जिस “ नेता जी “ उपनाम को सुभाष बाबू ने गरिमा दी। वही “नेता जी “ उपनाम आज भ्रष्ट तंत्र का पर्यायवाची हो गया है। आजादी के बाद देश के राजनीतिज्ञों ने नेता शब्द को इतना शर्मसार कर दिया कि आज कोई युवा नेता नहीं बनना चाहता। वह राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होना ही नहीं चाहता। जबकि आजादी से पहले अधिकांश युवाओ में देश के लिए एक जज्बा था, एक सपना था, उम्मीदें थी, हर कोई नेता जी सुभाषचन्द्र बोस बनना चाहता था। नेता जी युवाओ के प्रेरणा स्रोत तब भी थे और आज भी हैं। लेकिन आजादी के बाद नेता शब्द ऐसा हो गया है कि अब शायद ही कोई युवा इसे अपने नाम के साथ लगाना चाहे। ये देन है हमारी राजनीतिक व्यवस्था की।
आजादी के पहले देश के नेता कहते थे, तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा, आजादी के बाद तथाकथित नेता कहते है कि “तुम मुझे वोट दो मै तुम्हे घोटाले दूंगा’।
सुभाषचंद्र बोस एक महान नेता थे। महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार भिन्न-भिन्न थे। लेकिन वे यह अच्छी तरह जानते थे कि महात्मा गांधी और उनका मक़सद एक है, यानी देश की आज़ादी। वे यह भी जानते थे कि महात्मा गांधी ही देश के राष्ट्रपिता कहलाने के सचमुच हक़दार हैं। 1938 में गांधीजी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सुभाष बाबू को चुना तो था, मगर गांधीजी को सुभाष बाबू की कार्यपद्धति पसंद नहीं आई। इसी दौरान यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल छा गए थे। सुभाषबाबू चाहते थे कि इंग्लैंड की इस कठिनाई का लाभ उठाकर, भारत का स्वतंत्रता संग्राम अधिक तीव्र किया जाए। हालांकि, गांधीजी उनके इस विचार से सहमत नहीं थे।
आज़ादी की लड़ाई लड़ते बोस 11 बार जेल गए। अंग्रेज समझ चुके थे कि यदि बोस आज़ाद रहे तो भारत से उनके पलायन का समय बहुत करीब है। अंग्रेज चाहते थे कि वे भारत से बाहर रहें, इसलिए उन्हें जेल में डाले रखा। तबीयत बिगड़ने के बाद वे 1933 से 1938 तक यूरोप में रहे। यूरोप में रहते हुए सुभाषचन्द्र बोस ने ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, आयरलैण्ड, इटली, पोलैण्ड, रूमानिया, स्वीजरलैण्ड, तुर्की और युगोस्लाविया की यात्राएं कर के यूरोप की राजनीतिक हलचल का गहन अध्ययन किया और उसके बाद भारत को स्वतन्त्र कराने के उद्देश्य से आजाद हिन्द फौज का गठन किया।
भारत के सबसे बड़े स्वतंत्रता सेनानी और इतने बड़े नायक की मृत्यु के बारे में आज तक रहस्य बना हुआ है, जो देश की सरकार के लिए एक शर्म की बात है। देश की आजादी में अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले वीर योद्धा का अस्तित्व कहां खो गया, यह आजाद भारत के सात दशक से भी ज्यादा समय में नहीं पता लगाया जा सका। किसी भी राष्ट्र के स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी ऐतिहासिक धरोहर होती है। आने वाली पीढ़ियां इन्हीं के आदर्शों से प्रेरणा लेते हुए एक अपने देश के लिए सोचती हैं।
अब जापान में रखी नेताजी की अस्थियों की असलियत पर संदेह उठने लगा है, तो सरकार नेता जी की अस्थियों की डीएनए डेस्ट करार उसका मिलान उनकी बेटी से करने का विचार क्यों नहीं करती है? क्योंकि नेताजी की रहस्यमई मौते से पर्दा उठाने पर ही देश की आजादी के इतिहास से नेता जी और उनकी भारतीय राष्ट्रीय सेना के योगदान को और गौरव दिलाया जा सकता है। नेताजी का योगदान और प्रभाव इतना बडा था कि कहा जाता हैं कि अगर आजादी के समय नेताजी भारत में उपस्थित रहते, तो शायद भारत एक संघ राष्ट्र बना रहता और भारत का विभाजन न होता।
