Thursday, 20 February 2014

राहुल गांधी दूर करेंगे भ्रष्टाचार


लोकसभा चुनाव से पहले संसद सत्र का आज आखिरी दिन है।  इस मौके को कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी की भ्रष्टाचार विरोधी छवि के लिए सरकार लोकसभा में लंबित 6 भ्रष्टाचार विरोधी कानून को पास करा सकती है। सरकार ने अपनी तरफ से इसकी पूरी तैयारी कर ली है। अगर ये सभी बिल आज पास नहीं हो पाते हैं तो संसद का सत्र आगे भी बढ़ाया जा सकता है। संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने इस बात के संकेत दे दिए हैं। तेलंगाना के मुद्दे पर लगातार हंगामा होने की वजह से अब तक इस बिल पर बात आगे नहीं बढ़ पा रही थी। कहा जा रहा है कि भ्रष्टाचार विरोधी इन 6 बिल को संसद की दहलीज पास कराने की जिम्मेदारी जयराम रमेश को सौंपी गई है। संकेत यह भी हैं कि अगर इन बिलों को संसद से मंजूरी नहीं मिली तो सरकार इन पर अध्यादेश लेकर आएगी।
1. न्यायिक जवाबदेही बिल, 2010
2. व्हीसिल ब्लोवर प्रोटेक्शन बिल, 2011
3. समय पर सेवाएं पाने और उनकी सुनवाई का अधिकार, 2011
4. विदेशी और गैर सरकारी अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में रिश्वत निरोधी बिल, 2011
5. भ्रष्टाचार निरोधी बिल (संशोधित), 2013
6. पब्लिक प्रॉक्यूरमेंट (सरकारी खरीद) बिल, 2012
 हालांकि, विपक्षी दल साफ कर चुके हैं कि ये सब बेहद अहम विधेयक हैं। इन्हें आनन-फानन में नहीं, बल्कि विस्तृत चर्चा के बाद ही पास किया जाना चाहिए। बिलों को पारित करने में कहीं कोई चूक न हो इस के लिए इसकी जिम्मेदारी जयराम रमेश को सौंपी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए एक फ्रेमवर्क बनाने की जरूरत बताते हुए राहुल गांधी इन बिलों को पास करने के लिए मौजूदा सत्र को बढ़ाने की वकालत भी कर चुके हैं। एआईसीसी के महासचिव और पार्टी के संचार विभाग के अध्यक्ष अजय माकन ने कहा, ‘‘राहुल गांधी भ्रष्टाचार के खिलाफ दृढ़संकल्पित हैं। उन्होंने कहा, ‘‘संप्रग सरकार के दौरान ऐतिहासिक भ्रष्टाचार निरोधक विधेयक पारित किये गये हैं। हमारा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का ट्रैक रिकार्ड रहा है।’’
हाल में हुए विधानसभा के चुनावों तक राहुल मनरेगा, सूचना और शिक्षा के अधिकार, खाद्य सुरक्षा और कंडीशनल कैश ट्रांसफर को ‘गेम चेंजर’ मानकर चल रहे थे। ग्राम प्रधान को वे अपने कार्यक्रमों की धुरी मान रहे थे। कांग्रेस की बदली हुई समझ का संकेत 21 दिसम्बर को फिक्की की सभा में मिला जहाँ राहुल को उद्योगपतियों की नाराजगी से रूबरू होना पड़ा। उन्हें बताया गया कि केवल पर्यावरण के नाम पर ही तमाम उद्योगों का काम रुका पड़ा है। उसी रोज वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन का इस्तीफा हुआ। पहले समझा गया कि यह इस्तीफा चुनाव की तैयारी के सिलसिले में है। पर बाद में चीजें ज्यादा स्पष्ट हुईं। फिक्की की सभा में राहुल ने कहा कि भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा है जो लोगों का खून चूस रहा है। व्यापार जगत की चिंताओं का उत्तर देते हुए उन्होंने स्थिति में सुधार लाने के लिए मंजूरी देने में नियम आधारित व्यवस्था की वकालत की। इसके एक हफ्ते बाद 27 दिसम्बर को राहुल गांधी ने पार्टी के शीर्ष नेताओं और कांग्रेस शासित 12 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की। उन्होंने आदर्श हाउसिंग घोटाला मामले पर महाराष्ट्र सरकार की खिंचाई की और न्यायिक आयोग की रिपोर्ट को खारिज करने के फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि इस पर पुनर्विचार होना चाहिए। इस बैठक में फल और सब्जियां बेचने के लिए किसानों पर लगी पाबंदियों को हटाने की घोषणा भी की गई। यह भी तय किया गया कि कांग्रेस-शासित राज्य 28 फरवरी से पहले केंद्रीय कानून की तर्ज पर लोकायुक्त अधिनियम पास करेंगे।

