देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्म आज ही के दिन, 17 नवंबर 1917 को हुआ था। भारतीय राजनीति के इतिहास में इंदिरा गांधी को विशेष रूप से याद रखा जाता है। एक तेज तर्रार, त्वरित निर्णयाक क्षमता और लोकप्रियता ने इंदिरा गांधी को देश और दुनिया की सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार कर दिया। इंदिरा को तीन कामों के लिए देश सदैव याद करता रहेगा। पहला बैंकों का राष्ट्रीयकरण, दूसरा राजा-रजवाड़ों के प्रिवीपर्स की समाप्ति और तीसरा पाकिस्तान को युद्ध में पराजित कर बांग्लादेश का उदय।
गुलाम भारत को आजादी की कितनी जरूरत है यह इंदिरा ने अच्छे से समझ लिया था। बचपन से ही वो भी भारत की आजादी की लड़ाई में जुट गई थीं। उन्होंने अपने हमउम्र बच्चों के साथ एक वानर सेना बनाई जिसका उद्देश्य देश की आजादी के लिए लड़ रहे क्रांतिकारी एवं आंदोलनकारियों तक गुप्त सूचनाएं पहुंचाना था। 1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इंदिरा गांधी का कहना था कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण की बदौलत ही देश भर में बैंक क्रेडिट दी जा सकेगी। उस वक्त के वित्त मंत्री मोरारजी देसाई इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर चुके थे। 19 जुलाई 1969 को एक अध्यादेश लाया गया और 14 बैंकों का स्वामित्व राज्य के हवाले कर दिया गया। उस वक्त इन बैंकों के पास देश का 70 प्रतिशत जमापूंजी थी। 1969 में इंदिरा गांधी ने भूमिहीन और समाज के कमजोर वर्ग के लिए भूमि सुधार नीति बनाई। हरित क्रांति इंदिरा के अथक प्रयास का फल था। बीस सूत्रीय कार्यक्रम की शुरुआत भी इंदिरा गांधी ने ही की थी।
1967 के आम चुनावों में कई पूर्व राजे-रजवाड़ों ने सी.राजगोपालाचारी के नेतृत्व में स्वतंत्र पार्टी का गठन लिया था। इनमें से कई कांग्रेस के बागी भी थे। इस कारण इंदिरा ने प्रिवीपर्स समाप्ति का संकल्प ले लिया। 1971 के चुनावों में सफलता के बाद इंदिरा ने संविधान में संशोधन कराया और प्रिवीपर्स की समाप्ति कर दी। इस तरह राजे-महाराजों के सारे अधिकार और सहूलियतें वापस ले ली गईं। 1971 के चुनाव में इंदिरा जी ने नारा दिया था ‘गरीबी हटाओ’। इस नारे का जादू देश भर में लोगों के सिर चढ़कर बोला। पाकिस्तान के साथ युद्ध में विजयी होने के बाद वे संसद में पहले ही दुर्गा की परिभाषा से विभूषित हो चुकी थी। उनकी लोकप्रियता अपने चरमोत्कर्ष पर थी। चुनाव में कांग्रेस भारी बहुमत से जीती। भारत पाकिस्तान के बीच तीसरे युद्ध ने दक्षिण एशिया का भूगोल ही नहीं इतिहास भी बदल दिया। ये इंदिरा की अगुवाई का ही कमाल था कि भारत ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर भी मजबूर तक दिया जब महाबली अमेरिकी खुद उसका खुलकर साथ दे रहा था।पाकिस्तान से लड़ाई के तीन साल बाद 18 मई 1974 को भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण कर विश्व पटल पर अपनी सैन्य ताकत दर्ज कराने की कोशिश की। इसके साथ ही अमरीका, सोवियत संघ (तत्कालीन), ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के बाद भारत छठा ऐसा करने वाला देश बन गया।साल 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर सैन्य हमले पर विचार किया था। वह पड़ोसी देश को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने के लिए ऐसा करना चाहती थीं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के सार्वजनिक किए गए एक दस्तावेज में यह दावा किया गया।
