भारतीय राजनीति में कांग्रेस का हमेशा दबदबा रहा है और ज्यादातर समय यही पार्टी सत्तारुढ़ रही है। पिछले दस वर्षों से भी यही सत्ता पर काबिज है। हालंाकि, वर्तमान लोकसभा चुनाव 2014 में पार्टी को थोडे़ मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। अमूमन यह होता है, जब आप सत्ता में लंबे समय तक रहते हैं। दिल्ली में बैठकर कुछ लोगों को यही लगता है कि कांग्रेस का तो इस बार पूरा सूपड़ा हो जाएगा ? इसको वे भरसक प्रचारित भी करते हैं। जबकि वास्तविकता के धरातल पर ऐसा नहीं है।
दिल्ली से तो यही बात फैलाई जा रही है कि कांग्रेस विरोधी लहर हवा में है और ज्यादातर लोगों का मानना है कि मनमोहन सरकार नाकाम रही है। जबकि सच्चाई इससे कोसों दूर है। कांग्रेस आज भी सर्वधर्म समभाव का भाव लेकर चलती है। न काहू से दोस्ती न काहू से बैर। यही तो हमारा सिद्धांत रहा है। हम कहने से अधिक करने में विष्वास रखते हैं। तमाम विरोधी राजनीतिक दल भ्रष्टाचार को लेकर बावेला काटने पर उतारू हैं, क्या उन्हें यह नहीं पता है कि यह कांग्रेस और यूपीए की ही सरकार थी, जिसे सूचना के अधिकार के रूप में एक अचूक हथियार जनता को दिया है भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए। हाल के वर्षों में जितने भी घोटालों का पर्दाफाष हुआ है, क्या यह सूचना के अधिकार के बदौलत नहीं है? कांग्रेस नीत यूपीए गठबंधन ने दस साल में देश का विकास किया है। कांग्रेस ने नरेगा के माध्यम से देश के 82 करोड़ लोगों को रोजगार देने का काम किया है।यूपीए ने गरीब और किसानों के लिए जो ग्रामीण रोजगार योजना, उपज के दामों में वृद्धि व कर्ज माफी की आर्थिक प्रक्रिया चलाई थी, उसी अधूरे कार्य को पूरा करने के लिए एक बार फिर यूपीए को मौका मिलेगा। सर्वशिक्षा अभियान, मिड डे मील योजना, ग्राणीम स्वाथ्य सेवा योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना जैसी योजनाओं को भला आप कैसे दरकिनार कर सकते हैं ? साथ ही सूचना के अधिकार और लोकपाल बिल को संसद में पेश किए जाने का श्रेय मनमोहन सिंह सरकार को नहीं दिया जाना चाहिए ? जब हम गठबंधन के दौर में होते हैं, तो कई तरह की परेषानियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन जिस प्रकार से यूपीए सरकार ने भ्रष्टाचारियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया, चाहे वह कितना भी रसूखदार हो, वह काबिलेतारीफ है। कांग्रेस ने हमेषा भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसा है। आज भी कई आरोपों की जांच हो रही है और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
ऐसा नहीं है कि हम सच्चाई से वाकिफ नहीं हैं। कांग्रेस का सबसे बुरा प्रदर्शन 1999 में रहा था जब यह पार्टी मात्र 114 सीट जीत पाई थी, इसकी सफलता का प्रतिशत मात्र 20.91 था। जहां तक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का सवाल है तो 1984 में हुए आम चुनाव में इस पार्टी ने 415 सीट जीत कर ऐतिहासिक सफलता रची थी। उस वक्त इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और इससे उपजी सहानुभूति की लहर का लाभ कांग्रेस को मिला था। इसकी सफलता का प्रतिशत 77.86 था। इतनी सफलता तो कांग्रेस को पहले चुनाव में भी नहीं मिली थी। अब तक यह पार्टी चार सौ सीटों का आंकड़ा एक बार, तीन सौ सीटों का आंकड़ा पांच बार, दो सौ सीटों का आंकड़ा तीन बार और सौ का आंकड़ा छरू बार पार कर चुकी है। 114 सीट इसका न्यूनतम स्कोर है। बेषक, कुछ लोग तमाम हथकंडे का प्रयोग करके हवा बनाने की जुगत कर रहे हांे, लेकिन देष की जनता जानती है कि कौन उनके लिए बेहतर सरकरा लाएगा ? कौन बेहतर सुविधा मुहैया कराएगा? कांग्रेस की काबिलियत से पूरे देष की जनता वाकिफ है।