Monday, 17 February 2014

कांग्रेस में सम्मान, संघ में नहीं स्थान


कांग्रेस हमेशा से बिना किसी भेदभाव के समाज के हर तबके की बात की है। उसके विकास और सम्मान की बात की है। न तो जाति का भेद और न ही जाति का। न तो लिंग का भेद और न ही प्रदेश का। हमेशा आम आदमी और उसके विकास के लिए नीतियां बनाती रही है कांग्रेस। वहीं, दूसरे कई राजनीति दल और उनके मातृसंगठन के लिए महिला मानो अछूत हों। क्या आपने कभी सुना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रचारक के रूप में किसी महिला का नाम आया है? आखिर, मातृशक्ति से ऐसा दुराव क्यों? आखिर कथनी और करनी में अंतर क्यों?
कांग्रेस पार्टी ने हमेशा से महिला सशक्तीकरण की बात की है। जब से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान संभाली इस ओर और भी अधिक प्रयास किए। 16 फरवरी को अपनी नीति पर अमल करते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने महिला सशक्तिकरण का वादा किया और कहा कि कांग्रेस का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया में ज्यादा महिलाओं को आगे लाने की है। उन्होंने भाजपा और आरएसएस पर प्रत्यक्षत: हमला करते हुए कहा कि विपक्ष महिलाओं का सम्मान नहीं करता और उनके विचारधारात्मक संगठन में महिलाओं के लिए जगह नहीं है। राहुल गांधी ने कहा है कि जब तक हम महिलाओं को सशक्त नहीं करेंगे, भारत महाशक्ति नहीं बन सकता। जहां-जहां महलाओं को सशक्त किया गया और उन्हें अवसर दिए गए, वे देश तेजी से आगे बढ़े। हम महिलाओं को सियासत में बराबरी देना चाहते हैं..पंचायतों में, विधानसभाओं में, संसद में ज्यादा महिलाएं दिखनी चाहिए। राहुल गांधी ने महिलाओं से अपील करते हुए कहा कि हम इस देश की प्रगति में आपकी शक्ति का उपयोग करना चाहते हैं। हम महिलाओं के लिए स्कूलों, अस्पतालों और संसद का दरवाजा खोलना चाहते हैं, क्योंकि आपके बगैर कोई प्रगति नहीं है।
सच तो यही है कि राहुल गांधी की यही तमन्ना है कि ऐसे दिन आएं जब महिलाएं बिना किसी डर-भय के शाम में, रात में निकल सकें, बसों में सफर कर सकें। इससे पूर्व भी महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध की पृष्ठभूमि में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि उनके सशक्तीकरण के लिए कानून बनाना ही काफी नहीं है, बल्कि उन्हें जमीनी स्तर पर उचित ढंग से लागू करना भी जरूरी है। श्रीमति सोनिया गांधी ने कहा था कि हम महसूस करते हैं कि बस कानून बना देना एवं नीतियां घोषित कर देना ही महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काफी नहीं होगा। इसके साथ ही नीतियों एवं कानूनों को जमीनी स्तर पर उचित ढंग से लागू भी करना होगा। हमें महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा खत्म करनी चाहिए और ऐसे सभी कदम उठाने चाहिए, जिससे महिलाएं सुरक्षित महसूस कर सकें, बेखौफ बनें, सशक्त बनें तथा उन्हें सम्मान प्राप्त हो।
महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए सामाजिक क्रांति शुरू करने की अपील करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा था कि सबसे मूलभूत मुद्दा यह है कि हमारे समाज की मानसिकता एवं पुरानी सोच बदलनी चाहिए। पुरुषों की तरह ही महिलाओं को भी समान अधिकार देना एक बड़ी चुनौती है और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव की दीवार गिरनी चाहिए। हम सभी जानते हैं कि हमारे बच्चों के सामाजिक दृष्टिकोण का निर्माण अपने घरों की चारदीवारी के भीतर होता है। परिवार में लड़की को उसके भाई के समान ही दर्जा दिया जाना चाहिए। परिवार में लड़कियों को भी शिक्षा, विकास एवं सशक्तीकरण का अधिकार है जैसा कि लड़के को होता है।
दूसरी ओर भाजपा की मातृसंगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महिलाओं से भेदभाव करता है। महिलाओं की आधी दुनिया से संघ की दूरी है। भले ही संघ के अनेक प्रकल्पों से महिलाएं जुड़ी हुई हों, मगर मूल संगठन में उन्हें कोई स्थान नहीं है। इस लिहाज से संघ को यदि पुरुष प्रधान कहा जाए, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। संघ ने महिलाओं की भी शाखाएं गठित करने पर कभी विचार नहीं किया। आज जब कि महिला सशक्तिकरण पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है, महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं, संघ का महिलाओं से जुड़ाव नहीं हो रहा है। आखिर क्यों?
गौर करने योग्य यह भी है कि मानव-सभ्यता जब पृथ्वी पर पनपने लगी तो पुरुष ने अपनी शारीरिक सामर्थ्य का फायदा उठाते हुए पहला अधिकार स्त्री पर जताया था। महिलाओं के शोषण की कहानी वहीं से शुरू हो गई थी। संपत्ति पर अधिकार का सिलसिला उसके बाद शुरू हुआ। वर्ष 1848 में सोनेका फाल्स में आयोजित महिला-अधिकार सम्मेलन में जारी किए गए घोषणा-पत्र में कहा गया था कि मानवता का इतिहास पुरुष द्वारा स्त्री पर लगातार अत्याचार और उस पर आधिपत्य जमाने की गाथा मात्र है। प्राचीन रोमन साम्राज्य में महिलाओं को पुरुष के स्वामित्व वाला प्राणी समझा जाता था। फ्रांस में उन्हें आधी आत्मा वाला जीव समझा जाता था, जो समाज के विनाश के लिए जिम्मेदार था। चीनवासी महिलाओं में शैतान की आत्मा के दर्शन करते थे। इस्लाम के प्रचार से पहले अरबवासी लड़कियों को जिंदा दफ्न कर दिया करते थे। भारत में भी सीता से लेकर द्रौपदी तक स्त्रियां विभिन्न प्रकार की अग्नि-परीक्षा से गुजरती रही हैं। कन्या हत्या के पाप से जब भारतवासी मुक्त होने लगे थे तो सहज ही कन्या-भ्रूण हत्या सामाजिक व्यवस्था में स्थापित हो गई थी। मापदंड और तरीके भिन्न हो सकते हैं, पर महिलाओं के प्रति भेदभाव और शोषण एक विश्वव्यापी सामाजिक परिदृश्य है। इसे सभ्यता-दोष मान कर सभी को इसके निराकरण के उपाय ढूंढ़ने की जरूरत है। महिला सशक्तीकरण की बात करने से पहले इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने की आवश्यकता है कि क्या वास्तव में महिलाएं अशक्त हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि अज्ञानवश या निहित स्वार्थों ने एक षड्यंत्र के तहत एक असत्य को बार-बार सत्य बता कर उसे सत्य के रूप में स्थापित कर दिया गया हो? मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक तथ्य यह साबित करते हैं कि वह प्राणी जिसे हम ह्यऔरतह्ण कहते हैं, जन्म से औरत नहीं होती, उसे समाज द्वारा ह्यऔरतह्ण बनाया जाता है। वह अशक्त नहीं, अशक्त बताई जाती है। प्रकृति ने स्त्री और पुरुष दोनों को अलग-अलग प्रकार की शक्तियां देकर एक समान रूप से सशक्त बनाया है। पुरुष में अगर शारीरिक सामर्थ्य थोड़ी ज्यादा है तो स्त्री में शारीरिक शक्ति का संवरण करने की शक्ति पुरुष से अधिक होती है। इसका प्रमाण है कि भारत में महिलाओं की औसत आयु पुरुषों की औसत आयु से लगभग पांच वर्ष अधिक है।  भावनात्मक रूप से महिलाएं पुरुषों से अधिक संतुलित होती हैं। विषम परिस्थितियों से शीघ्र बाहर निकल कर संयमित हो जाने और दर्द सहने की क्षमता स्त्रियों में पुरुषों से अधिक होती है। मानसिक प्रबलता और कार्य-निपुणता में महिलाएं अगर पुरुषों से इक्कीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं हैं।