बांगलादेश के उदय को इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन का उत्कर्ष कहा जा सकता है, वहीं 1975 में रायबरेली के चुनाव में गड़बड़ी के आरोप और जेपी द्वारा संपूर्ण क्रांति के नारे के अंतर्गत समूचे विपक्ष ने एकजुट होकर इंदिरा गांधी की सत्ता के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। इस पर इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया। आपातकाल में नागरिक अधिकार रद्द हो गए और प्रेस और मीडिया पर सेंसरशिप लागू हो गई। कई विपक्षी नेता जेल भेज दिए गए। संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी अभियान और सत्ता पक्ष द्वारा दमन के कारण आपातकाल को इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन का निम्न बिंदु कहा जाने लगा।
दरअसल, 1971 में ही हाईकोर्ट ने रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी का निर्वाचन अवैध ठहरा दिया था। इस चुनाव में राजनारायण थोड़े ही मतों से हार गए थे। इंदिरा गांधी ने इस निर्णय को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी तो उन्हें स्टे मिल गया। वे प्रधानमंत्री के पद पर बनी रह सकतीं थी लेकिन सदन की कार्रवाई में भाग नहीं ले सकती थीं और न ही सदन में वोट दे सकती थीं। इन्ही परिस्थितियों के मद्देनजर इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगा दिया था। इसका जनता ने माकूल जवाब दिया। 1977 में इमरजेंसी हटा ली गई और आम चुनाव हुए जिसमें इंदिरा गांधी की अभूतपूर्व हार हुई।
जनता पार्टी के नेतृत्व में चार घटक दलों के साथ मोरराजी देसाई प्रधानमंत्री बने। हालांकि दो साल ही जनता पार्टी में खींचतान शुरू हो गई। चरण सिंह 64 सांसदों को साथ जनता पार्टी से अलग हो गए। मोरारजी देसाई ने सदन में विश्वासमत का सामना करने से पहले् ही इस्तीफा दे दिय़ा।
चरणसिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बन गए। चरणसिंह भी सदन में विश्वास मत हासिल करते इसके पहले ही कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और राष्ट्रपति से नए चुनाव करने का अनुरोध किया । 1980 के चुनावों में कांग्रेस को जबर्दस्त जीत हासिल हुई और कांग्रेस सत्ता में लौटी। जाहिर है इंदिरा के शासनकाल में हुई ये ऐतिहासिक राजनीतिक घटनाओं ने भारत में न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक परिवर्तन भी किए। आज भी देश और दुनिया इंदिरा गांधी को एक मजबूत नेता के रूप में जानती है।
गुलाम भारत को आजादी की कितनी जरूरत है यह इंदिरा ने अच्छे से समझ लिया था। बचपन से ही वो भी भारत की आजादी की लड़ाई में जुट गई थीं। उन्होंने अपने हमउम्र बच्चों के साथ एक वानर सेना बनाई जिसका उद्देश्य देश की आजादी के लिए लड़ रहे क्रांतिकारी एवं आंदोलनकारियों तक गुप्त सूचनाएं पहुंचाना था। 1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इंदिरा गांधी का कहना था कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण की बदौलत ही देश भर में बैंक क्रेडिट दी जा सकेगी। उस वक्त के वित्त मंत्री मोरारजी देसाई इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर चुके थे। 19 जुलाई 1969 को एक अध्यादेश लाया गया और 14 बैंकों का स्वामित्व राज्य के हवाले कर दिया गया। उस वक्त इन बैंकों के पास देश का 70 प्रतिशत जमापूंजी थी। 1969 में इंदिरा गांधी ने भूमिहीन और समाज के कमजोर वर्ग के लिए भूमि सुधार नीति बनाई। हरित क्रांति इंदिरा के अथक प्रयास का फल था। बीस सूत्रीय कार्यक्रम की शुरुआत भी इंदिरा गांधी ने ही की थी।