नेताजी ने उग्रधारा और क्रांतिकारी स्वभाव में लड़ते हुए देश को आजाद कराने का सपना देखा था। अगर उन्हें भारतीय नेताओं का भी भरपूर सहयोग मिला होता तो देश की तस्वीर यकीकन आज कुछ अलग होती। आज जब देश में नेता शब्द की गरिमा घटी है, समाज में नेता का मतलब भ्रष्ट समझा जाता है। ऐसे में देश के असली नेता, नेता जी सुभाष चंद्र बोस का स्मरण होता है, जो देश के वास्तविक नेता थे, आज देश को ऐसे ही नेता की जरूरत है, जो देश को नई दिशा दिखा सके।
आजादी के पहले देश के नेता कहते थे, तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा, आजादी के बाद तथाकथित नेता कहते है कि “तुम मुझे वोट दो मै तुम्हे घोटाले दूंगा’।
सुभाषचंद्र बोस एक महान नेता थे। महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार भिन्न-भिन्न थे। लेकिन वे यह अच्छी तरह जानते थे कि महात्मा गांधी और उनका मक़सद एक है, यानी देश की आज़ादी। वे यह भी जानते थे कि महात्मा गांधी ही देश के राष्ट्रपिता कहलाने के सचमुच हक़दार हैं। 1938 में गांधीजी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सुभाष बाबू को चुना तो था, मगर गांधीजी को सुभाष बाबू की कार्यपद्धति पसंद नहीं आई। इसी दौरान यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल छा गए थे। सुभाषबाबू चाहते थे कि इंग्लैंड की इस कठिनाई का लाभ उठाकर, भारत का स्वतंत्रता संग्राम अधिक तीव्र किया जाए। हालांकि, गांधीजी उनके इस विचार से सहमत नहीं थे।
आज़ादी की लड़ाई लड़ते बोस 11 बार जेल गए। अंग्रेज समझ चुके थे कि यदि बोस आज़ाद रहे तो भारत से उनके पलायन का समय बहुत करीब है। अंग्रेज चाहते थे कि वे भारत से बाहर रहें, इसलिए उन्हें जेल में डाले रखा। तबीयत बिगड़ने के बाद वे 1933 से 1938 तक यूरोप में रहे। यूरोप में रहते हुए सुभाषचन्द्र बोस ने ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, आयरलैण्ड, इटली, पोलैण्ड, रूमानिया, स्वीजरलैण्ड, तुर्की और युगोस्लाविया की यात्राएं कर के यूरोप की राजनीतिक हलचल का गहन अध्ययन किया और उसके बाद भारत को स्वतन्त्र कराने के उद्देश्य से आजाद हिन्द फौज का गठन किया।
भारत के सबसे बड़े स्वतंत्रता सेनानी और इतने बड़े नायक की मृत्यु के बारे में आज तक रहस्य बना हुआ है, जो देश की सरकार के लिए एक शर्म की बात है। देश की आजादी में अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले वीर योद्धा का अस्तित्व कहां खो गया, यह आजाद भारत के सात दशक से भी ज्यादा समय में नहीं पता लगाया जा सका। किसी भी राष्ट्र के स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी ऐतिहासिक धरोहर होती है। आने वाली पीढ़ियां इन्हीं के आदर्शों से प्रेरणा लेते हुए एक अपने देश के लिए सोचती हैं।
अब जापान में रखी नेताजी की अस्थियों की असलियत पर संदेह उठने लगा है, तो सरकार नेता जी की अस्थियों की डीएनए डेस्ट करार उसका मिलान उनकी बेटी से करने का विचार क्यों नहीं करती है? क्योंकि नेताजी की रहस्यमई मौते से पर्दा उठाने पर ही देश की आजादी के इतिहास से नेता जी और उनकी भारतीय राष्ट्रीय सेना के योगदान को और गौरव दिलाया जा सकता है। नेताजी का योगदान और प्रभाव इतना बडा था कि कहा जाता हैं कि अगर आजादी के समय नेताजी भारत में उपस्थित रहते, तो शायद भारत एक संघ राष्ट्र बना रहता और भारत का विभाजन न होता।
नेताजी ने उग्रधारा और क्रांतिकारी स्वभाव में लड़ते हुए देश को आजाद कराने का सपना देखा था। अगर उन्हें भारतीय नेताओं का भी भरपूर सहयोग मिला होता तो देश की तस्वीर यकीकन आज कुछ अलग होती। आज जब देश में नेता शब्द की गरिमा घटी है, समाज में नेता का मतलब भ्रष्ट समझा जाता है। ऐसे में देश के असली नेता, नेता जी सुभाष चंद्र बोस का स्मरण होता है, जो देश के वास्तविक नेता थे, आज देश को ऐसे ही नेता की जरूरत है, जो देश को नई दिशा दिखा सके।
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