समाज में पुरुष के वर्चस्व की कीमत सभी सभ्यताओं ने सदैव चुकाई है। जनसंख्या के आधे भाग के योगदान के अभाव में समाज की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रगति की दर उतनी नहीं बढ़ पाई, जितनी शायद संभव थी। वर्ष 2011 के इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार प्रदान करते समय भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि राष्ट्र की आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की उचित भागीदारी के बिना सामाजिक प्रगति की अपेक्षा रखना तर्कसंगत नहीं होगा।
वर्ष 2009 में संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया की सबसे बड़ी पांच सौ कंपनियों (फारचून 500) में महिलाओं की भागीदारी को लेकर एक सर्वेक्षण कराया था। निष्कर्ष यह निकला था कि जिन कंपनियों के प्रबंधन में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व मिला था उनमें निवेशकों को तिरपन प्रतिशत अधिक लाभांश और चौबीस प्रतिशत अधिक बिक्री का फायदा मिला था। जाहिर है, महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करके आर्थिक प्रगति की रफ्तार बढ़ाई जा सकती है।
भारत सरकार महिला सशक्तीकरण के प्रति सदैव सकारात्मक रही है। वर्ष 2001 में महिला सशक्तीकरण से संबंधित राष्ट्रीय नीति की घोषणा की गई थी। इस बहुआयामी नीति में महिलाओं के विकास का वातावरण तैयार करने, समानता के साथ राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में भागीदारी सुनिश्चित करने, भेदभाव समाप्त करने, महिलाओं के प्रति हिंसा को रोकने और सभी क्षेत्रों में विकास और भागीदारी के एक समान अवसर उपलब्ध कराने का आह्वान किया गया है।
यह कांग्रेस और यूपीए की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के कुशल नेतृत्व का ही कमाल रहा था कि राष्ट्रीय नीति के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए वर्ष 2010 में महिला सशक्तीकरण राष्ट्रीय मिशन ‘मिशन पूर्ण शक्ति’ की स्थापना की गई थी। संयुक्त राष्ट्र ने भी महिला सशक्तीकरण के पांच-आयामी दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन दिशा-निदेर्शों में महिलाओं को राष्ट्रीय मुद्दों पर निर्णायक भूमिका निभाने, विकास के समान अवसरों की उपलब्धता, व्यक्तित्व की महत्ता और स्वेच्छा से जीवन के फैसले करने के अधिकार को अधिमान दिया गया है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में महिला सशक्तीकरण के नियामकों को सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में निर्धारित करने की जरूरत है। दो तिहाई मजदूरी के कार्यों को करने के बाद भी महिलाएं केवल दस प्रतिशत संपत्ति और संसाधनों की मालिक हैं। भूमि पर मालिकाना हक से संबंधित अधिकारों में महिलाओं के हक को जमीनी सतह पर स्थापित करने की आवश्यकता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन करके पुश्तैनी जमीन में लड़कियों को लड़कों के बराबर अधिकार दे दिया गया है। पर लड़कियों को इस अधिकार की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। इसके लिए एक सामाजिक क्रांति की जरूरत होगी।