राजनीति से राजीव रत्न गांधी को विरक्ति-सी थी। वे स्वच्छंद जीवन जीने के आदी थे, तभी तो वे आकाश की ऊंचाईयों में वायुयान उड़ाते थे। लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें देश की राजनीति के ‘कॉकपिट’ में बिठा दिया और यहां भी उन्होंने अपने पेशे से पूरी ईमानदारी बरती और देश को प्रगति के आकाश में परवान चढ़ाया। उनका कहना था- ‘मैंने एक सपना देखा है, महान भारतवासियों का सपना, जो आत्मविश्वास के साथ, भविष्य की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। मैं एक ऐसे भारत का सपना देखता हूं, जो अपने को हर क्षेत्र में उत्कृष्ट सिद्ध करता है।’ यह पुस्तक उन्हीं के महान जीवनदर्शन पर आधारित है। इसके माध्यम से पाठक और अधिक निकट से राजीव गांधी के जीवन-वृत्त के दर्शन कर सकते हैं।
1984 में गहरे राजनीतिक उथल-पुथल के बीच जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने, उन्होंने करीब डेढ़ दशक पहले ही भारत को 21वीं सदी में ले जाने का सपना दिखाया. देश को तकनीकी रूप से सशक्त बना कर उन्होंने पंडित नेहरू द्वारा रखी आधुनिक भारत की नींव में एक नया आयाम जोड़ा. इतना तो जरूर मानना होगा कि नेहरू के बाद भारत के विकास मॉडल में सबसे बेहतर कीर्तिस्तंभ राजीव गांधी ही थे, जिन्होंने देश को तकनीकी रूप से मजबूत बनाने की तकरीबन मुकम्मल कोशिश की. राजीव गांधी के विकास मॉडल और उनकी राजनीति पर बात करते हुए उन संदर्भो में दो महत्वपूर्ण घटनाओं से होकर गुजरना पड़ेगा. एक तो यह कि 1984 में जो राजीव गांधी को जो भारी बहुमत मिला था, उसमें निश्चित रूप से राजीव गांधी का सशक्त नेतृत्व था और दूसरा यह कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश एक भावुकता के दौर से गुजर रहा था, इन दोनों पहलुओं से होकर ही कांग्रेस ने एक बड़ी ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी. राजीव गांधी के अंदर कहीं न कहीं एक नौजवान प्रधानमंत्री बनने का सपना था. इसलिए जब वे प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने खुद का बहुत ईमानदाराना इस्तेमाल किया. उन्होंने अपने नौजवान सपने के नजरिये को न सिर्फ देश से रूबरू कराया, बल्कि अपनी नेतृत्व शक्ति से दुनिया के बेहतरीन दिमागों को भारत में जमा किया और फिर उन दिमागों की मदद से देश को 21वीं सदी में ले जाने के मिशन को पूरा करने के लिए दिल-ओ-जान से जुट गये.
राजीव गांधी ने दो बड़े पैमाने पर आधुनिक भारत के दरवाजे खोले. एक है दूरसंचार (टेलीकम्युनिकेशन सेक्टर) और दूसरा है सूचना प्रौद्योगिकी (आइटी सेक्टर). खास तौर पर दूरसंचार के क्षेत्र में उनके योगदान को भारत के आधुनिक इतिहास में कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. उनके राजनीतिक योगदान को इस नजरिये से देखा जाये, तो कुछ चीजें स्पष्ट हो जायेंगी. जब वे कहते थे कि भारत को 21वीं सदी में ले जाना है और बहुत ही आधुनिक देश की स्थापना करनी है, तो कुछ लोग उन पर हंसते थे. 1984 का वह दौर था, जब लोग हंसते हुए कहते थे कि भई! स्वर्गीय इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के बेटे, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की आज 67वीं जयंती है. 20 अगस्त, 1944 को जन्में राजीव गांधी का पूरा नाम राजीव रत्न गांधी था. 3 जून, 1980 को राजीव के छोटे भाई संजय गांधी की दुर्घटना में मृत्यु हुई तब उन्होंने अपनी मां को सहयोग देने के लिए राजनीति में प्रवेश किया. वहीं 1984 में मां की हत्या ने उन्हें पूर्ण रूप से कांग्रेस के प्रति समर्पित नेता बना दिया.
