वारा पूजा एवं माला-बंधन आदि करवा लेें। नवरात्र स्थापना भी उनके द्वारा करवाएं। पके अन्न का नैवेद्य न दिखाएं। अशौच समाçप्त के बाद समाराधना करने में शास्त्र को एतराज नहीं रहता। कुछ लोग अल्प ज्ञान के कारण खंडित कुलाचार अगले कुलाचार के समय करते हैं परंतु यह बात शास्त्र सम्मत नहीं है। शारदीय नवरात्र खंडित होने पर ज्येष्ठा गौरी का उत्सव चैत्रागौरी के समय और चैत्रागौरी का दोलोत्सव नवरात्र के समय करना शास्त्र सम्मत नहीं है,अतएव ऎसा न करें।
नवदुर्गा और दस महाविधाओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविधाएं अनंत सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है।
नवरात्र कुलधर्म खंडित न करके नियमित करते रहने से उस देवता की पूर्ण कृपा परिवार पर बनी रहती है। इससे उस घर पर सहसा आध्यात्मिक,आधिदैविक एवं आधिभौतिक संकट नहीं मंडराते।यदि संकट आ भी जाए तो वह तीव्र न होकर सौम्य बनता है। जिस घर में चूल्हा है,वहां देवता स्थापना होना आवश्यक है। इसी तरह परिवार विभक्त होने पर नवरात्र को विभक्त रूप से संपन्न करना चाहिए। यदि पिता से पुत्र अलग रहता हो तो भी पिता एवं पुत्र के घर अलग-अलग नवरात्र होना आवश्यक है।