लगता है मोदी सरकार को पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का 'जय जवान जय किसान' का नारा याद नहीं तभी तो जमीन अधिग्रहण (लैंड बिल) मुद्दे पर किसान तो पहले से ही रुठे हुए है और अब 'वन रैंक वन पेंशन' के मुद्दे पर जवान भी नाराज हो गए हैं। मोदी राज में किसानों की बहुत दुर्दशा हो रही है। भूमि अधिग्रहण के जरिये केंद्र सरकार किसानों को भूमिहीन बनाने का प्रयास कर रही है। मगर कांग्रेस मोदी के मंसूबों को कभी पूरा नहीं होने देगी।
भाजपा सरकार बनने के बाद फसलों के दाम 100 से 150 फीसदी तक गिरे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव से पहले किसानों से फसलों का लाभकारी मूल्य देने का वादा किया था। कांग्रेस राज में बासमती जीरी के दाम साढ़े छह हजार रुपए तक मिले जबकि मोदी सरकार में किसानों को ढाई हजार रुपए प्रति क्विंटल दाम मिले हैं। इसी तरह पूसा 1121 1509 किस्म के दाम 70 फीसदी तक गिर गए। यही हाल कपास के दामों का हुआ है। गन्ना किसानों की भी दुर्गति हो रही है। किसान गन्ने की फसल जलाने की कगार पर हैं। जिन किसानों ने गन्ना बेचा, उनका अब तक पैसा रुका हुआ है।
भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनाव में कृषि आयोग के अध्यक्ष रह चुके प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन की रिपोर्ट को लागू करने का वादा भी किया था, जिसमें किसानों को लागत के पचास फ़ीसदी मुनाफ़े की सिफारिश की गई थी। मगर इस दिशा में पिछले एक साल के दौरान सरकार की तरफ़ से कोई पहल नहीं हुई । अलबत्ता रबी और खरीफ की फसलों में न्यूनतम समर्थन मूल्य में सिर्फ तीन से चार फ़ीसदी का ही इज़ाफ़ा किया गया। 'एग्रीकल्चर प्रोडक्ट सेकंड एडवांस्ड एस्टीमेट' के अनुसार, खाद्यान्न उत्पादन में पांच प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। पिछले वित्तीय वर्ष में अगर देश की विकास दर 7.4 रही तो कृषि क्षेत्र में ये सिर्फ 1.1 रही। हर खेत को पानी: इस नारे को साकार करने के लिए प्रधानमंत्री सिचाई योजना बनाई गई। वर्ष 2015-16 के बजट में प्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना का लक्ष्य सभी खेतों लिए सिंचाई उपलब्ध कराना और कृषि जल का सदुपयोग बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है, जिसके तहत 1000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया। मगर भारत में 60 प्रतिशत से भी ज़्यादा भूमि कृषि योग्य है। ऐसे में इस योजना के तहत किए गए प्रावधान नाकाफी हैं। आधारभूत संरचना में सुधार: पिछले एक साल में इस दिशा में कुछ भी नहीं किया गया और आज भी किसानों के लिए ऐसी समग्र कृषि नीति का अभाव बरक़रार है, जिसमें किसान को उसके उत्पाद के लिए बेहतर पैसे मिलें। किसान के लिए अपने उत्पादों को बाज़ार में बेचने के बेहतर साधनों की कमी है और साथ ही किसानों को सस्ते आयात से समर्थन दिए जाने में भी इच्छा शक्ति की कमी नज़र आ रही है। कृषि उत्पादन के लिए दी जाने वाली छूट भी दूसरे देशों की तुलना में बहुत कम ही है।
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