राजीव गांधी एक नायक थे। देश के ऐसे नायक जो विश्व-पटल पर तेज़ी से अपनी जगह बनाते हुए नज़र आए। देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री के तौर पर लोकप्रिय राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय मंचों की शोभा भी होते थे। देश को आज भी अपने लोकप्रिय नेता की कमी महसूस होती है। वैसे नेता, जिस संचार-क्रांति की वजह से ख़ास तौर पर याद किया जाता है।
इंदिरा गांधी और फिरोज़ गांधी की सबसे बड़ी संतान ने दून स्कूल से शिक्षा हासिल करने के बाद उच्च-अध्ययन के लिए भारत छोड़ दिया था। विदेश प्रवास के दौरान ही 1965 में सोनिया माइनो से उनकी मुलाक़ात हुई जिनसे माइनो परिवार के शुरुआती विरोध के बावजूद उन्होंने 28 फरवरी 1968 को विवाह किया। राजीव राजनीति में क़दम रखने के इच्छुक नहीं थे लेकिन अनुज संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में असमय मौत के बाद परिस्थितियों से मजबूर होकर उन्होंने 11 मई 1981 को कांग्रेस (ई) की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और 15 जून 1981 को उत्तर प्रदेश के अमेठी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए जहाँ से मौजूदा समय में उनके पुत्र राहुल गांधी सांसद हैं। इससे पहले इंडियन एयरलाइन्स के पायलट के तौर पर काम कर चुके राजीव को दो फरवरी 1983 को कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया गया। 31 अक्टूबर 1984 को उन पर भारी विपदा आई लेकिन देश की बागडोर संभालने की ज़िम्मेदारी भी मिली। उस दिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई और देश का राजीतिक माहौल डाँवाडोल हो गया। ऐसे नाज़ुक़ वक़्त में राजनीति से अछूते राजीव के कंधे पर प्रधानमंत्री जैसे ज़िम्मेदार पद का बोझ पड़ गया जिसे उन्होंने आने वाले समय में बख़ूबी निभाया। उन्होंने देश में कई क्षेत्रों में नई पहल और शुरुआत की जिनमें संचार-क्रांति, कंप्यूटर क्रांति शिक्षा का प्रसार 18 साल के युवाओं को मताधिकार, लाइसेंस-परमिट राज की समाप्ति आदि शामिल हैं। राजीव ने कई साहसिक क़दम उठाए जिनमें श्रीलंका में शांति सेना का भेजा जाना, असम समझौता, मिज़ोरम समझौता आदि शामिल हैं। 21वीं सदी के भारत के बारे में राजीव के विचार स्पष्ट थे। उन्होंने कहा था कि भविष्य में होने वाले सभी परिवर्तनों को पहले से नहीं बताया जा सकता। इतिहास पूर्वनियोजित या पूर्वनिर्धारित नहीं होता। घटनाएँ इसलिए मोड़ लेती हैं कि व्यक्ति फ़ैसला लेता है। उन्होंने अपनी इस बात को पुष्ट करते हुए कहा था कि आइंस्टीन पदार्थ और ऊर्जा के बीच के संबंध को सामने लाता है। एक लेनिन, एक गांधी, एक माओ और हो-ची-मिन्ह क्रांति का नेतृत्व करता है। एक जवाहर लाल नेहरू अपना ही लोकतांत्रिक जज़्बा पूरे देश को दे देता है। असंभव संभव हो जाता है।
राजीव गांधी भारतीय राजनीति और कांग्रेस के इतिहास में ऐसे नेता रहे हैं जिन्होंने शायद सबसे पहले किसी सार्वजनिक मंच पर खुद सरकार में होते हुए सरकार में फैले भ्रष्टाचार पर अंगुली उठाई. देश में सरकारी घोटालों की असलियत को खुद अपने मुंह से स्वीकारने वाले युवा और कर्मठ नेता राजीव गांधी की आज जयंती है. आज चाहे कांग्रेस सरकार कितने ही घोटालों से घिरी हो लेकिन कांग्रेस के राज में कभी कमान राजीव गांधी जैसे नेता के हाथ में भी थी जिन्होंने अपने अल्पकाल के शासन में ही देश को ढेरों सपने दिखाए.
अभी तो 25-26 साल बचे हुए हैं, अभी तो सरकार के पांच साल की बात करिये, देश को अभी 21वीं सदी में ले जाने की बात बेमानी है. लेकिन, अगर आज के दौर को देख कर आप इतिहास के उन पन्नों को पलटें और उन पर गौर करें, तो आप पायेंगे कि राजीव गांधी के उस सपने पर लोगों का हंसना यह साबित करता है कि नेतृत्व का ईमानदार और दृढ़निश्चयी होना राजीव के लिए कितना मायने रखता था. यही वजह है कि उनके आधुनिक भारत के विकास के मॉडल ने एक आयाम स्थापित किया, जो उनसे पहले या बाद की पीढ़ियों में नजर नहीं आया. हालांकि, इंदिरा गांधी ने भी ग्रीन रिवोल्यूशन की मुहिम चलायी और खाद्यान्न की बेशुमार उपलब्धता से देश को आत्मनिर्भर बनाया, लेकिन इमरजेंसी की विभीषिका ने उनके नेतृत्व पर एक तानाशाह का दाग लगा दिया. राजीव गांधी का जनता से सीधा जुड़ाव था, जो राजनीतिक नेतृत्व के लिए बहुत जरूरी होता है. मौजूदा कांग्रेस में इसी बात की कमी नजर आती है. यही वजह है कि कांग्रेस राष्ट्रीय राजनीति में लगातार हाशिये पर जा रही है. यहां सबसे अहम बात यह है कि राजीव गांधी की प्रासंगिकता के मद्देनजर उन्हें सिर्फ याद करने से कांग्रेस या देश को कुछ भी हासिल नहीं होगा. जरूरत इस बात की है कि उनके जैसा कोई ठोस नेतृत्व उभर कर आये.