1967 के आम चुनावों में कई पूर्व राजे-रजवाड़ों ने सी.राजगोपालाचारी के नेतृत्व में स्वतंत्र पार्टी का गठन लिया था। इनमें से कई कांग्रेस के बागी भी थे। इस कारण इंदिरा ने प्रिवीपर्स समाप्ति का संकल्प ले लिया। 1971 के चुनावों में सफलता के बाद इंदिरा ने संविधान में संशोधन कराया और प्रिवीपर्स की समाप्ति कर दी। इस तरह राजे-महाराजों के सारे अधिकार और सहूलियतें वापस ले ली गईं। 1971 के चुनाव में इंदिरा जी ने नारा दिया था ‘गरीबी हटाओ’। इस नारे का जादू देश भर में लोगों के सिर चढ़कर बोला। पाकिस्तान के साथ युद्ध में विजयी होने के बाद वे संसद में पहले ही दुर्गा की परिभाषा से विभूषित हो चुकी थी। उनकी लोकप्रियता अपने चरमोत्कर्ष पर थी। चुनाव में कांग्रेस भारी बहुमत से जीती। भारत पाकिस्तान के बीच तीसरे युद्ध ने दक्षिण एशिया का भूगोल ही नहीं इतिहास भी बदल दिया। ये इंदिरा की अगुवाई का ही कमाल था कि भारत ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर भी मजबूर तक दिया जब महाबली अमेरिकी खुद उसका खुलकर साथ दे रहा था।पाकिस्तान से लड़ाई के तीन साल बाद 18 मई 1974 को भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण कर विश्व पटल पर अपनी सैन्य ताकत दर्ज कराने की कोशिश की। इसके साथ ही अमरीका, सोवियत संघ (तत्कालीन), ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के बाद भारत छठा ऐसा करने वाला देश बन गया।साल 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर सैन्य हमले पर विचार किया था। वह पड़ोसी देश को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने के लिए ऐसा करना चाहती थीं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के सार्वजनिक किए गए एक दस्तावेज में यह दावा किया गया।
बांगलादेश के उदय को इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन का उत्कर्ष कहा जा सकता है, वहीं 1975 में रायबरेली के चुनाव में गड़बड़ी के आरोप और जेपी द्वारा संपूर्ण क्रांति के नारे के अंतर्गत समूचे विपक्ष ने एकजुट होकर इंदिरा गांधी की सत्ता के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। इस पर इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया। आपातकाल में नागरिक अधिकार रद्द हो गए और प्रेस और मीडिया पर सेंसरशिप लागू हो गई। कई विपक्षी नेता जेल भेज दिए गए। संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी अभियान और सत्ता पक्ष द्वारा दमन के कारण आपातकाल को इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन का निम्न बिंदु कहा जाने लगा।
दरअसल, 1971 में ही हाईकोर्ट ने रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी का निर्वाचन अवैध ठहरा दिया था। इस चुनाव में राजनारायण थोड़े ही मतों से हार गए थे। इंदिरा गांधी ने इस निर्णय को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी तो उन्हें स्टे मिल गया। वे प्रधानमंत्री के पद पर बनी रह सकतीं थी लेकिन सदन की कार्रवाई में भाग नहीं ले सकती थीं और न ही सदन में वोट दे सकती थीं। इन्ही परिस्थितियों के मद्देनजर इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगा दिया था। इसका जनता ने माकूल जवाब दिया। 1977 में इमरजेंसी हटा ली गई और आम चुनाव हुए जिसमें इंदिरा गांधी की अभूतपूर्व हार हुई।
जनता पार्टी के नेतृत्व में चार घटक दलों के साथ मोरराजी देसाई प्रधानमंत्री बने। हालांकि दो साल ही जनता पार्टी में खींचतान शुरू हो गई। चरण सिंह 64 सांसदों को साथ जनता पार्टी से अलग हो गए। मोरारजी देसाई ने सदन में विश्वासमत का सामना करने से पहले् ही इस्तीफा दे दिय़ा।
चरणसिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बन गए। चरणसिंह भी सदन में विश्वास मत हासिल करते इसके पहले ही कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और राष्ट्रपति से नए चुनाव करने का अनुरोध किया । 1980 के चुनावों में कांग्रेस को जबर्दस्त जीत हासिल हुई और कांग्रेस सत्ता में लौटी। जाहिर है इंदिरा के शासनकाल में हुई ये ऐतिहासिक राजनीतिक घटनाओं ने भारत में न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक परिवर्तन भी किए। आज भी देश और दुनिया इंदिरा गांधी को एक मजबूत नेता के रूप में जानती है।